
एक नए शोध में पाया गया है कि स्थानीय व्यवहार और आहार यह समझाने में मदद करते हैं कि कुछ पक्षी भोर में अधिक बार क्यों गाते हैं? जो भोर के समय कोरस या पक्षियों के साथ गाने के बारे में पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती देता है।
कॉर्नेल लैब ऑफ ऑर्निथोलॉजी, सेंटर फॉर कंजर्वेशन बायोएकॉस्टिक्स और भारत में प्रोजेक्ट ध्वनि के वैज्ञानिकों ने भारत के पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखला में 69 पक्षियों की प्रजातियों का अध्ययन किया। पश्चिमी घाट दुनिया के जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है। शोध का उद्देश्य यह समझना था कि पक्षियां दिन के अलग-अलग समय पर कम या ज्यादा क्यों गाते हैं।
शोध के मुताबिक, आंकड़े एकत्र करने के लिए, शोधकर्ताओं ने पूरे जंगल में माइक्रोफोन लगाए ताकि दिन भर पक्षियों की आवाज को स्वचालित रूप से रिकॉर्ड किया जा सके, इस तकनीक को अक्सर निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी के रूप में जाना जाता है। यह ऑडियो रिकॉर्ड होता है जिसे शोधकर्ता बाद में सुनते हैं और सूचीबद्ध करते हैं कि दिन के दौरान कौन सी प्रजातियां आवाज करती हैं।
रॉयल सोसाइटी बी के फिलॉसॉफिकल ट्रांजैक्शन में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी ने उन्हें कई महीनों तक 43 जगहों के लिए एक साथ आवाज के आंकड़े एकत्र करने में सफलता हासिल की।
शोध में पक्षियों की 20 प्रजातियों में शाम की तुलना में सुबह के समय गाने की गतिविधि काफी अधिक थी। इन भोर के गायकों में ग्रे-हेडेड कैनरी-फ्लाईकैचर, ग्रेटर रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो और लार्ज-बिल्ड लीफ वार्बलर जैसी प्रजातियां शामिल थी। केवल एक प्रजाति, डार्क-फ्रंटेड बैबलर, भोर की तुलना में शाम को अधिक बार गाती पाई गई।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया कि उन्होंने चार संभावित सिद्धांतों की जांच की, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि जिन प्रजातियों का उन्होंने अध्ययन किया, उनमें से कई शाम की तुलना में भोर में अधिक गाती हैं।
मौजूदा सिद्धांतों से पता चलता है कि हवा की गति और हवा के तापमान जैसी छोटी-छोटी जलवायु स्थितियों के कारण भोर में गाना अधिक प्रचलित है, जिससे पक्षियों के ऊंचे स्वर वाले गाने लंबी दूरी तक अधिक स्पष्ट रूप से सुने जा सकते हैं।
अन्य सिद्धांतों से पता चलता है कि पक्षी अपने क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए भोर में अधिक गाते हैं, या दिन में बाद में जब अधिक रोशनी होती है, या अधिक कीट गतिविधि होती है, तो भोजन की तलाश के अवसरों को बढ़ाने के लिए गाते हैं। शोधकर्ताओं ने क्षेत्र में एकत्र किए गए आवाज के आंकड़ों के साथ-साथ इन चार सिद्धांतों की जांच करने के लिए मौजूदा साहित्य, जैसे कि क्षेत्रीयता और आहार के अलावा आंकड़े एकत्र किए।
शोध में पाया गया कि स्थानीय पक्षी और सर्वाहारी प्रजातियों के भोर के समय सक्रिय गायक होने की अधिक संभावना होती है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि स्थानीय प्रजातियों के लिए सुबह के समय गाना उनके स्थानों का प्रचार करने और उनकी रक्षा करने के लिए अहम है।
कीड़े और फल खाने वाली प्रजातियां - यानी सर्वाहारी भी भोर में अधिक गाने के लिए प्रचलित थीं। शोधकर्ताओं को संदेह है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि ये प्रजातियां अक्सर मिश्रित-प्रजातियों के झुंडों के सदस्य होते हैं, जिसमें भोजन खोजने और आस-पास के संभावित शिकारियों के बारे में समूह के सदस्यों को चेतावनी देने के लिए मुखर संचार जरूरी होता है।
लेकिन शोधकर्ता ने कहा कि उनके अनुमान की पुष्टि करने के लिए दृश्य या देखे जाने संबंधी अवलोकन सहित और अधिक शोध की जरूरत है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि अन्य पर्यावरणीय कारणों की भी जांच-पड़ताल की गई, जैसे कि प्रकाश का स्तर और ध्वनि संचरण की स्थिति, पक्षियों के गाने पर अहम प्रभाव नहीं डालती है, जिससे इस बारे में पिछले सिद्धांतों को चुनौती मिलती है कि पक्षी भोर में अधिक क्यों गाते हैं।
शोध के निष्कषों से पता चलता है कि सामाजिक कारण, विशेष रूप से क्षेत्रीयता और भोजन की आदतें, पर्यावरणीय परिस्थितियों की तुलना में भोर में गाने के व्यवहार को प्रेरित करने में अधिक महत्वपूर्ण हैं।