छत्तीसगढ़ के वनाधिकार कार्यकर्ता आलोक शुक्ला इस बारे में कहते हैं, ‘ राज्य में सीएफआरआर का दर्जा देने में जिला प्रशासन की सहभागिता और रुचि के अलावा एक स्थानीय नेता की मर्जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वजह है कि वनाधिकार कार्यकर्ताओं की इस संदर्भ में कामयाबी हर जिले में अलग-अलग है।’ वास्तव में वह जो कह रहे हैं, गरियाबंद जिला उसका प्रमाण है।
विधायक की दलील अलग
गरियाबंद के राजिम निर्वाचन क्षेत्र के विधायक अमितेश शुक्ला ने गरियाबंद दौरे के दौरान डाउन टू अर्थ को बताया, - ‘हम संरक्षित क्षेत्र में वन्यजीवों को बचाने के लिए टाइगर रिजर्व के मुख्य जोन के 18 गांवों को सामुदायिक अधिकार नहीं दे रहे हैं।’
राज्य ने सीएफआरआर देने के लिए अपने 20,000 गांवों में से 12,500 की पहचान की है। उसका दावा है कि पिछले चार सालों में इनमें से 3,646 गांवों को यह दर्जा दिया भी गया है।
छत्तीसगढ़ सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, 9 अगस्त, 2022 को, राज्य ने एक अन्य बाघ अभयारण्य - अचानकमार के मुख्य जोन के चार गांवों को सीएफआरआर का दर्जा दिया। धमतरी में तीन और मुख्य जोन के गांवों को भी उसी दिन इसका दर्जा मिला। उस दिन कुल मिलाकर 10 ग्राम सभाओं को वन अधिकार दिए गए थे।