
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पूर्वी प्रशांत महासागर की गहराइयों में मछलियों की तीन नई प्रजातियां खोजी हैं। इनमें 'बम्पी स्नेलफिश', 'डार्क स्नेलफिश' और 'स्लीक स्नेलफिश' शामिल हैं।
ये मछलियां अत्यधिक दबाव और अंधेरे में जीवित रहने की क्षमता रखती हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक स्नेलफिश समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं। ये न सिर्फ समुद्र की गहराइयों में जीवन की विविधता को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि वहां जीव किस तरह कठिन परिस्थितियों अत्यधिक दबाव, अंधकार और ठंड में ढलकर जीते हैं।
इस खोज से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को समझने में मदद मिलेगी।
मनुष्य के लिए समुद्र आज भी ऐसी अबूझ पहेली की तरह हैं, जिसके बारे में जितना ज्यादा जानते हैं, उतने ही ज्यादा रहस्य सामने आते जाते हैं। इसी कड़ी में अमेरिकी वैज्ञानिकों को पूर्वी प्रशांत महासागर की अथाह गहराइयों में मछलियों की तीन नई प्रजातियां मिली हैं।
इन मछलियों को पूर्वी प्रशांत महासागर में 3,268 से 4,119 मीटर की गहराई में खोजा गया है। यह समुद्र का वो हिस्सा है जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और पानी का दबाव इतना ज्यादा होता है कि वो सबकुछ कुचल सकता है।
दूसरी स्नेलफिश से कैसे अलग हैं यह मछलियां
वैज्ञानिकों ने इनमें से एक को ‘बम्पी स्नेलफिश’ का नाम दिया है। बबलगम जैसी गुलाबी रंग की यह मछली अपने गोल सिर, बड़ी नीली आंखों और त्वचा पर छोटे-छोटे उभारों के कारण पहचानी गई। इसके पंखों पर खास संरचना है जो इसे चट्टानों से चिपकने में मदद करती है। इसे पहली बार कैलिफोर्निया के मोन्टेरे बे एक्वेरियम रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े शोधकर्ताओं ने 2019 में पहली बार देखा था।
अब तक बम्पी स्नेलफिश सिर्फ एक बार ही देखी गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पुराने समुद्री वीडियो और नए अन्वेषणों से इसके बारे में और सुराग मिल सकते हैं।
दूसरी प्रजाति को ‘डार्क स्नेलफिश’ के नाम से जाना जाता है। पूरी तरह से काली यह मछली गोल सिर और क्षैतिज मुंह वाली है। इसके गलफड़े और पंखों की संरचना इसे गहरे समुद्र में पाई जाने वाली बाकी स्नेलफिश से अलग बनाती है।
वहीं तीसरी प्रजाति का नाम वैज्ञानिकों ने ‘स्लीक स्नेलफिश’ रखा है। यह लंबी, पतली और काली मछली है। यह मछली सक्शन डिस्क के बिना होती है और इसका जबड़ा तेज कोण पर निकला होता है। इसका नाम स्टेशन एम के नाम पर रखा गया, जहां इसे पहली बार देखा गया था।
क्यों है अहम है यह खोज?
बता दें कि ये मछलियां स्नेलफिश परिवार (लिपारिडे) से सम्बन्ध रखती हैं, जो दुनिया के सबसे गहरे समुद्री इलाकों में जीवित रह पाने की अपनी क्षमता के लिए मशहूर है। समुद्र की गहराइयों में रहने वाली स्नेलफिश अपने आकार और बनावट को बदलने में माहिर होती हैं। ये मछलियां उथले ज्वारभाटों से लेकर समुद्र की सबसे गहरी खाइयों तक पाई जाती हैं।
कई स्नेलफिशों के पेट पर सक्शन डिस्क होती है, जिससे वे चट्टानों या समुद्री शैवाल से चिपक सकती हैं। इसके साथ ही अत्यधिक दबाव और अंधेरे का सामना करने के लिए इनका शरीर जेली जैसा नरम और ढीली त्वचा वाले होता है।
यह खोज अमेरिकी विश्वविद्यालय SUNY Geneseo से जुड़ी जीवविज्ञानी प्रोफेसर मैकेन्जी गेरिंगर और उनकी टीम द्वारा की गई है। इनके बारे में अधिक जानकारी जर्नल इचथियोलॉजी और हर्पेटोलॉजी में प्रकाशित हुई है।
मछलियों की इन तीनों प्रजातियों को सिर्फ देखकर नहीं पहचाना जा सकता था। ऐसे में वैज्ञानिकों ने डीएनए सीक्वेंसिंग, माइक्रो-सीटी स्कैनिंग और हड्डियों-ऊतकों के 3डी स्कैन के सूक्ष्म अध्ययन से इनके आकार, हड्डियों और पंखों की गिनती तक दर्ज की है। अन्य स्नेलफिश से की गई इनकी तुलना ने साबित कर दिया कि ये सचमुच नई प्रजातियां हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक स्नेलफिश समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं। ये न सिर्फ समुद्र की गहराइयों में जीवन की विविधता को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि वहां जीव किस तरह कठिन परिस्थितियों अत्यधिक दबाव, अंधकार और ठंड में ढलकर जीते हैं।
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि जब तक किसी प्रजाति का आधिकारिक नाम और पहचान दर्ज न हो, तब तक वह कागज पर ‘मौजूद’ नहीं होती। ऐसे में उसके संरक्षण, आबादी पर नजर रखने और उनपर जलवायु के बदलते प्रभावों को समझना मुश्किल हो जाता है।
प्रोफेसर मैकेन्जी गेरिंगर का इस बारे में कहना है, “गहरे समुद्र की दुनिया अद्भुत जैव विविधता से भरी है। इन तीन नई प्रजातियों की खोज हमें याद दिलाती है कि धरती पर जीवन के बारे में हमें अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है।“
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की खोजें न केवल जैव विविधता को समझने में मदद करती हैं, बल्कि बदलती जलवायु और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर नजर रखने के लिए भी बेहद जरूरी हैं।