वैज्ञानिकों ने दक्षिण अमेरिका के वर्षा वनों में पौधों की तीन नई प्रजातियां खोजी हैं, जो थियोब्रोमा कोको की बेहद करीबी रिश्तेदार हैं। बता दें कि यह वही पौधा है जिससे चॉकलेट बनाई जाती है। हाल के वर्षों में देखें तो कोको के पौधों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडराने लगा है। इसका असर चॉकलेट उत्पादों पर भी पड़ा है। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इन नई प्रजातियां की खोज से चॉकलेट उत्पादों को मौसम में होने वाले बदलावों को झेलने में मदद मिल सकती है।
यह खोज यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क, यूनिवर्सिटी ऑफ साओ पाउलो और न्यूयॉर्क बॉटनिकल गार्डन के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। इनके बारे में अधिक जानकारी जर्नल केव बुलेटिन में प्रकाशित हुई है।इस बारे में जानकारी साझा करते हुए शोधकर्ताओं ने लिखा है कि दक्षिण अमेरिकी वर्षावनों में पाए जाने प्रजातियां कोको की करीबी रिश्तेदार हैं, जिस पर कोको बीन्स उगते हैं, जो आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।
खोजी गई यह नई प्रजितयां थियोब्रोमा ग्लोबोसम, थियोब्रोमा नर्वोसम और थियोब्रोमा शुल्टेसी हैं। अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक यह खोज इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे पता चलता है कि पृथ्वी पर मौजूद जैवविविधता के बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
इस खोज से जुड़े वैज्ञानिकों डॉक्टर जेम्स रिचर्डसन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया है कि इन नई प्रजातियों की खोज हर्बेरियम में पौधों के नमूनों का अध्ययन करके की गई है। जो दर्शाता है कि प्राकृतिक इतिहास के इन संग्रहों को बनाए रखने कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इनमें से अभी भी कई प्रजातियों की खोज की जानी बाकी है।
डॉक्टर रिचर्डसन के मुताबिक उनकी इस खोज से कोको के ऐसे पेड़ तैयार करने में मदद मिल सकती है, जो जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के कहीं ज्यादा काबिल होंगें। ऐसे में बदलती जलवायु के बीच भी चॉकलेट और अन्य कोको उत्पादों का उत्पादन जारी रहे सकेगा।
शोधकर्ताओं ने जानकारी साझा करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि हाल ही में कोको की कीमतें तीन गुणा बढ़ गई, क्योंकि पश्चिमी अफ्रीका में सूखे के कारण इनके उत्पादन में गिरावट आई थी। ऐसे में नई प्रजातियों की खोज से हमें कोको के ऐसे पेड़ तैयार करने में मदद मिलेगी, जो सूखा और रोगों का सामना करने के कहीं ज्यादा काबिल होंगें।
शोधकर्ताओं ने इन नई प्रजातियों की पत्तियों, फूलों और फलों की बारीकी से जांच की है। बता दें कि इस दौरान उन्होंने कई बोटॉनिकल इंस्टिट्यूट के साथ मिलकर काम किया है।