वैज्ञानिकों ने भारत के पूर्वी घाट क्षेत्र में खोजी सूक्ष्म शैवाल की नई प्रजाति 'इंडिकोनेमा'

यह सूक्ष्म शैवाल इंसानों के लिए कितने जरूरी हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हमारी हर चौथी सांस के लिए मिलने वाला ऑक्सीजन डायटम से आता है
 नए डायटम जीनस 'इंडिकोनेमा' की स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक छवियां; फोटो: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो)
नए डायटम जीनस 'इंडिकोनेमा' की स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक छवियां; फोटो: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो)
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भारत और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक दल ने पूर्वी घाट क्षेत्र में सूक्ष्म शैवाल की एक नई प्रजाति खोजी है। यह प्रजाति भारत के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित है, जिसे अहमियत देते हुए इस प्रजाति को 'इंडिकोनेमा' नाम दिया गया है। यह प्रजाति मीठे पानी में पाई गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह डायटम प्रजाति गोम्फोनमॉइड समूह से सम्बन्ध रखती है। लेकिन इस प्रजाति में कई दिलचस्प विशेषताएं हैं, जो इसे इस समूह के अन्य शैवाल सदस्यों से अलग करती हैं।

गौरतलब है कि सूक्ष्म शैवालों के समूह को डायटम कहा जाता है। बता दें कि यह खोज अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है। इस प्रजाति के बारे में ज्यादा जानकारी जर्नल फाइकोलोजिया में प्रकाशित हुई है।

इस रिसर्च के मुताबिक 'इंडिकोनेमा' की एक प्रजाति पूर्वी घाट से जबकि दूसरी पश्चिमी घाट से पाई गई है। इस रिसर्च में इंडिकोनेमा की शारीरिक बनावट का जिक्र करते हुए लिखा है कि इसके केवल पैर के ध्रुव पर छिद्र होने के बजाय सिर और पैर दोनों ध्रुवों पर एक छिद्र क्षेत्र पाया गया है।

इस शैवाल समूह की भौतिक एवं रूप-रंग संबंधी विशेषताओं को देखते हुए शोधकर्ताओं का मानना है कि इंडिकोनेमा पूर्वी अफ्रीका में पाई जाने वाली स्थानीय प्रजाति एफ्रोसिमबेला की सहोदर है। शुरूआती अध्ययनों से पता चला है कि भारत में पाई जाने वाली गोम्फोनेमा प्रजातियां पूर्वी अफ्रीका और मेडागास्कर में पाई जाने वाली प्रजातियों से मिलती-जुलती हैं।

क्या होते हैं डायटम और क्यों इंसानों के लिए हैं जरूरी

डायटम सूक्ष्म शैवाल होते हैं, जो जैवविविधता के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बेहद मायने रखते हैं। यह सूक्ष्म जीव इंसानों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे द्वारा ली जाने वाली ऑक्सीजन की हर चौथी सांस का उत्पादन यह डायटम करते हैं।

मतलब की दुनिया की 25 फीसदी ऑक्सीजन के निर्माण में यह जीव बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। यह प्रकाश संश्लेषण की मदद से वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए जाने जाते हैं। यह नन्हें जीव जलीय खाद्य श्रृंखला की बुनियाद के रूप में कार्य करते हैं। इतना ही नहीं पानी की रासायनिक संरचना में बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील होने के कारण यह जीव जल गुणवत्ता के उत्कृष्ट संकेतक हैं।

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन का अनुमान लगाने के लिए इनका इस्तेमाल बायोलॉजिकल प्रॉक्सी के रूप में भी किया जाता है। इन डायटम को सिर्फ आंखों से नहीं देखा जा सकता, ये एकल कोशिका वाली पारदर्शी संरचना होते हैं। इनका निर्माण सिलिका से बनी जटिल कोशिकाओं से होता है। इनके स्वरुप और अलग-अलग समरूपता की वजह से खोजकर्ताओं को डायटम की अलग-अलग प्रजातियों और समूहों को पहचानने में मदद मिलती है।

यह डायटम वातावरण में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड को समुद्र के आंतरिक वातावरण से दूर रखते हैं और इनके कणों को गुरुत्वाकर्षण की मदद से डुबा देते हैं। एक तरह से ये बायोलॉजिकल कार्बन पंप की तरह भी काम करते हैं। वार्षिक तौर पर देखें तो समुद्री डायटम हर साल करीब 1,000 से 2,000 करोड़ टन अकार्बिनक कार्बन को खत्म करते हैं। एक रिसर्च के अनुसार, यह डायटम कुल समुद्री अकार्बिनक कार्बन के करीब 40 फीसदी और धरती पर पैदा होने वाले अकार्बनिक कार्बन के करीब 20 फीसदी का निपटारा कर देते हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि डायटम भारत में सबसे पहले दर्ज किए गए सूक्ष्मजीव हैं। इस बारे में पहली जानकारी 1845 में एहरनबर्ग की पहली रिपोर्ट में सामने आई थी, जो माइक्रोजियोलॉजी में प्रकाशित हुई थी। तब से भारत में किए गए कई शोधों में मीठे पानी और समुद्री वातावरण में यह सूक्ष्म शैवाल खोजे गए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक डायटम के 6,500 टैक्सा हैं, जिनमें से 30 फीसदी ऐसे हैं जो भारत के कुछ विशेष क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। भारत जैवभौगोलिक विविधता से सम्पन्न है। यहां मीठे पानी से लेकर समुद्र तल, ऊंचे पहाड़, क्षारीय झीलें, मैदान और दलदल अनगिनत प्रजातियों को पनपने के लिए अनुकूल माहौल देते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक मानसून के विकास ने भारतीय प्रायद्वीप में वर्षावनों को आकार दिया। इसकी वजह से नमी के अलग-अलग स्तरों का विकास हुआ, जिसने डायटम को आकार देने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई है।

प्रायद्वीपीय भारत में पूर्वी और पश्चिमी घाट क्षेत्र भी अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। यहां जमीन, मिट्टी और जलवायु में मौजूद विविधताएं आवासों की एक विस्तृत श्रंखला बनाती हैं जो इन नन्हें जीवों की कई प्रजातियों का समर्थन करती है। ऐसे में यह अध्ययन स्पष्ट तौर पर भारत के विविध क्षेत्रों की जैव विविधता को आकार देने में इन सूक्ष्म शैवालों के महत्व को रेखांकित करता है।

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