
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की मदद से किए गए एक अध्ययन, जिसका शीर्षक 'भारत में समुद्री कछुओं की निगरानी 2008-2024’ में कहा गया है कि ओडिशा में घोंसला बनाने वाले ओलिव रिडले कछुए आनुवंशिक रूप से दुनिया भर में पाए जाने वाले कछुओं से अलग हैं। अध्ययन इस बात की भी तस्दीक करता है कि दक्षिण अमेरिकी तट पर पाए जाने वाले कछुओं की तुलना में ये काफी पुराने हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि ओलिव रिडले समुद्री कछुओं में सबसे छोटे हैं जो आम तौर पर ओडिशा के रुशिकुल्या और गहिरमाथा समुद्र तटों पर अंडे देते हैं। गंजम जिले में रुशिकुल्या समुद्र तट मेक्सिको और कोस्टा रिका के तटों के अलावा दुनिया के सबसे अधिक घोंसले वाली जगहों में से एक है। पिछले महीने रुशिकुल्या और गहिरमाथा रूकरी में 13 लाख से अधिक ओलिव रिडले कछुओं ने अंडे दिए, जो 2023 में 11.5 लाख के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया।
अध्ययन के मुताबिक, डब्ल्यूआईआई और सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने भारत के मुख्य तट और द्वीपों पर समुद्री कछुओं की आणविक आनुवंशिकी की जांच-पड़ताल की है। निष्कर्षों से पता चलता है कि हिंद महासागर में, विशेष रूप से भारत के पूर्वी तट पर पाए जाने वाले कछुए, ओलिव रिडले की विकासात्मक रूप से सबसे प्राचीन आबादी थी, जबकि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों में पाए जाने वाले कछुए हो सकता है केवल कुछ लाख साल पहले ही इन महासागरों में बसे हों।
साल 2000 की शुरुआत में, लोगों का मानना था कि जब 30 लाख साल पहले पनामा इस्थमस का निर्माण हुआ था, जो अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को अलग करता है, तो इससे ओलिव रिडले कछुए अलग हो गए। एक अटलांटिक पर और दूसरा प्रशांत पर जा बसे।
यदि यह सच है, तो सबसे प्राचीन ओलिव रिडले की आबादी मध्य अमेरिका के पूर्वी तट, मैक्सिको और कोस्टा रिका आदि में होनी चाहिए। क्योंकि यहीं से उनकी उत्पत्ति हुई होगी। लेकिन अध्ययन में आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला है कि हिंद महासागर, विशेष रूप से भारत के पूर्वी तट पर, ओलिव रिडले की सबसे विकासात्मक रूप से प्राचीन आबादी थी।
अध्ययन में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि प्रशांत और अटलांटिक की आबादी हिंद महासागर की आबादी से लगभग तीन से चार लाख साल पहले ही अलग हुई। इसलिए लगभग 30 से 40 लाख साल पहले वैश्विक जलवायु परिवर्तन की अवधि के दौरान ओलिव रिडले इस क्षेत्र में जीवित रहे और फिर बहुत बाद में अटलांटिक और प्रशांत में फिर से बस गए। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में दो दशकों से कछुए पाए जाते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि करीब 2,00,000 साल पहले, हिंद महासागर के इस हिस्से से कुछ ओलिव रिडले हो सकता है घोंसले बनाने के लिए मध्य अमेरिका के पूर्वी तट, मैक्सिको और कोस्टा रिका में चले गए हो। नया अध्ययन ओलिव रिडले कछुए के विकास को एक नए नजरिए को सामने रखता है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, समुद्री कछुओं की आबादी में तेजी से मादाओं की ओर झुक सकती है। पिछले 15 सालों से, भारत में सबसे बड़े रुशिकुल्या रूकरी में घोंसले के बढ़ते तापमान और घोसले व लिंग अनुपात की निगरानी की जा रही हैं।
रुशिकुल्या में लिंग अनुपात मादाओं की ओर बढ़ा है। रुशिकुल्या में अंडे देने के लिए घोसले व लिंग अनुपात औसतन लगभग 71 फीसदी मादा पाई गई। जबकि कुछ सालों में घोंसले के बढ़ते तापमान के कारण लिंग अनुपात मादाओं की ओर झुकता पाया गया।
अध्ययन में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कछुए पर शोध करने वाले अभी भी इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि एक विशेष वर्ष में बड़े पैमाने पर घोंसले क्यों नहीं बनाए जाते हैं। यह देखने के लिए 15 से 20 सालों के आंकड़ों की जरूरत पड़ती है।
अरिबाडा या बड़े पैमाने पर घोंसले बनाना खुद भी एक हैरान करने वाली घटना है क्योंकि यह पर्यावरणीय और कुछ जैविक कारणों दोनों से प्रेरित है, जिन्हें पूरी तरह से नहीं समझा गया है।