अफ्रीका में खनन गतिविधियों के चलते 180,000 गोरिल्ला, चिम्पांजियों पर मंडरा रहा खतरा

गिनी में, खनन गतिविधियों की वजह से 23,000 से अधिक चिंपैंजी प्रभावित हो सकते हैं, जो वहां पाए जाने वाले सभी एप्स का करीब 83 फीसदी है
खनिजों की बढ़ती मांग से अफ्रीका की खनन गतिविधियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसकी वजह से जंगलों को अंधाधुन्द विनाश हो रहा है। नतीजन इन ग्रेट एप्स की आबादी पर खतरा बढ़ गया है। प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
खनिजों की बढ़ती मांग से अफ्रीका की खनन गतिविधियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसकी वजह से जंगलों को अंधाधुन्द विनाश हो रहा है। नतीजन इन ग्रेट एप्स की आबादी पर खतरा बढ़ गया है। प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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अफ्रीका में ग्रेट एप्स की एक तिहाई आबादी को खनन गतिविधियों के चलते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यह जानकारी तीन अप्रैल 2024 को जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है। गौरतलब है कि इन खनन गतिविधियों के चलते मौजूदा समय या निकट भविष्य में 180,000 ग्रेट एप्स पर खतरा मंडरा रहा है।

बता दें कि बंदरों के बड़े आकार वाली प्रजातियों को ग्रेट एप्स कहा जाता है। बंदरों की इन प्रजातियों में गोरिल्ला, चिंपैंजी, बोनोबो और ओरंगुटान शामिल हैं। इन विशाल वानरों को उनके बड़े आकार और मानव जैसी विशेषताओं के कारण यह नाम दिया गया है।

यह अध्ययन जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोडायवर्सिटी रिसर्च और मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी हाले-विटनबर्ग के शोधकर्ताओं द्वारा संरक्षण संगठन रे:वाइल्ड के सहयोग से किया है। इस अध्ययन के मुताबिक खनन गतिविधियों की वजह से अफ्रीकी ग्रेट एप्स पर पहले से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वन्यजीवों पर औद्योगिक खनन के संभावित प्रभाव का आंकलन करने के लिए एक उदाहरण के रूप में इन प्राइमेट्स का उपयोग किया है। उन्होंने पाया है कि करीब 20 फीसदी खनन क्षेत्र इन ग्रेट एप्स के लिए बेहद महत्वपूर्ण समझे जाने वाले आवासों से ओवरलैप होते हैं, जो उनकी समृद्ध जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

हालांकि अध्ययन के मुताबिक इनके महत्वपूर्ण आवास कड़े पर्यावरणीय नियमों के अधीन हैं, विशेष रूप से विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम जैसे संस्थानों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली खनन परियोजनाओं के लिए इस बारे में नियम कड़े हैं। इसके बावजूद रिसर्च में आशंका जताई गई है कि पश्चिम अफ्रीका में यह वानर सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में इनकी 82 फीसदी आबादी सक्रिय या नियोजित खनन स्थलों के पास रहती है।

ऊर्जा की बढ़ती मांग से अफ्रीका में बढ़ रहा खनन का दबाव

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने महत्वपूर्ण खनिजों की बढ़ती मांग से उभरते खतरों की भी पहचान की है। इन खनिजों की मांग स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर दुनिया की बढ़ती दिलचस्पी के साथ बढ़ती जा रही है।

इन खनिजों की बढ़ती मांग से अफ्रीका में खनन गतिविधियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसकी वजह से जंगलों को अंधाधुन्द विनाश किया जा रहा है। नतीजन इन ग्रेट एप्स की आबादी पर खतरा बढ़ गया है। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 17 अफ्रीकी देशों में खनन क्षेत्रों के आंकड़ों का उपयोग किया है।

इन खनन क्षेत्रों में या तो गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं या उन्हें विकसित किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने इन खनन क्षेत्रों के आसपास ग्रेट एप्स की आबादी पर खनन के संभावित हानिकारक प्रभावों का भी आंकलन किया है।

इनके आवास को होते नुकसान के साथ प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण जैसे प्रत्यक्ष प्रभावों को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने दस किलोमीटर के बफर जोन की स्थापना की है। जहां इन विशाल वानरों की आबादी पर सीधा असर पड़ने की आशंका है।

इनमें से कुछ देशों में, शोधकर्ताओं ने खनन क्षेत्रों से 50 किलोमीटर के दायरे में खनन गतिविधियों और वनों के होते विनाश के बीच मजबूत संबंध दर्ज किया। जो इन जीवों की आबादी को भी प्रभावित कर रहा है।

रिसर्च में यह भी सामने आया कि पश्चिम अफ्रीका देशों लाइबेरिया, सिएरा लियोन, माली और गिनी में खनन क्षेत्रों के पास ग्रेट एप्स की कहीं ज्यादा आबादी का वास है, ऐसे में इन देशों में खनन गतिविधियों की वजह से ग्रेट एप्स पर कहीं ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका है।

आशंका जताई गई है कि गिनी में, खनन गतिविधियों की वजह से 23,000 से अधिक चिंपैंजी प्रभावित हो सकते हैं, जो वहां पाए जाने वाले सभी वानरों (एप्स) का करीब 83 फीसदी है। सामान्य तौर पर, सबसे संवेदनशील क्षेत्र जहां खनन और ग्रेट एप्स का घनत्व कहीं ज्यादा है, वो भी पर्याप्त रूप से संरक्षित नहीं हैं।

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