तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को तूफानों से बचाते हैं मैंग्रोव वन: अध्ययन

जिन इलाकों में मैंग्रोव वन कवर अधिक होता है वहां दूसरे क्षेत्रों की तुलना में तूफानों से होने वाला नुकसान कम होता है।
Photo : Wikimedia Commons
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दुनिया भर में मैंग्रोव वन तटीय तूफानों से उस इलाके की रक्षा करते हैं। जिन इलाकों में मैंग्रोव वन कवर अधिक होता है वहां दूसरे क्षेत्रों की तुलना में तूफानों का असर तो कम होता ही है साथ ही वहां तूफान आने के बाद बहाली भी अधिक तेजी से होती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से मैंग्रोव वनों को होने वाला नुकसान अस्थायी पतझड़ से लेकर वनों के खत्म होने की दर भी अलग-अलग होती है। 

निचले इलाकों को आने वाले तूफानों से बचाने के लिए केवल मैंग्रोव वन ही काफी नहीं है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि तूफान आने के बाद मानव निर्मित बुनियादी ढांचे और प्राकृतिक तरीके से बने स्थानों और तटीय आर्द्रभूमि पर अलग-अलग तरह के प्रभाव पड़ते हैं। यह अध्ययन नासा और फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ने साथ मिलकर किया है, इसकी अगुवाई प्रोफेसर डेविड लागोमासिनो ने की है।   

उन्होंने अध्ययन में तूफान इरमा को उदाहरण के तौर पर लिया है। तूफान के प्रभावों पर गौर किया गया है, जिसने 2017 में फ्लोरिडा को भारी नुकसान पहुंचाया था। इसकी वजह से राज्य के मैंग्रोव जंगलों को भी काफी नुकसान हुआ। शोध दल ने पाया कि बड़े तूफान आने से जहां एक ओर जंगल आपको बचाते हैं वहीं दूसरी और जंगलों को बहुत ज्यादा नुकसान होता है।

दुनिया भर में मैंग्रोव वन अक्सर तूफान के बाद क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन लैगोमासिनो ने कहा कि फ्लोरिडा में जंगलों ने अपनी संरचना, स्थिति और प्रजातियों की संरचना के कारण अतीत में आए तूफानों के अनुसार अपने आप को ढाल लिया है। तूफान के चलते लगभग 11,000 - 24,000 हेक्टेयर से अधिक फुटबॉल के मैदान के बराबर के आकार की जगह पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी।

लैगोमासिनो ने कहा मानव निर्मित बाधाएं, साथ ही प्राकृतिक परिवर्तन, एक क्षेत्र के माध्यम से पानी के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं। सड़क और बांध जैसी चीजें उन क्षेत्रों के बीच पानी के प्रवाह को रोक सकती हैं। पानी की कमी अत्यधिक शुष्क परिस्थितियों और अत्यधिक नमी वाली स्थितियों को जन्म दे सकती है, जो दोनों आर्द्रभूमि और वनस्पतियों के लिए खतरनाक हो सकती हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि मानव निर्मित रुकावटों से सतह पर पानी लंबे समय तक रहता है, इसमें वृद्धि हो सकती है, जिससे बारीक जड़ सामग्री का तेजी से नाश हो सकता है। खारे पानी में वृद्धि तब अधिक होती है जब तूफान की घटनाओं में वृद्धि होती है और अवरोध जल प्रवाह में बाधा डालते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमने फ्लोरिडा में जो सीखा है वह उत्तरी कैरोलिना और दुनिया भर के अन्य तटीय क्षेत्रों के लिए उपयोगी हो सकता है। हमारे नतीजे बताते हैं कि परिदृश्य की ऊंचाई, पूरे परिदृश्य में पानी से जुड़ाव और तूफान कमजोर क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो निचले इलाके जहां बाढ़ के बाद जल निकासी की क्षमता नहीं होती हैं, वे लंबे समय तक नुकसान के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।  

अध्ययन ने उन बदलावों का सुझाव दिया जो भविष्य में मौसम की खतरनाक घटनाओं का सामना करते समय तटीय व्यवस्था में सुधार के लिए किए जा सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:

पारंपरिक तूफान रेटिंग प्रणाली में तूफान में होने वाली वृद्धि और भूविज्ञान के लिए जिम्मेदार नए मैट्रिक्स जोड़ना।

कमजोर क्षेत्रों में भौतिक और जैविक प्रक्रियाओं की पहचान करने में मदद करने के लिए निचले इलाकों में फील्ड रिसर्च स्टेशन स्थापित करना।

जल निकासी घाटियों की निगरानी और जल संपर्क में सुधार के लिए नियमित तटीय सर्वेक्षण करना।

नए ज्वारीय चैनल बनाने में मदद करने के लिए ताजे पानी के प्रवाह में सुधार करना।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन में लागोमासिनो ने कहा हमें उम्मीद है कि हमारे शोध की जानकारी तूफान के बाद की प्रक्रिया में सुधार करने में मदद करेगी। अगर इन क्षेत्रों को समय से पहले पहचाना जाए, तो आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

यहां बड़ी बात यह है कि तूफान के दौरान तेज हवाएं बहुत नुकसान करती हैं। अन्य कारक जैसे तटीय इलाकों की ऊंचाई में मामूली बदलाव और तूफान की वृद्धि, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, पहले हुए नुकसान के बाद पारिस्थितिकी तंत्र कैसे ठीक होते हैं। तूफान के मौसम से पहले इन कारणों को ध्यान में रखने से खतरे में रह रहे लोगों के लिए लंबे समय तक प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। 

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