
हर साल 19 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय ओरांग उटान दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन खास जीवों को समर्पित है जिन्हें हम ओरांग उटान के नाम से जानते हैं। ये बेहद प्यारे, समझदार और करिश्माई जानवर हैं, लेकिन आज ये विलुप्ति के कगार पर खड़े हैं। इस दिन का मकसद लोगों को जागरूक करना कि अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में ये "जंगल के जीव" हमेशा के लिए विलुप्त हो सकते हैं।
यह दिन केवल ओरांग उटान की तारीफ करने का मौका नहीं है, बल्कि एक चेतावनी और जागरूकता का भी दिन है। यह हमें बताता है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियां इन्हें कभी नहीं देख पाएंगी। इस पहल की शुरुआत वर्ल्ड ओरांग उटान इवेंट्स और ओरांग उटान आउटरीच जैसी संस्थाओं ने की थी। इनका मकसद ओरांग उटान को उनके प्राकृतिक घरों में सुरक्षित रखना है।
ओरांग उटान मनुष्य के सबसे करीबी रिश्तेदारों में से एक हैं। इनका 97 फीसदी डीएनए इंसानों से मिलता-जुलता है। ओरांग उटान शब्द दो मलय और इंडोनेशियाई शब्दों से बना है “ओरंग” (मनुष्य) + “गुटान” (जंगल) यानी “जंगल का इंसान”। इन्हें "फॉरेस्ट के बीकन" भी कहा जाता है क्योंकि ये जंगल की सेहत और भविष्य से गहराई से जुड़े हैं।
आज ओरंगुटान की हालत बहुत खराब है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्हें क्रिटिकली एंडेंजर्ड यानी गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति माना गया है। इनके लिए सबसे बड़े खतरों में जंगलों को काटा जाना है, बोर्नियो और सुमात्रा के जंगल बड़ी तेजी से काटे जा रहे हैं। इन जगहों पर पाम ऑयल की खेती के लिए जंगल खत्म हो रहे हैं।
शिकार और पालतू व्यापार के कारण कई बार शिकारियों द्वारा मांओं को मार दिया जाता है ताकि उनके बच्चों को पालतू जानवर की तरह बेचा जा सके।
धीमी प्रजनन दर की वजह से ओरांग उटान मादा लगभग हर सात से नौ साल में केवल एक बच्चे को जन्म देती है। इस कारण इनकी संख्या बढ़ने में बहुत समय लगता है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो अगले 50 सालों में जंगली ओरांग उटान जंगलों से पूरी तरह गायब हो सकते हैं।
ओरांग उटान में बहुत सारी खास बातें हैं जो उन्हें इंसानों जैसा और बेहद आकर्षक बनाती हैं। इनके चेहरे पर खुशी, उदासी और जिज्ञासा जैसी भावनाएं साफ झलकती हैं। ये सामान्यतः शांत और कोमल स्वभाव वाले होते हैं। ओरंगुटान मां अपने बच्चे को सात से आठ साल तक संभालती है। यह रिश्ता बहुत गहरा और भावुक होता है।
छोटे ओरांग उटान खेलना, झूलना और चीजों को समझने की कोशिश करना पसंद करते हैं। इनके संकटग्रस्त होने की वजह से लोग इनके प्रति और ज्यादा दया और प्यार महसूस करते हैं। देखभाल करने वालों के साथ ये हाथ पकड़ना, गले लगाना जैसे इंसानी अंदाज में अपनापन जताते हैं।
संरक्षण की कोशिशें
कई संगठन ओरांग उटान को बचाने के लिए काम कर रहे हैं इनमें सुमात्रन ओरांग उटान कंजर्वेशन प्रोग्राम (एसओसीपी) – घायल और बेघर ओरंगुटान को बचाता है। ओरांग उटान कंजर्वेंसी जो शोध और जंगलों की सुरक्षा में मदद करता है। ईको-टूरिज्म जो स्थानीय लोगों को शामिल करके टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने का काम करता है।
अंतरराष्ट्रीय ओरांग उटान दिवस हमें याद दिलाता है कि ये “जंगल के जीव” केवल एक प्रजाति नहीं हैं, बल्कि पूरे जंगल और धरती की सेहत के लिए जरूरी हैं।अगर हम ओरांग उटान और उनके घर यानी वर्षावनों को बचाते हैं, तो असल में हम अपनी ही धरती, जलवायु और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखते हैं। आज का दिन हमें यही सिखाता है कि ओरंगुटान को बचाना, इंसानियत को बचाना है।