अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस: दुनिया के सबसे तेज धावक को बचाना जरूरी

दुनिया के सबसे तेज धावक चीते की घटती आबादी, संरक्षण प्रयासों और भारत में सफल पुनर्वास परियोजना पर केंद्रित जागरूकता का संदेश।
दुनिया में लगभग 7,100 चीते बचे हैं और वे अपने 91 फीसदी ऐतिहासिक क्षेत्र से गायब हो चुके हैं।
दुनिया में लगभग 7,100 चीते बचे हैं और वे अपने 91 फीसदी ऐतिहासिक क्षेत्र से गायब हो चुके हैं।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, वेलाट्रिक्स
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सारांश
  • चार दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य चीते की घटती आबादी के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

  • दुनिया में लगभग 7,100 चीते बचे हैं और वे अपने 91 फीसदी ऐतिहासिक क्षेत्र से गायब हो चुके हैं।

  • विन्सेंट वैन डेर मेरवे ने चीता मेटापॉपुलेशन पहल के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में चीतों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  • भारत के प्रोजेक्ट चीता ने उल्लेखनीय सफलता पाई, 2025 तक कुल 32 चीते, जिनमें 21 भारत में जन्मे शावक शामिल हैं।

  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता ‘मुखी’ द्वारा पांच शावकों का जन्म परियोजना की लंबे समय की सफलता का बड़ा संकेत माना जा रहा है।

हर साल चार दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत साल 2010 में चीता कंजर्वेशन फंड ने की थी। इसका उद्देश्य दुनिया के सबसे तेज भूमि का जीव चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस) के घटते हुए अस्तित्व और सिकुड़ते आवास के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना है।

तेज रफ्तार के बावजूद धीमी होती आबादी

चीता आज दुनिया की सबसे संकटग्रस्त बड़ी बिल्लियों में से एक है। अनुमान है कि जंगली में इसके केवल 7,100 के आसपास ही जीवित हैं। यह अपने ऐतिहासिक आवास क्षेत्र के लगभग 91 फीसदी हिस्से से गायब हो चुका है। अफ्रीका के कुछ संरक्षित क्षेत्रों में इसकी बिखरी हुई आबादी बची है, जबकि ईरान में एशियाई चीते की एक अत्यंत संकटग्रस्त छोटी आबादी जीवित है।

प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, चीते को संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है। पिछले लगभग 15 वर्षों में इसकी आबादी में 37 फीसदी की कमी आई है। इसके पीछे के प्रमुख कारण आवास का लगातार घटता क्षेत्र, मानव-वन्यजीव संघर्ष और शिकार के लिए उपलब्ध प्राणियों की कमी आदि है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में भी गिरावट जारी रहने का खतरा है।

एक संरक्षणवादी को श्रद्धांजलि

मार्च 2025 में प्रसिद्ध चीता संरक्षणवादी विन्सेंट वैन डेर मेरवे का निधन हो गया। मोंगाबे के संस्थापक रेट बटलर ने उनके सम्मान में एक विस्तृत शोक-लेख लिखा, जिसमें मेरवे के अनमोल योगदान को रेखांकित किया गया।

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मेरवे द्वारा स्थापित चीता मेटापॉपुलेशन इनिशिएटिव ने दक्षिण अफ्रीका में चीतों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैसे-जैसे चीतों की आबादी छोटे-छोटे संरक्षित क्षेत्रों में बंटती गई, उनमें इनब्रीडिंग यानी आनुवंशिक संकुचन का खतरा बढ़ने लगा। इसे रोकने के लिए मेरवे की टीम अलग-अलग अभयारण्यों के बीच वयस्क चीतों का स्थानांतरण करती थी, ताकि उनकी आनुवंशिक विविधता बनी रहे।

रेट बटलर के शब्दों में, उनकी विधियां कारगर साबित हुईं। उनकी कोशिशों से दक्षिण अफ्रीका दुनिया का अकेला देश बना जहां जंगली चीतों की संख्या बढ़ रही है। यह उपलब्धि दुनिया भर के संरक्षण प्रयासों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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भारत में चीतों की वापसी: उल्लेखनीय उपलब्धि

भारत में चीते साल 1952 में विलुप्त घोषित कर दिए गए थे। लगभग 70 सालों के बाद, देश ने इनके पुनर्निवेश के लिए प्रोजेक्ट चीता शुरू किया। इसके तहत सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ चीतों को और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया।

शुरुआत में इस परियोजना पर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए। कुछ चीतों की मृत्यु होने पर दक्षिण अफ्रीकी संरक्षणवादियों ने इसे “अनुचित” करार दिया। लेकिन समय के साथ परियोजना ने आश्चर्यजनक सफलता दिखाई।

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दिसंबर 2025 तक भारत में कुल 32 चीते मौजूद हैं, जिनमें 21 शावक भारत में ही जन्मे हैं। यह किसी भी बड़े मांसाहारी जीव के पुनर्वास कार्यक्रम के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

इन भारतीय-जनित चीतों ने आबादी को आगे बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभाई है। नवंबर 2025 में मादा चीता मुखी ने पांच स्वस्थ शावकों को जन्म दिया, जो इस परियोजना की गति और लंबे समय की संभावनाओं को और मजबूत करता है।

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आगे का रास्ता

चीते को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। अफ्रीका और एशिया में चीता आबादी तेजी से छोटे-छोटे इलाकों में सीमित हो रही है। इसके लिए आवश्यक है:

  • सुरक्षित और जुड़े हुए आवास क्षेत्र

  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी

  • शिकार योग्य प्राणियों की उपलब्धता

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने वाली नीतियां

  • वैज्ञानिक निगरानी और आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने के प्रयास

अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि दुनिया का यह अनोखा तेज धावक सिर्फ गति का प्रतीक नहीं, बल्कि हमारे प्राकृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे बचाना हमारी साझा जिम्मेदारी है।

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