सितंबर 2022 में ‘प्रोजेक्ट चीता’ या चीता पुनर्वास परियोजना के तहत पहली बार नामीबिया से भारत में आठ चीते लाए गए थे। इनमें से पांच मादाएं व शेष तीन नर थे। प्रोजेक्ट चीता को मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
इस परियोजना की देखरेख के लिए सरिस्का और पन्ना टाइगर रिजर्व में पहली बार सफल बाघ पुनरुद्धार में शामिल प्रतिष्ठित विशेषज्ञों तथा अधिकारियों की एक समिति भी गठित की गई है।
अब तक पांच चीतों की मौत
दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए 20 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया था, जिसमें से अब तक पांच वयस्क चीतों की मृत्यु हो चुकी है। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, प्रोजेक्ट चीता के कार्यान्वयन का काम शीर्ष संस्था, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को दिया गया था, जिसके शुरुआती विश्लेषण के अनुसार, सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई हैं।
प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा गया है कि, मीडिया में ऐसी रिपोर्टें हैं जिनमें चीतों की मौत के लिए उनके रेडियो कॉलर आदि सहित अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है। ऐसी रिपोर्टें किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं बल्कि अटकलें और अफवाहें हैं।
प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि, प्रोजेक्ट चीता को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और सफलता और विफलता के संदर्भ में परिणाम का निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी, क्योंकि चीतों द्वारा बच्चों को जन्म देना एक लंबी अवधि की परियोजना है।
पिछले 10 महीनों में, इस परियोजना में शामिल सभी हितधारकों ने चीता प्रबंधन, निगरानी और सुरक्षा में अहम जानकारी हासिल की है। ऐसी आशा है कि परियोजना लंबे समय में सफल होगी और इस समय इस पर अटकलें लगाने का कोई कारण नहीं है।
प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, बाहर से लाए गए चीतों के संरक्षण के प्रयास जारी हैं। चीतों की मौत के कारणों की जांच के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों और पशु चिकित्सकों से नियमित आधार पर परामर्श किया जा रहा है।
इसके अलावा, मौजूदा निगरानी प्रोटोकॉल, सुरक्षा स्थिति, प्रबंधकीय जानकारी, पशु चिकित्सा सुविधाएं, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पहलुओं की समीक्षा स्वतंत्र राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा की जा रही है। चीता परियोजना संचालन समिति परियोजना की बारीकी से निगरानी कर रही है और उसने अब तक इसके कार्यान्वयन पर संतोष व्यक्त किया है।
उपरोक्त के अलावा चीतों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित को लागू करने की बात कही गई है :
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, चीते को सात दशकों के बाद भारत वापस लाया गया है और इतने बड़े प्रोजेक्ट में उतार-चढ़ाव आना तय है। विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका के वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि अफ्रीकी देशों में चीतों के पुन:प्रवेश के प्रारंभिक चरण में प्रविष्ट चीतों की मृत्यु 50 प्रतिशत से अधिक हुई।
किस कारण हो सकती है चीतों की मृत्यु?
प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा गया है कि, चीतों की मृत्यु अंतर-प्रजाति के झगड़े, बीमारियों, दुर्घटनाओं के कारण हो सकती है। शिकार करने के दौरान लगी चोट, अवैध शिकार, सड़क पर हमला, जहर और अन्य शिकारियों द्वारा शिकारी हमले आदि के कारण भी मृत्यु हो सकती है।
किस तरह की जा रही है चीतों की निगरानी?
प्रोजेक्ट चीता के तहत, पहली बार अंतरमहाद्वीपीय जंगल से कुल 20 रेडियो कॉलर लगे चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के जंगल में लाया गया था। अनिवार्य क्वारंटाइन पीरियड के बाद, सभी चीतों को बड़े अनुकूलन बाड़ों में भेज दिया गया। वर्तमान में, 11 चीते आजादी से पार्क में घूम रहे हैं। भारतीय धरती पर जन्मे एक शावक सहित पांच जानवर क्वारंटाइन बाड़ों में हैं। प्रत्येक चीते की एक निगरानी टीम द्वारा चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है।
प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, कूनो राष्ट्रीय उद्यान में क्षेत्रीय अधिकारियों के साथ निकट समन्वय में काम करने के लिए अधिकारियों की एक समर्पित एनटीसीए टीम तैनात की गई है। यह टीम बेहतर प्रबंधन के लिए आवश्यक स्वास्थ्य और संबंधित कार्यों सहित विभिन्न प्रबंधन पहलुओं पर निर्णय लेने के लिए इलाके की निगरानी करने वाली टीमों द्वारा एकत्र किए गए वास्तविक आंकड़ों का विश्लेषण करने में लगी हुई है।