विलुप्ति के कगार पर पहुंची एशियाई चीता ने दुर्लभ शावकों को दिया जन्म

चीता एक बार भारत के पूर्वी इलाकों में रहते थे, अब वे दक्षिण अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं, लेकिन वे उत्तरी अफ्रीका और एशिया से गायब हो गए हैं।
विलुप्ति के कगार पर पहुंची एशियाई चीता ने दुर्लभ शावकों को दिया जन्म
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एशियाई चीता एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय चीता उप-प्रजाति है जो वर्तमान में ईरान में पाए जाते हैं। यह बहुत पहले अरब प्रायद्वीप और निकट पूर्व से कैस्पियन क्षेत्र, ट्रांसकेशस, किजिल कुम रेगिस्तान और भारत में पाए जाते थे, लेकिन 20 वीं शताब्दी के दौरान ये इन क्षेत्रों से विलुप्त हो गए थे।

अब सुखद समाचार यह है की इनकी संख्या ईरान में बढ़ रही है। ईरान के पर्यावरण विभाग के प्रमुख के मुताबिक वहां एक एशियाई चीता ने तीन स्वस्थ शावकों को जन्म दिया है। इस लुप्तप्राय प्रजाति वाली मादा चीता  को पहली बार जंगल से बाहर बाड़े में रखा गया है।

अली सालाजेघ ने बताया कि ईरान इस्लामी गणराज्य में पाए जाने वाले मात्र एक दर्जन चीतों में से एक ने सिजेरियन सेक्शन द्वारा तीन स्वस्थ शावकों को जन्म दिया है।

उन्होंने बताया कि यह जगल को छोड़कर कैप्टिविटी या बाड़े में रखें गए पहले एशियाई चीता का पहला जन्म है। सालाजेघे ने कहा इन शावकों को संरक्षित करके, हम चीता की आबादी को घर के बाड़े में और फिर धीरे-धीरे इनकों जंगलों में छोड़ सकते हैं।

उन्होंने कहा शावकों का जन्म तेहरान के पूर्व सेमनान प्रांत के टूरान वाइल्डलाइफ पनाहगाह में हुआ था, जहां मां और उसके बच्चों की गहन देखभाल की जा रही है।

चीता और एशियाई चीता में क्या अंतर है?

अफ्रीकी चीतों की तुलना में, एशियाई चीता छोटा होता है, लेकिन उसका आवरण मोटा, एक अधिक शक्तिशाली गर्दन और पतले पैर होते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि वे लंबे पैरों वाली अफ्रीकी प्रजातियों की तुलना में ये तेज होते हैं, लेकिन किसी भी परीक्षण ने इस सिद्धांत की पुष्टि नहीं की है।

चीता 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंचने वाला दुनिया का सबसे तेज, धरती पर रहने वाला जानवर है। चीता एक बार भारत के पूर्वी इलाकों से सेनेगल के अटलांटिक तट और उससे आगे के आवासों तक पहुंच गए थे। वे आज दक्षिण  अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं, लेकिन वे उत्तरी अफ्रीका और एशिया से से गायब हो गए हैं।

ईरान दुनिया के उन अंतिम देशों में से एक है जहां एशियाई चीते जंगल में रहते हैं और यहां 2001 में इनके लिए संयुक्त राष्ट्र की सहायता से सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया था।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के मुताबिक, उप-प्रजाति "एसिनोनिक्स जुबेटस वेनेटिकस", जिसे आमतौर पर एशियाई चीता के रूप में जाना जाता है, यह गंभीर रूप से संकटग्रस्त है।

वहीं जनवरी में डेप्युटी पर्यावरण मंत्री हसन अकबरी ने कहा कि ईरान में अब केवल एक दर्जन एशियाई चीते ही रहते हैं, 2010 में इनकी अनुमानित संख्या 100 से कम थी। उनकी स्थिति बेहद गंभीर है, अकबरी ने बताया कि ये जानवर सूखे, शिकारियों और कार दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं।

ईरानी चीता सोसाइटी का कहना है कि अनोखी बिल्लियों के लिए बची हुई रहने की जगहें मियांदाश वन्यजीव पनाहगार और पूर्वोत्तर ईरान में टूरन बायोस्फीयर रिजर्व है। यहां बताते चले कि उपरोक्त जानकारी ईरान के आधिकारिक सरकारी समाचार एजेंसी इरना से ली गई है।

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