संकट में हैं भारतीय नदियों के बड़े जलीय जीव, शोध में संरक्षण की अपील

भारत की नदियों में ताजे पानी के विशाल जीवों पर संकट। मछलियां, सरीसृप और स्तनधारी के संरक्षण की बड़ी चुनौती
ये बड़े जलीय जीव नदियों के स्वास्थ्य के संकेतक हैं और भारत की प्राकृतिक संपदा में लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करते हैं।
ये बड़े जलीय जीव नदियों के स्वास्थ्य के संकेतक हैं और भारत की प्राकृतिक संपदा में लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करते हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • भारत के ताजे पानी के मेगाफौना की विविधता और संकट: भारत में 35 प्रजातियां हैं, जिनमें मछलियां, सरीसृप और स्तनधारी शामिल हैं और अधिकांश संकटग्रस्त या आंकड़ों के अभाव वाली हैं।

  • पारिस्थितिकी और आर्थिक महत्व: ये बड़े जलीय जीव नदियों के स्वास्थ्य के संकेतक हैं और भारत की प्राकृतिक संपदा में लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करते हैं।

  • नीति और संरक्षण में कमी: विशाल मछलियों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम में कम संरक्षण मिलता है, वैज्ञानिक जानकारी, कानूनी सुरक्षा और आईयूसीएन स्थिति में अक्सर अंतर है।

  • संरक्षण की आवश्यकता और सुझाव: संरक्षण नीतियां समग्र दृष्टिकोण से बनानी चाहिए, मेगाफौना को पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक मानकर संरक्षित करना चाहिए।

भारत की नदियां और मीठे पानी की जलधाराएं सिर्फ पानी का स्रोत नहीं हैं, बल्कि यह जैव विविधता का घर भी हैं। इनमें रहने वाले बड़े जलीय जीव, जिन्हें वैज्ञानिक फ्रेशवाटर मेगाफौना कहते हैं, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

इनमें बड़ी मछलियां, बड़े सरीसृप और स्तनधारी शामिल हैं। हाल ही में बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में प्रकाशित एक अध्ययन ने पहली बार भारत के ताजे पानी के इन विशाल जीवों को एक साथ वैज्ञानिक नजरिया दिया है।

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यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि इन जीवों पर अब तक कितनी शोध हुई है, किस क्षेत्र में कमी है और जलवायु परिवर्तन के तेजी से बदलते माहौल में उनकी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए।

भारत के ताजे पानी के मेगाफौना की विविधता

अध्ययन के अनुसार, भारत के ताजे पानी के मेगाफौना में कुल 35 प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें 19 मछलियों की प्रजातियां, नो सरीसृप और सात स्तनधारी प्रजातियां शामिल हैं।

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इनमें से 51 फीसदी प्रजातियां संकटग्रस्त, अत्यधिक संकटग्रस्त या आंकड़ों के अभाव वाली हैं। कुछ प्रमुख और गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों में - गंगा की शार्क, सिंधु नदी की डॉल्फिन, गंगा नदी डॉल्फिन और एल्ड का हिरण शामिल है। कई प्रजातियां अब केवल कुछ सौ तक सीमित हैं या इनके समूह बेहद टुकड़ों में बंट गए हैं।

पारिस्थितिकी और आर्थिक महत्व

ये बड़े जलीय जीव न केवल नदियों के स्वास्थ्य का संकेत देते हैं, बल्कि भारत की प्राकृतिक संपदा का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। शोध में बताया गया कि ये प्रजातियां भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना लगभग 1.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करती हैं। ये जीव पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में मदद करते हैं, जैसे कि मछलियां भोजन श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और सरीसृप तथा स्तनधारी नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखते हैं।

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अध्ययन में लगभग 2,500 शोध पत्रों का विश्लेषण किया गया। इसमें शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक का उपयोग किया, जिसमें केवल साइंटिफिक पेपर के ‘डिस्कशन’ भाग को टेक्स्ट-माइनिंग से देखा गया। इससे शोध की असली प्रवृत्तियों और सवालों को बेहतर ढंग से समझा जा सका।

मुख्य निष्कर्ष यह है कि भारत के ताजे पानी के मेगाफौना पर शोध मछलियों पर अधिक केंद्रित है, जबकि बड़े सरीसृप और स्तनधारी कम ध्यान आकर्षित कर पाए हैं। इसका मतलब है कि पारिस्थितिकी तंत्र की पूरी तस्वीर सामने नहीं आ रही है और नदियों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी रणनीतियां कमजोर हो सकती हैं।

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नीति और संरक्षण में कमी

शोध से यह भी सामने आया कि विशाल मछलियों को भारत के वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट के तहत सबसे कम संरक्षण मिलता है। यानी, हर शोध नीति में बदल नहीं पाता और हर नीति वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं होती।

अध्ययन में यह भी दिखाया गया कि वैज्ञानिक जानकारी, कानूनी संरक्षण और प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की वैश्विक स्थिति में अक्सर अंतर होता है। हालांकि कभी-कभी यह अंतर नीति में बदलाव के समय पटा जा सकता है, जैसे कि वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट में संशोधन के दौरान। ऐसे मौके बहुत ही सीमित होते हैं, इसलिए वैज्ञानिकों को इन अवसरों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

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मुख्य खतरे और संरक्षण की जरूरत

भारत की कुछ बड़ी नदियों में अब भी महाशीर, घड़ियाल, नदी डॉल्फिन और सॉफ्टशेल कछुए साथ रहते हैं। लेकिन वे प्रदूषण और जलवायु चरम परिस्थितियों के खतरे में हैं। अध्ययन में सलाह दी गई है कि संरक्षण की नीतियां इन प्रजातियों को अलग-अलग न देखकर, पूरे ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के संकेतक के रूप में देखें।

यह अध्ययन भारत के ताजे पानी के मेगाफौना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहली बार इन सभी प्रजातियों को एक साथ वैज्ञानिक नजरिए के साथ उभारा गया है। शोध और नीति में असंतुलन को उजागर करता है।

बड़े जलीय जीवों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए साइंस-आधारित, समग्र और सक्रिय नीतियां बनाने का आग्रह करता है। अगर भारत की नदियां और उनके विशाल जीव संरक्षित रहेंगे, तो केवल जैव विविधता ही नहीं, बल्कि हमारी प्राकृतिक और आर्थिक संपदा भी सुरक्षित रहेगी।

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