भारतीय वैज्ञानिकों को तमिलनाडु में डुगोंग की त्वचा और अंगों में मिले जहरीली धातुओं के सबूत

चौंकाने वाली बात यह रही कि अजन्मे शावकों में भी मरकरी पाई गई, जो दर्शाती है कि माताओं से गर्भ में ही यह जहर उनके अजन्मे शावकों तक पहुंच रहा है
घास चरता नर डुगोंग; फोटो: आईस्टॉक
घास चरता नर डुगोंग; फोटो: आईस्टॉक
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समुद्र में बढ़ता धातु और प्रदूषक तत्वों का जहर अब समुद्री जीवों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। ऐसा ही कुछ भारत में भी देखने को मिला है। वैज्ञानिकों को तमिलनाडु के मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी के तट पर मृत पाए गए डुगोंग की त्वचा और ऊतकों में जहरीली धातुओं और तत्वों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं।

यह जानकारी देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि डुगोंग समुद्रों में पाए जाने वाले शाकाहारी जीव हैं, जो पूरी तरह समुद्री घास (सीग्रास) पर निर्भर रहते हैं। यही वजह है कि इन्हें समुद्री गाय के रूप में भी जाना जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बढ़ते प्रदूषण, आवासों को होते नुकसान और मछलियों के अनियंत्रित शिकार के चलते इन समुद्री जीवों की संख्या लगातार घट रही है।

इस विषय में किए पिछले अध्ययनों में भी पाया गया है कि समय के साथ डुगोंग के शरीर में भारी धातुओं और विषैले तत्त्वों का जमाव बढ़ रहा है, लेकिन दुनियाभर में, खासकर भारत में, इस विषय पर पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं थी।

इसी कड़ी में, भारतीय वैज्ञानिकों ने 2018 से 2023 के बीच तमिलनाडु के पाक और मन्नार की खाड़ी के तट पर मृत पाए गए 46 डुगोंग के ऊतकों का अध्ययन किया है। इस दौरान शोधकर्ताओं ने इन जीवों की त्वचा, वसा परत, यकृत (लिवर), फेफड़ों, गुर्दों और हृदय के नमूनों की जांच की। इस अध्ययन में पांच विषैले तत्वों आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, पारा (मरकरी) और सीसा (लेड) की मात्रा का विश्लेषण किया गया।

अध्ययन से पता चला है कि समुद्र का पानी और घास (सीग्रास), जिन पर डुगोंग निर्भर हैं, वो धीरे-धीरे उनके शरीर में विषैले तत्त्व पहुंचा रहे हैं।

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घास चरता नर डुगोंग; फोटो: आईस्टॉक

अध्ययन में पाया गया कि इन जीवों के शरीर के अलग-अलग अंगों में विषैले तत्वों के निशान मौजूद थे। डुगोंग के गुर्दे और त्वचा में आर्सेनिक के उच्च स्तर की मौजूदगी के सबूत मिले।

अजन्मे शावकों में भी पाई गई मरकरी

वहीं हृदय और गुर्दे में कैडमियम, त्वचा और वसा परत (ब्लबर) में क्रोमियम, त्वचा और फेफड़ों में सीसा (लेड) मौजूद था, जबकि लिवर और किडनी में मुख्य रूप से पारा (मरकरी) की मौजूदगी के सबूत मिले। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों ने डुगोंग की त्वचा, वसा परत, हृदय और फेफड़ों में भारी धातुओं और विषैले तत्त्वों के जमाव को दर्ज किया।

अध्ययन से यह भी सामने आया है कि नर डुगोंग में इन धातुओं की मात्रा मादाओं की तुलना में अधिक थी। उम्र और आकार के साथ इन धातुओं के स्तर में वृद्धि देखी गई, जो दर्शाता है कि समय के साथ शरीर में इनका जमाव (बायोएक्यूम्युलेशन) बढ़ता जाता है। यही वजह है कि बुजुर्ग डुगोंग के शरीर में इन धातुओं की मात्रा युवा डुगोंग की तुलना में कहीं अधिक थी।

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सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि अजन्मे शावकों में भी मरकरी पाई गई, जो दर्शाती है कि माताओं से गर्भ में ही यह जहर उनके अजन्मे शावकों तक पहुंच रहा है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इन धातुओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से डुगोंग की किडनी को नुकसान हो सकता है। साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी और प्रजनन क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक चूंकि ये धातुएं और विषैले तत्व मुख्य रूप से प्रदूषित समुद्री घास और तटीय भोजन श्रृंखला के जरिए डुगोंग के शरीर में प्रवेश कर रहे हैं, ऐसे में पाक और मन्नार की खाड़ी जैसे पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस समस्या को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

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