बढ़ता तापमान नहीं, बल्कि बढ़ती बारिश से है जिराफ के अस्तित्व को खतरा: अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक, बारिश के नमी वाले मौसम के दौरान परजीवियों और बीमारी में होने वाली वृद्धि के कारण वयस्क जिराफ और उनके बच्चों के जीवित रहने के आसार कम हो गए हैं
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, सैयद अब्दुल खालिक
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पूर्वी अफ्रीकी सवाना में जिराफ अनोखे तरीके से जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के अनुकूल हो रहे हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं द्वारा उन्हें भारी बारिश से खतरा होने की बात कही गई है। यह अध्ययन ज्यूरिख विश्वविद्यालय और पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में वन्यजीवों की आबादी में भारी गिरावट आने की आशंका है। लेकिन न केवल जिराफ, बल्कि किसी भी बड़ी अफ्रीकी शाकाहारी प्रजातियों के जीवित रहने की दर पर जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधि दोनों के प्रभावों के बारे में पहले से बहुत कम जानकारी है।

अब ज्यूरिख विश्वविद्यालय और पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 20 साल तक अध्ययन किया। जो कि, तंजानिया के तारंगीरे क्षेत्र में जिराफ की आबादी पर किया गया अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है।

अध्ययन क्षेत्र एक हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ है, जिसमें संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और बाहर के क्षेत्र शामिल हैं। उम्मीद के विपरीत, उच्च तापमान वयस्क जिराफ के अस्तित्व के लिए अच्छा पाया गया, जबकि बारिश के नमी वाले मौसम ने वयस्क और इनके बच्चों के अस्तित्व को बुरी तरह प्रभावित किया।

जिराफ के जीवित रहने पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

ज्यूरिख विश्वविद्यालय में विकासवादी जीव विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन विभाग के शोध सहयोगी मोनिका बॉन्ड के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया है।

शोध  टीम ने जिराफों के जीवित रहने की संभावना पर तापमान, वर्षा और वनस्पति, हरियाली के स्थानीय विसंगतियों के प्रभावों की मात्रा निर्धारित की। उन्होंने यह भी पता लगाया कि, क्या जिराफों पर जलवायु का अधिक प्रभाव पड़ा है जो संरक्षित इलाकों के बाहरी इलाकों में की जा रही मानव गतिविधि से भी प्रभावित थे।

बॉन्ड ने कहा, जिराफ जैसे लंबे समय तक रहने वाले और धीमी गति से प्रजनन करने वाले जानवरों पर जलवायु और मानव दबाव के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए लंबी अवधि और बड़े क्षेत्र में उनकी आबादी की निगरानी की आवश्यकता होती है। जो जलवायु परिवर्तन और किसी अन्य प्रभाव दोनों का पता लगाने के लिए पर्याप्त है।

टीम ने तंजानिया की छोटी अवधि की बारिश, लंबी अवधि की बारिश और शुष्क मौसम के दौरान स्थानीय वर्षा, वनस्पति हरियाली और तापमान पर लगभग 20 सालों तक आंकड़े इकट्ठा किए और फिर अंतिम आठ वर्षों में सभी उम्र और लिंगों के 2,385 जिराफों का अनुसरण किया। 

जिराफ के जीवित रहने पर तापमान का आश्चर्यजनक प्रभाव

टीम ने पूर्वानुमान लगाया था कि, उच्च तापमान वयस्क जिराफों को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि उनके बहुत बड़े शरीर का आकार उन्हें ज़्यादा गरम कर सकता है, लेकिन वास्तव में उन्होंने पाया कि उच्च तापमान ने वयस्क जिराफों के जीवित रहने में मदद की।

प्रोफेसर डेरेक ली ने कहा कि, जिराफ में कई शारीरिक विशेषताएं होती हैं जो इसे ठंडा रखने में मदद करती हैं, जैसे बाष्पीकरणीय गर्मी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए लंबी गर्दन और पैर, विशेष नाक गुहाएं, धमनियों का एक जटिल नेटवर्क जो मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करता है, ये ऐसी चीजें है जो जो गर्मी को बाहर निकाल देते हैं। डेरेक ली, पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान के एसोसिएट रिसर्च प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता हैं।

हालांकि, ली ने यह भी बताया कि, अध्ययन की अवधि के दौरान तापमान जिराफों के लिए सहन करने की सीमा से अधिक नहीं हो सकता है। भविष्य में भीषण लू या हीटवेव एक सीमा को सामने ला सकती है जिससे बड़े पैमाने पर इन जानवरों को नुकसान हो सकता है।

भारी बारिश वनस्पति के पोषण को कम करते हुए परजीवियों को बढ़ा सकती है

बारिश के नमी वाले मौसम के दौरान वयस्क जिराफ और उनके बच्चों के जीवित रहने की संभावना कम हो गई थी, जिसके लिए शोधकर्ताओं ने परजीवियों और बीमारी में होने वाली वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया

तारंगीरे क्षेत्र में किए गए एक पिछले अध्ययन से पता चला है कि शुष्क मौसम की तुलना में बारिश के मौसम में जिराफ गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परजीवी की तीव्रता अधिक पाई गई। भारी बाढ़ के कारण जिराफों की मृत्यु दर को बढ़ाने वाली बीमारियों का गंभीर प्रकोप हुआ, जैसे कि रिफ्ट वैली बुखार वायरस और एंथ्रेक्स आदि।

वर्तमान अध्ययन में यह भी पाया गया कि अधिक वनस्पति, हरापन वयस्क जिराफ के जीवित रहने को कम कर देता है, क्योंकि तेजी से बढ़ते पत्ते जिराफ के भोजन में पोषक तत्वों की गुणवत्ता को कम कर देती है।

मानवीय गतिविधियां पहले से घटती आबादी पर अतिरिक्त दबाव डालती है

 प्रोफेसर अर्पत ओजगुल ने कहा, जिराफों की संरक्षित इलाकों के बाहर से जलवायु प्रभाव बढ़ गया था, लेकिन हर मौसम के दौरान ऐसा नहीं देखा गया। हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि संरक्षित क्षेत्रों के पास रहने वाले जिराफ भारी बारिश के दौरान सबसे कमजोर होते हैं।

इन स्थितियों से पशुओं से जुड़े रोग के खतरों के बढ़ने की आशंका होती है। कीचड़ भरे इलाके अवैध शिकार पर लगाम लगाने वाली गश्त इनका रास्ता रोकते हैं, जिससे जिराफों के मौत का खतरा बढ़ जाता है। ओजगुल, ज्यूरिख विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता हैं।

टीम ने निष्कर्ष निकाला कि पूर्वी अफ्रीका में अनुमानित जलवायु परिवर्तन, जिसमें छोटी अवधि के दौरान भारी बारिश होना शामिल है, बड़े स्तनधारियों के लिए पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक में जिराफों के अस्तित्व को खतरे में डाल देगा। प्रभावी भूमि उपयोग योजना और अवैध शिकार पर लगाम लगाने से भविष्य में होने वाले बदलावों के लिए जिराफों के अनुकूल में सुधार किया जा सकता है। यह अध्ययन बायोडायवर्सिटी एंड कंज़र्वेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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