डाउन टू अर्थ विश्लेषण: जैव विविधता को बचाने में कहीं पिछड़ न जाएं हम

कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) का उद्देश्य जैविक संसाधनों के साथ उनसे जुड़े पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण करना है। यह सुनिश्चित करता है कि जैव विविधता का सतत उपयोग हो, उससे मिलने वाले लाभ का न्यायसंगत बटवारा हो, विशेषकर उनको जिन्होंने सदियों से इसका संरक्षण किया है
इलस्ट्रेशंस: रितिका बोहरा / सीएसई
इलस्ट्रेशंस: रितिका बोहरा / सीएसई
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तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के मद्रास क्रोकोडाइल बैंक के एक चौकोर बाड़े में खड़े होकर काली चोकलिंगम एक रसेलवाइपर सांप को उठाते हैं। उनके चारों ओर अन्य विषैले सांप हैं, जिसमें कोबरा, सामान्य करैत और सॉ-स्केल्ड वाइपर प्रमुख हैं। वह रसेलवाइपर सांप को जबड़े की हड्डी से पकड़कर उसकी खोपड़ी को तब तक दबाते हैं, जब तक कि उसकी विष की बूंदें उनकी बोतल में न उतर जाएं।

इन सांपों को “बिग फोर” कहा जाता है। सांप की ये प्रजातियां देश में सर्पदंश का प्रमुख कारण बनती हैं। भारत में सर्पदंश से हर साल लगभग 64,000 मौतें होती हैं।

इन सांपों के विष का उपयोग एंटीडॉट्स सहित कई दवा उत्पादों के बनाने में भी किया जाता है। इनका विष निकालना एक बेहद खतरनाक प्रक्रिया होती है, लेकिन इरुला आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले काली इस प्रक्रिया को बेहद आसानी से करते हैं।

तमिलनाडु के उत्तरी और पश्चिमी जिलों के जंगलों में रहने वाले इरुला समुदाय के लोगों को सांप पकड़ने में महारत हासिल होता है और सांपों के मामले में उनकी समझ भी विशेषज्ञों जैसी होती है।

काली, “इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसाइटी” के सदस्य भी हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि इरुला समुदाय के लोगों को सांप के विष का उचित मूल्य मिले। सॉ-स्केल्ड वाइपर का विष 1.75 लाख रुपए प्रति ग्राम तक में बिक सकता है। 2020-21 के सत्र में विष बेचकर इरुला की इस सहकारी संस्था ने 2.49 लाख रुपए कमाए हैं। इस सहकारी संस्था के सदस्यों को इससे प्रति माह औसतन 15,000 रुपए की कमाई होती है। उन्हें इस काम के लिए एंटीवेनम तैयार करने वाली फार्मा कंपनियों के अलावा उद्योगों और किसानों द्वारा फैक्टरी और खेत में घुस आए सांपो को पकड़ने के लिए पैसा मिलता है।

लाभ की स्थिति

ऐसे ही जैव विविधता से हो रहे फायदे जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र की कन्वेंशन ऑन बायोलॉिजकल डायवर्सिटी(सीबीडी) पिछले माह चर्चा के केंद्र में रहा। इस कन्वेंशन को दुनिया ने 1992 के रियो अर्थ समिट में अपनाया था। यह कन्वेंशन एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय साधन है, जो जैव विविधता के प्रश्न को व्यापक रूप से संबोधित करता है। सीबीडी का उद्देश्य जैविक संसाधनों के साथ-साथ उनसे जुड़े पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण करना है।

सीबीडी सुनिश्चित करता है कि जैव विविधता का सतत उपयोग हो और इससे मिलने वाले लाभ का उचित और न्यायसंगत बटवारा भी सुनिश्चित हो, खासकर उन लोगों को जिन्होंने सदियों से इस जैव विविधता का संरक्षण किया है।

भारत दुनिया की दर्ज प्रजातियों में से 7 से 8 प्रतिशत का घर है और वह सीबीडी और उसके अंतर्गत नगोया प्रोटोकॉल का पालन करने में सबसे आगे है। इनके अनुसार किसी जैविक संसाधन का उपयोग करने के लिए उससे जुड़े समुदाय की सहमति जरूरी है। इस तरह के समझौतों पर नजर रखने के लिए एक ग्लोबल डाटाबेस की स्थापना की गई, जिसका नाम “एक्सेस एंड बेनिफिट-शेयरिंग क्लियरिंग-हाउस” है।

इसमें उन तमाम अनुबंधों का लेखा-जोखा है जो जैव विविधता को ले कर हो रहे हैं, किसने कहां से किसी भी पौधे, जानवर, मिक्रोब (छोटे कीटाणु) या उनसे निकले अानुवांशिक सामग्री का इस्तेमाल किया। और इससे हो रहे फायदे को किस तरह से समुदाय तक पहुंचाने का वायदा किया। एेसे अनुबंध होेने पर वो देश जहां कि जैव विविधता है, इस्तेमाल करने वाले लोगाें को एक प्रमाण पत्र देता है, जिसको इंटरनेशनली रिकॉग्नाइज सर्टिफिकेट ऑफ कंप्लायंस (आईआरसीसी) कहते हैं।

डाउन टू अर्थ के विश्लेषण के अनुसार, भारत ने जैव विविधता तक पहुंच और लाभ को साझा करने के लिए ऐसे 3,136 आईआरसीसी समझौते किए हैं, जो कि दुनिया में सबसे अधिक हैं। गुजरात के सिद्दी जनजाति के जातीय-औषधीय ज्ञान का अध्ययन करने के लिए ब्रिटेन के केंट विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता ने अक्टूबर 2015 में इस तरह का पहला समझौता किया था, तब से इसमें लगातार वृद्धि हुई है। अकेले 2022 में ऐसे 800 समझौते हो चुके हैं, जिनमें से 101 तो नवंबर के पहले 15 दिनों में ही जारी किए गए हैं।

हालांकि इन 3,136 समझौतों में से केवल 1,206 ही व्यावसायिक उपयोग के लिए हैं। 14 वाणिज्यिक और गैर-वाणिज्यिक दोनों और 251 सिर्फ गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए हैं, बाकी का कारण नहीं बताया गया है। स्थानीय समुदायों को इससे कम ही लाभ मिल पाता है। तमिलनाडु के पश्चिमी घाट में शोला वन क्षेत्र में पैदा होने वाली कुरिंजी शहद का ही उदाहरण लेते हैं। इस शहद को दुर्लभ माना जाता है क्योंकि यह उन मधुमक्खियों के छत्तों से एकत्र किया जाता है, जो स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना नामक पौधे से रस इकट्ठा करती हैं। यह 12 साल में एक बार खिलने वाले बैंगनी रंग के फूल का पौधा होता है। स्थानीय आदिवासी समुदाय ‘पेलियान’ इनसे शहद इकट्ठा करता है।

यह समुदाय कोडइकनाल स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था “हूपो ऑन ए हिल” के साथ काम करता है। 2019 में इस संस्था का चेन्नई स्थित निर्यातक कंपनी “जैस्मीन कंक्रीट एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड” और फ्रेंच कंपनी फरमिनिश ग्रास के साथ एक समझौता हुआ था। इस कंपनी ने एक किलो शहद के लिए अग्रिम भुगतान किया था और कहा था कि अगर इसके साथ तैयार उत्पादों का व्यावसायीकरण होता है तो यह समझौता आगे भी बढ़ सकता है। हालांकि इसके बाद से स्थानीय समुदाय या स्वयंसेवी संस्था को कंपनी की तरफ से कोई संदेश नहीं मिला है।

कंपनियों के साथ हस्ताक्षरित समझौतों या भुगतान की गई धनराशि का उपयोग समुदायों के लिए कैसे किया गया, इसपर सार्वजनिक रूप से कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं है। हालांकि मई 2022 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण द्वारा डाउन टू अर्थ के साथ साझा किए गए आंकड़ोंं से पता चलता है कि 12 राज्यों के जैव विविधता बोर्डों ने अपनी स्थापना के बाद से लगभग 23.69 करोड़ रुपए एकत्र किए हैं। इसके अलावा विदेशी कंपनियों के साथ लाभ-साझाकरण समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाली संस्था राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने भी 148.03 करोड़ रुपए एकत्र किए हैं।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म “एक्सेस एंड बेनिफिट-शेयरिंग क्लियरिंग हाउस” द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और समझौते केआधार पर डाउन टू अर्थ का विश्लेषण बताता है कि दुनिया भर में इन उपायों से कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा है।

प्रमाणपत्र वितरण

15 नवंबर, 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार, सीबीडी दिशा-निर्देशों के तहत जैविक संसाधनों तक पहुंच स्थापित करने के लिए केवल 25 देशों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त 4,344 अनुपालन प्रमाणपत्र (आईआरसीसी) प्रदान किए हैं। तथ्य यह है कि सिर्फ कुछ देशों ने ही प्रमाणपत्र जारी किए हैं, जो यह दर्शाता है कि राष्ट्रों में इसके प्रति कुछ खास रुचि या क्षमता नहीं है।

इसके अलावा इन प्रमाणपत्रों के जारी किए जाने की गति बहुत धीमी है। पहला आईआरसीसी 2015 में जारी किया गया था। 2019 के अंत तक सभी देशों ने मिलकर कुल 1,118 आईआरसीसी जारी किए थे। अगले तीन वर्षों में कोविड -19 महामारी के बावजूद इसमें अप्रत्याशित तेजी आई। 2020 में 1,016, 2021 में 1,176 और 2022 में (15 नवंबर, 2022 तक) 1,034 आईआरसीसी जारी किए गए। इस उछाल के पीछे के कारणों का कोई स्पष्ट संकेत नहीं है, लेकिन अधिकांश आईआरसीसी भारत द्वारा ही जारी किए गए थे।

ये आंकड़े यह भी इंगित करते हैं कि कुल 4,344 आईआरसीसी में से 1,281 व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए हैं और 25 देशों में से 16 द्वारा जारी किए गए हैं। शेष गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए हैं, जो समुदायों को तुरंत या सीधे लाभ नहीं पहुंचाते हैं। कुछ आईआरसीसी में उनके उद्देश्य अंकित नहीं किए गए हैं और इसलिए उनके लाभ अज्ञात रहते हैं।

उदाहरण के लिए अफ्रीका महाद्वीप के देशों द्वारा केवल 169 आईआरसीसी जारी किए हैं। केन्या के सभी आईआरसीसी गैर-वाणिज्यिक समझौतों के लिए हैं। दक्षिण अफ्रीका ने शुरुआत में वाणिज्यिक समझौतों के प्रति रुचि दिखाई थी, लेकिन अब यह गैर-वाणिज्यिक समझौतों में स्थानांतरित हो गया है। इसी तरह लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र ने सिर्फ 165 आईआरसीसी जारी किए हैं। पेरू इस क्षेत्र का नेतृत्व करता है, उसके बाद अर्जेंटीना और पनामा का स्थान आता है। पेरू में केवल चार आईआरसीसी व्यावसायिक उपयोग के लिए हैं, जो 2021-22 में ही जारी किए गए है। अर्जेंटीना में इस वर्ष जारी किए गए दो प्रमाणपत्रों को छोड़कर सभी समझौते गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए हैं, जबकि पनामा में केवल एक प्रमाणपत्र वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए है। यह 2021 में जारी किया गया था। हालांकि इसके लेनदेन का विवरण एबीएस-सीएच प्लेटफार्म नहीं देता है।



सीमित लाभ

दुनिया भर के उदाहरणों से पता चलता है कि समुदायों को अपने अानुवांशिक संसाधनों तक पहुंच प्रदान करने से शायद ही कभी लाभ हुआ हो। उदाहरण के लिए, मैक्सिको के गुआनाहातो राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के निदेशक अलेहांद्रो काहेगास ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बायोपाइरेसी ने ज्ञान साझा करने के मामले में समुदायों के बीच अविश्वास पैदा किया है। इसलिए भी आईआरसीसी समझौतों में प्रगति की कमी है। बायोपाइरेसी का एक मार्मिक उदाहरण एक्सोलोटा का है। यह एक मैक्सिकन प्रजाति का उभयचर सरीसृप होता है, जो अपने अंगों को फिर से विकसित करने की क्षमता रखता है। यह एक लुप्तप्राय प्रजाति है, जो केवल दक्षिणी मेक्सिको सिटी के सोचिमिल्को झील कॉम्प्लेक्स में पाया जाता है।

हालांकि काहेगास का कहना है कि पालतू जानवर के रूप में पालने या शोध करने के लिए अब इसे झील क्षेत्र के बाहर दूसरे देशों में भी तेजी से पाला जा रहा है। उन्होंने बताया, “एक्सोलोटा से जुड़ा शोध हमारी उत्पत्ति से संबंधित है और इससे दुनिया भर के अनुसंधान राजस्व में अरबों डॉलर की वृद्धि हुई है। हालांकि हमें इससे कभी कुछ नहीं मिला।”

कैमरून में नागरिक अशांति और अन्य राजनीतिक मुद्दों ने जैविक संसाधनों के उपयोग से लाभ प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न की है। फ्रांसीसी सौंदर्य प्रसाधन कंपनी “वी मेन फिल्स” 2014 से ही कैमरून की एक पौध प्रजाति ‘मोंडिया व्हाइटी’ के लिए बातचीत कर रही थी।

इस पौधे का उपयोग खाद्य पदार्थों में और इसके जड़ का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। लेकिन देश में जारी उथल-पुथल और नागरिक संघर्ष के कारण यह वार्ता शुरुआती चरण में ही समाप्त हो गई। कैमरून के स्थानीय समुदाय और वी मेन फिल्स के बीच मध्यस्थता करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था “एनवारमेंट रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन” के मुख्य कार्यकारी लुइस एनकेम्बी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि इस उत्पाद का व्यावसायीकरण जल्द ही शुरू हो जाएगा। हालांकि इसके अति-शोषण से पौधे के अस्तित्व को भी अभी खतरा है।

अफ्रीकी देशों में केन्या ने अधिकतम संख्या में आईआरसीसी जारी किए हैं, लेकिन यहां भी वाणिज्यिक समझौतों पर अपर्याप्त जागरुकता है।

उदाहरण के लिए फ्रांसीसी कंपनी वी मेन फिल्स ने मोंडिया व्हाइटी को केन्या से भी खरीदने का प्रस्ताव दिया था। 2018 में कंपनी ने प्रति वर्ष 10 टन मोंडिया व्हाइटी के लिए केन्या के एक संरक्षण समूह “काकमेगा प्राकृतिक वन जल ग्रहण संरक्षण संगठन (केएएनएफसीसीओ)” के साथ साझेदारी की। इसके बाद समुदाय ने मांग को पूरा करने के लिए एक नर्सरी की स्थापना की। 2021 में समूह ने प्रति वर्ष 100 टन जड़ की आपूर्ति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

केएएनएफसीसीओ के सचिव जेम्स लिगाले ने डाउन टू अर्थ को बताया, “हमने नगोया प्रोटोकॉल के तहत एक पूर्व सूचना आधारित सहमति पर हस्ताक्षर किए, लेकिन फिर कंपनी ही सामग्री हस्तांतरण के लिए अन्य वैधानिक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गई।”

लेकिन तथ्य यह है कि जैव विविधता से कमाई की संभावना बहुत अधिक होती है। नामीबिया जैसे कुछ देशों ने यह सुनिश्चित करने के लिए सीबीडी के बाहर कदम उठाए हैं, जिससे कि समुदायों को जैव विविधता के उपयोग के कारण लाभ का हिस्सा प्राप्त हो। हालांकि नामीबिया ने सीबीडी और नगोया प्रोटोकॉल के तहत एक भी आईआरसीसी जारी नहीं किया है।

1996 में नामीबिया में समुदाय-आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (सीबीएनआरएम) कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, जिसे गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन को जैव संरक्षण के साथ जोड़ने के एक उदाहरण के रूप में माना जाता है।

2020 के “स्टेट ऑफ कम्यूनिटी कंजर्वेशन इन नामीबिया” रिपोर्ट के अनुसार सीबीएनआरएम के तहत सामुदायिक संरक्षण ने नामीबिया की शुद्ध राष्ट्रीय आय में 10,753 बिलियन नामीबियन डॉलर (722.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का योगदान दिया और 3,870 नौकरियां प्रदान की।

हालांकि अब चीजें कुछ हद तक बदल रही हैं। माउंटेन बुश रूइबोस दक्षिण अफ्रीका का एक स्थानीय पौधा है, जो एक गहरे लाल रंग का स्वादिष्ट काढ़ा तैयार करने के काम आता है। स्थानीय सैन और खोई समुदाय के लोग इसकी सुई जैसी पत्तियों के स्वास्थ्य लाभों को जानते थे और अपनी भूमि पर उन्हें व्यापक रूप से उगाते थे। लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में औपनिवेशिक शासन के दौरान शुरू हुए इसके व्यापार के बाद ये समुदाय हाशिए पर चले गए। आज रूइबोस एक व्यापक रूप से कारोबार और निर्यात की जाने वाली वस्तु है, जिसे 30 से अधिक देशों में बेचा जाता है। संयुक्त राज्यअमेरिका और यूरोप इसके सबसे बड़े आयातक हैं, हालांकि सैन और खोई समुदाय के लोगों को इससे कुछ खास लाभ नहीं मिलता है।

भुगतान वितरित

वर्षों की बातचीत के बाद जुलाई 2022 में दक्षिण अफ्रीका में रूइबोस उद्योग ने उन संगठनों को 12.2 मिलियन रैंड (लगभग 7,09,000 अमेरिकी डॉलर) का भुगतान किया, जो इस जैविक संसाधन और संबंधित ज्ञान को साझा करने के लिए समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब यह चर्चा चल रही है कि समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए इस धन का उपयोग कैसे किया जाए?

इस तरह के उदाहरण 7 दिसंबर से मॉन्ट्रियल (कनाडा ) में हो रहे जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के 15वें सम्मेलन (कॉप15) के पक्षकारों की अपेक्षाएं बढ़ाते हैं। यहां पर 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता का प्रबंधन करने के लिए आगे के लक्ष्य स्थापित हुए।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायो डायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) के प्रमुख 23 लक्ष्य हैं, जिन्हें 2030 तक हासिल करना है। इसके अलावा चार ओवरऑल लक्ष्य भी हैं जो 2050 तक के दीर्घकालिक विजन के अंतर्गत रखे गए हैं। कॉप-15 में उपस्थित 188 देशों की सरकारों द्वारा इस रूपरेखा पर सहमति व्यक्त की गई है। यह स्थलीय और समुद्री जैव विविधता के चल रहे नुकसान को रोकने की दिशा में उनके समर्थन को दर्शाता है। 30 x 30 के लक्ष्य पर समझौते को इस बैठक की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। यह समझौता 2015 में पेरिस में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित करने के समझौते जैसा है।

स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि भी इस रुपरेखा को सकारात्मक मानते हैं क्योंकि यह भूमि पर उनके अधिकारों का समर्थन करता है। विशेष रूप से, स्वदेशी लोगों के अधिकारों को मान्यता दी गई है। और साथ ही भूमि, अंतर्देशीय जल, तटों और महासागरों के लिए 30X30 संरक्षण के लक्ष्य में पारंपरिक क्षेत्रों पर स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान किया गया है। लक्ष्य-3 स्वदेशी और पारंपरिक क्षेत्रों को पहचानने, संरक्षित क्षेत्रों और अन्य प्रभावी क्षेत्र आधारित संरक्षण उपायों की समान रूप से शासित प्रणालियों के बारे में बात करता है।

लेकिन स्वदेशी समुदायों के प्रतिनिधियों में अभी भी भय है। 30 प्रतिशत लक्ष्य में स्वदेशी प्रदेशों को शामिल करने की मांग को यूरोपीय देशों ने खारिज कर दिया।

यह एक बार फिर दिखाता है कि संरक्षण में औपनिवेशिक मानसिकता (जिसमें कहा जाता है कि पश्चिमी संरक्षणवादी सबसे अच्छा जानते हैं) अभी भी जीवित है।

इसके अलावा, यह लक्ष्य कि केवल 30 प्रतिशत भूमि और महासागरों को संरक्षित किया जाना है, शेष 70 प्रतिशत पृथ्वी में विनाश का परिणाम हो सकता है।

देशों द्वारा हर पांच साल या उससे कम समय में प्रगति से संबंधित संकेतों की निगरानी की जाएगी। सीबीडी फरवरी 2026 के अंत और जून 2029 के अंत तक राष्ट्रीय सूचनाओं की वैश्विक प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट को संयोजित करेगा।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रशासक अचिम स्टेनर कहते हैं कि इस समझौते का मतलब है कि विश्वभर के लोग जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए वास्तविक प्रगति की उम्मीद कर सकते हैं।

इस ढांचे को लागू करने के लिए दुनिया को पर्याप्त धन की जरूरत है। यहां एक चिंता की बात यह है कि वायदा की गई राशि और वास्तविक जरूरतों के बीच अब भी असंतुलन कायम है।

यह रूपरेखा इस बात का संकेत है कि आवश्यक संसाधन प्रति वर्ष 700 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के बीच हैं, लेकिन 2030 तक प्रवाह केवल 200 बिलियन प्रति वर्ष तक बढ़ जाएगा। कार्यकर्ताओं के संगठन अवाज का कहना है कि रूपरेखा को निर्दिष्ट करना चाहिए कि यह अंतर कैसे बंद होगा। ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी से ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ ) के कार्यान्वयन करने के लिए एक विशेष ट्रस्ट फंड स्थापित करने का अनुरोध किया गया है। प्रतिनिधियों ने जीबीएफ के भीतर आनुवांशिक संसाधनों पर डिजिटल अनुक्रम सूचना के प्रदाताओं और उपयोगकर्ताओं के बीच लाभों के समान बटवारे के लिए भी एक बहुपक्षीय कोष स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की है, जिसे 2024 में टर्की में कॉप-16 में अंतिम रूप दिया जाएगा।

यह वह निर्णय है जो भारत, मैक्सिको, नामीबिया, कैमरून, केन्या और दक्षिण अफ्रीका जैसे जैव विविधता बहुल क्षेत्रों में लोगों को प्रभावित करेगा। काली चोकलिंगम और उनके जैसे अन्य लोगों को यह देखने के लिए इंतजार करना होगा कि उन तक कितना और लाभ पहुंचता है।

(मैक्सिको से ह्यूगो वेला, नामीबिया से अबशालोम शिगवेधा, कैमरून से नगाला किलियन चिमटोम और केन्या से मैना वारुरू का इनपुट)

दशकों से चलती परिचर्चा

जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के मुख्य लक्ष्य इन्हें अपनाएं जाने के तीन दशकों के बाद भी काफी हद तक अधूरे ही रहे हैं
  • 1992
    ब्राजील में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान जैव विविधता सम्मेलन (सीबीडी) की शुरूआत हस्ताक्षरों के साथ हुई
  • 1993
    सीबीडी अस्तित्व में आया
  • 1994
    बहामास में सदस्य देशों का पहला सम्मेलन (सीओपी) आयोजित हुआ
  • 1995 सीओपी 2 इंडोनेशिया में आयोजित हुआ। इस दौरान जैव सुरक्षा कार्यसमूह की स्थापना हुई
  • 1996
    सीओपी 3 का आयोजन में हुआ। विकासशील देशों ने पेटेंट अधिकारों में संशोधन की मांग उठाई गई क्योंकि वे उनकी पहुंच और लाभों को साझा करने (एबीएस) के समझौतों को प्रभावित करते हैं
  • 1998
    सीओपी 4 स्लोवाकिया में आयोजित हुआ। इसमें सीबीडी के अनुच्छेद 8 (जे) पर विमर्श किया गया जाे कि पारंपरिक ज्ञान तथा उनके लाभों को साझा करने से संबंधित है
  • 2000
    सीओपी 5 केन्या में आयोजित हुआ। इसमें लाभों को साझा करने के लिए दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु एक एबीएस समूह कार्यदल की स्थापना की गई। इस दौरान अानुवांशिक रूप से संशोधित जीवों से जैविक विविधता को बचाने के लिए जैव सुरक्षा को लेकर कार्टाजेना प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए
  • 2002
    सीओपी 6 नीदरलैंड्स में आयोजित हुआ। आनुवांशिक संसाधनों तक पहुंच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे पर “बॉन दिशा-निर्देशों” को अपनाया गया
  • 2004
    सीओपी ४ का आयोजन मलेशिया में हुआ। एबीएस समूह को निर्देश दिया गया कि वह एक प्रशासनिक सरंचना का निर्माण करे। जैव विविधता के दीर्घकालिक (सस्टेनेबल) उपयोग हेतु “अदीस अबाबा” सिद्धांतों और दिशा-निर्देशों को अपनाया गया
  • 2006
    सीओपी ८ की मेजबानी ब्राजील ने की। एबीएस समूह को निर्देश दिया गया कि सीओपी १० से पहले प्रशासन सम्बंधित कार्य पूरा कर लें
  • 2008
    सीओपी ९ का आयोजन जर्मनी में हुआ। वर्ष २०१० से पहले एबीएस परिचर्चा के साथ ही तीन कार्य समूहों के गठन और तीन विशेषज्ञ समूहों के गठन का रोडमैप बनाया गया
  • 2010
    सीओपी ८ का आयोजन जापान में हुआ। जैव संसाधनों तक पहुंच और उनके उपयोग से होने वाले लाभ के न्यायपूर्ण और बराबरी से बटवारे के लिए “नगोया प्रोटोकॉल” को अपनाया गया। २०११-२०२० कि अवधि के लिए आईची लक्ष्यों को निर्धारित किया गया
  • 2012
    सीओपी १० का आयोजन भारत में किया गया। हाल ही में स्थापित अंतर-शासन (इंटर-गवर्मेंटल) जैव विविधता हेतु विज्ञानं -नीति मंच और पारिस्थितिकी तंत्र सुविधाएं को जैव विविधता की वर्तमान स्थिति के आंकड़े प्राप्त करने के निर्देश दिए गए
  • 2014
    सीओपी १२ कोरिया गणराज्य में आयोजित हुआ। यहां नगाेया प्रोटोकॉल को लागू किया गया
  • 2016
    सीओपी १3 का आयोजन मेक्सिको में हुआ। कृषि, वानिकी, मत्स्यपालन और पर्यटन में जैव विविधता के संरक्षण और दीर्घकालिक उपयोग हेतु कानकुन घोषणापत्र को अपनाया गया
  • 2018
    सीओपी १४ का आयोजन मिस्र (इजिप्त) में हुआ। “पोस्ट २०२० - ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क” पर सभी पक्षों को अपने विचार देने के लिए कहा गया। आईची लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रगति का आंकलन किया गया
  • 2021
    सीओपी १५ के पहले भाग का आयोजन वर्चुअल तरीके से किया गया
  • 2022
    सीओपी १५ के दूसरे भाग का आयोजन कनाडा में हुआ। यहां कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायो डायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) परित हुआ

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