
सरीसृप लगभग 40 करोड़ वर्षों से धरती पर हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
दुनिया भर के कई सरीसृप लुप्तप्राय हैं। सीआईटीईएस के अनुसार, 91 फीसदी सरीसृप बिना किसी सुरक्षा के हैं।
भारत में 518 सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 192 स्थानिक हैं और 26 संकटग्रस्त मानी जाती हैं।
वन्यजीव संरक्षण, अवैध व्यापार पर रोक और जनभागीदारी के जरिए ही सरीसृपों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।
सरीसृप (रेप्टाइल्स) हमारे चार पैरों वाले, ठंडे रक्त वाले और संवेदनशील जीव जो धरती के सबसे पुराने प्राणियों में से एक हैं। लगभग 40 करोड़ सालों से ये जीव धरती पर मौजूद हैं और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते आए हैं। हर साल 21 अक्टूबर को विश्व सरीसृप जागरूकता दिवस मनाया जाता है ताकि लोग सरीसृपों के बारे में जानकारी हासिल करें, उनकी महत्ता को समझें और उनके संरक्षण के लिए कदम उठाएं।
सरीसृप क्या होते हैं?
सरीसृप वे जीव होते हैं जिनके शरीर पर शल्क (स्केल्स) होते हैं और वे आमतौर पर ठंडे रक्त वाले होते हैं। इनमें सांप, कछुए, मगरमच्छ, घोंघा और छिपकली शामिल हैं। इनमें से कुछ अंडे देते हैं और कुछ जन्म देते हैं। ये जीव बहुत अनोखे होते हैं और पर्यावरण को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
सरीसृप क्यों जरूरी हैं?
सरीसृप पर्यावरण के लिए कई तरह से उपयोगी होते हैं ये सांप और छिपकलियां खेतों में चूहों और कीड़ों को नियंत्रित करती हैं। इसीलिए इन्हें किसानों का मित्र भी कहा जाता है। मगरमच्छ नदियों और झीलों में मछलियों की संख्या को संतुलित रखते हैं।
कुछ सरीसृप मृत जानवरों को खाकर पर्यावरण को साफ और स्वस्थ रखते हैं। ये शिकार भी हैं और शिकारी भी, जिससे जैव विविधता बनी रहती है।
क्या सरीसृप संकट में हैं?
हां, आज दुनिया में बहुत से सरीसृप संकटग्रस्त या लुप्तप्राय हैं। दुर्भाग्य से, सरीसृप सबसे अधिक उपेक्षित प्राणी वर्गों में से एक हैं।
वन्य जीवों के व्यापार पर नियंत्रण रखने वाला अंतरराष्ट्रीय संगठन (सीआईटीईएस) के अनुसार, लगभग 91 फीसदी सरीसृप आज भी किसी प्रकार की कानूनी सुरक्षा से वंचित हैं। इनकी संख्या घटने के पीछे कई कारण हैं जैसे जंगलों का काटा जाना और शहरीकरण। अवैध व्यापार (खाल, मांस, अंडे आदि के लिए), कीटनाशकों और प्रदूषण का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन तथा पालतू जानवर के रूप में खरीदे जाने पर उपेक्षा आदि शामिल हैं।
सरीसृप भी संवेदनशील होते हैं
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, सरीसृप संवेदनशील जीव होते हैं। वे खुशी, डर जैसी भावनाएं महसूस कर सकते हैं और उनकी अपनी पसंद और नापसंद होती है। कुछ सरीसृप अपने बच्चों की देखभाल भी करते हैं और खेलते हुए भी देखे गए हैं।
लेकिन जब इन्हें पालतू जानवर बनाकर पिंजरे में रखा जाता है, तो उनकी प्राकृतिक जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं, जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित होते हैं।
सरीसृप कहां पाए जाते हैं?
सरीसृप लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं, सिवाय अंटार्कटिका के। आमतौर पर ये गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में अधिक संख्या में देखे जाते हैं।
भारत में सरीसृपों की विविधता
भारत जैव विविधता के मामले में एक समृद्ध देश है और विश्व के कुल सरीसृपों का 6.2 फीसदी हिस्सा भारत में पाया जाता है। भारत में तीन तरह की मगरमच्छ की प्रजातियां पाई जाती हैं। 34 कछुए और इनकी प्रजातियां, 202 छिपकलियां, 279 सांप की प्रजातियां (28 परिवारों में विभाजित), कुल मिलाकर 518 सरीसृप प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। इनमें से 192 प्रजातियां केवल भारत में ही पाई जाती हैं (स्थानिक या एंडेमिक)। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने 26 प्रजातियां संकटग्रस्त यानी रेड लिस्ट में शामिल की हैं।
खतरे और समाधान
सरीसृपों का अवैध शिकार और व्यापार आज भी एक बड़ी समस्या है। इनके मांस, अंडे, खाल, और कवच के लिए इनका व्यापार होता है।
कृषि में रसायनों का अत्यधिक प्रयोग, प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना, सरीसृपों के संरक्षण के लिए हमें वन्य जीव अधिनियमों को सख्ती से लागू करना होगा, और जन जागरूकता बढ़ानी होगी।
सरीसृप भले ही पक्षियों या स्तनधारियों जितना ध्यान न पाते हों, लेकिन प्रकृति में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इनके बिना पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए प्रत्येक शल्क की अपनी कहानी है और प्रत्येक प्रजाति मायने रखती है।