विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल भारत में बसंत और गर्मियों का मौसम शुष्क और गर्म रह सकता है। साथ ही देश को एल नीनो के लिए तैयार रहने की हिदायत विशेषज्ञों ने दी है। हालांकि मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अल नीनो की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह संभव है और इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है।
गौरतलब है कि इस साल फरवरी में बहुत कम बारिश और सामान्य से अधिक तापमान रहने की आशंका है। साथ ही ला नीना का घटता प्रभाव भारत के अधिकांश हिस्सों के लिए गर्म और शुष्क वसंत के साथ गर्मियों में तापमान के ज्यादा रहने की ओर इशारा करते हैं।
यूनाइटेड स्टेट्स ग्लोबल फोरकास्टिंग सिस्टम से लिए आंकड़ों के वेबसाइट विंडी.कॉम द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि 17 फरवरी, 2023 से उत्तर-पश्चिम के साथ मध्य, पूर्वी और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान में वृद्धि हो सकती है।
आंकड़ों के अनुसार इन क्षेत्रों में दिन के समय तापमान 35 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है। वहीं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 15 फरवरी 2023 को जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड सहित गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा दर्ज किया था। हालांकि आईएमडी ने 16 फरवरी तक भारत के किसी भी हिस्से में सामान्य से अधिक तापमान को लेकर अलर्ट जारी नहीं किया है।
वहीं असामान्य रूप से गर्मी के संकेत 2022-23 की शुष्क सर्दियों के मौसम के बाद सामने आए हैं। इस बार अधिकांश भारत के लिए सर्दियों का मौसम शुष्क रहा है, जो कई क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थिति का संकेत देता है। गौरतलब है कि इस इस बार देश में दिसंबर के दौरान होने वाली बारिश में 14 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
देश में उत्तर पश्चिम, मध्य, पूर्व और पूर्वोत्तर के हिस्से विशेष रूप से शुष्क थे। जहां उत्तर पश्चिम में बारिश सामान्य से 83 फीसदी कम थी। वहीं मध्य भारत में 77 फीसदी और देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्सों में बारिश में 53 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। देखा जाए तो उत्तर पश्चिम और मध्य भारत के लिए यह रबी की फसल का मौसम है। हालांकि केवल दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में इस माह में सामान्य से 79 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी।
इस तरह यह सूखापन जनवरी और फरवरी में भी जारी रहा। जब देश के 36 में से 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1 जनवरी से 15 फरवरी, 2023 के बीच बारिश में कमी से लेकर बिलकुल बारिश नहीं हुई। इस अवधि के दौरान औसत रूप से देश में हुई बारिश में सामान्य से 30 फीसदी की कमी दर्ज की गई।
वहीं मिजोरम, त्रिपुरा, झारखंड, गोवा, दादरा नगर हवेली और दमन एवं दीव में इन दिनों बिलकुल बारिश नहीं हुई जबकि दस अन्य राज्यों में वर्षा की कमी 90 फीसदी से ज्यादा थी।
इस बारे में मैरीलैंड विश्वविद्यालय और आईआईटी बॉम्बे के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने डाउन टू अर्थ को बताया कि तापमान में अचानक हुई इस वृद्धि की वजह ऊपरी वातावरण में चलने वाली एक शक्तिशाली पछुआ जेट है जो निचले स्तर पर गर्म समुद्र और रेगिस्तानी हवाओं को प्रभावित कर रही है।
वहीं राष्ट्रीय वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र और रीडिंग विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिक अक्षय देवरा ने डीटीई को बताया कि 15 फरवरी को तापमान में सबसे ज्यादा विसंगति (अधिकतम और न्यूनतम दोनों में) उत्तर पश्चिम भारत (मुख्य रूप से राजस्थान) के मैदानी इलाकों और पहाड़ी राज्यों में देखी गई।
वहीं अरब सागर के उत्तरी हिस्सों और गुजरात के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सतह के पास एक उच्च दबाव वाला क्षेत्र (एंटीसाइक्लोन) केंद्रित है। देवरा ने आगे बताया कि, "यह उच्च दबाव वाला क्षेत्र हवा के घटने का कारण बन रहा है और साथ ही उत्तर-पश्चिम से भारत में शुष्क हवाओं के प्रवाह को बढ़ा रहा है।"
इसके अलावा, हमने हाल में मैदानी इलाकों को प्रभावित करने वाला मजबूत पश्चिमी विक्षोभ नहीं देखा है। देवरा के अनुसार, ये सभी कारक तापमान में वृद्धि का कारण बन रहे हैं। उनका कहना है कि, "यह उच्च दबाव वाला क्षेत्र इस सप्ताह के अंत तक बिखर जाएगा और एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के अगले सप्ताह की शुरुआत में पहाड़ियों को प्रभावित करने की उम्मीद है। इन कारकों के चलते तापमान में कमी आएगी।"
वहीं मुर्तुगुड्डे ने बताया कि पिछले साल के अंत में और इस साल जनवरी के दौरान पाकिस्तान, ईरान से लेकर अफगानिस्तान और आगे तक तापमान कम था। यह कम तापमान और संबंधित उच्च दबाव पश्चिमी विक्षोभ को रोक रहे थे और उत्तर की ओर ठंडी हवाएं चल रही थी। लेकिन अब यह स्थिति हवा के एक नए पैटर्न के स्थापित होने के साथ बदल गई है।
वहीं बसंत और गर्मियों में मार्च-अप्रैल तक ला नीना की स्थिति में गिरावट और बाद में आगे चलकर अल नीनो की स्थिति बन सकती है, जो चिंता का विषय है। इसका मतलब है कि तापमान में और वृद्धि होगी साथ ही लू चल सकती हैं।
यूनाइटेड किंगडम मेट एजेंसी के एक मॉडल के आधार पर कुछ मीडिया रिपोर्ट भी सामने आई हैं जिनके अनुसार संभावित एल नीनो के कारण 2024 में तापमान में होती वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को अस्थाई रूप से पार कर सकती है।
देखा जाए तो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला नीना के दौरान समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) सामान्य से अधिक ठंडा होता है। जो आमतौर पर भारत सहित दुनिया भर के कई क्षेत्रों में तापमान को कम करता है। हालांकि 2022 में ला नीना के बावजूद देश के 17 राज्यों में मार्च से जून के बीच भीषण लू का प्रकोप देखा गया था, जोकि हैरान कर देने वाला है।
वहीं इसके विपरीत एल नीनो के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म होता है, जो इसके विपरीत असर डालता है। इसकी वजह से कई क्षेत्रों में तीव्र गर्मी का अनुभव होता है। गौरतलब है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के साथ एक तीव्र एल नीनो घटना ने 2016 को दुनिया का रिकॉर्ड सबसे गर्म वर्ष बना दिया था।
मुर्तुगुड्डे का कहना है कि, "ईएनएसओ के पूर्वानुमान वास्तव में इतने शीघ्र, खासतौर पर बसंत से पहले इतने विश्वसनीय नहीं हैं। "लेकिन लगातार तीन ला नीना ने उष्णकटिबंधीय प्रशांत को गर्म पानी से भर दिया है और इसमें कोई छोटी सी चिंगारी भी एल नीनो को शुरू कर देगी। उन्होंने आगाह किया कि ऐसे में अनुमान यह कहता है कि हमें अल नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए।
मुर्तुगुड्डे का कहना है कि एल नीनो हमेशा से वातावरण में मौजूद समुद्री गर्मी को मुक्त करके मिनी-ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनते हैं। क्या इसका मतलब है कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर लेंगे? मैं इतने यकीन से नहीं कह सकता। अगर हमने किया भी, तो क्या कुछ नया और नाटकीय होगा? इस पर भरोसा मत कीजिए। उनका कहना है कि, "हम पहले ही चरम सीमा के मध्य में हैं और ऐसे में हमें सिर्फ लू के मौसम और मानसून की कमी पर ध्यान देना होगा।"
एक ला नीना सर्दी का अल नीनो गर्मी में बदलाव सामान्य तौर पर मानसून के लिए बुरी खबर है। मुर्तुगुड्डे के अनुसार, मौसमी जोड़-घटा कम हो सकती है, लेकिन इसके बावजूद मौसम की चरम घटनाएं अपना मौत का तांडव जारी रखेंगी।