भारत सहित दुनिया में कैसा रहेगा अगले तीन महीनों का मौसम, जानें...

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक भारत में अगले तीन महीने (मई से जुलाई 2025) सामान्य से अधिक गर्म रह सकते हैं, वहीं साथ ही इस दौरान सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है
गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक
गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक
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दुनिया में बढ़ता तापमान नित नए कीर्तिमान बना रहा है। इसका सीधा असर मौसम और बारिश पर भी पड़ रहा है। ऐसे में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने आशंका जताई है कि मई से जुलाई 2025 के बीच दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कहीं ज्यादा गर्मी पड़ सकती है। वहीं अरब देशों से लेकर पूर्वी एशिया और उत्तर-दक्षिण प्रशांत तक कई हिस्सों में भीषण गर्मी की अंदेशा है।

भारत में भी कुछ हिस्से सामान्य से अधिक गर्म रह सकते हैं। वहीं बारिश के पैटर्न में बदलाव का भी अनुमान वैज्ञानिकों ने जताया है। उम्मीद जताई जा रही है कि भारत में इन तीन महीनों सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है।

अगले तीन महीनों (मई, जून, जुलाई 2025) के दौरान मौसम में आने वाले उतार चढ़ावों को विस्तार से जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि पिछले तीन महीने (जनवरी से मार्च 2025) कैसे रहे, क्योंकि इनपर काफी कुछ निर्भर करता है।

जनवरी से मार्च 2025 के बीच दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में समुद्र कहीं ज्यादा गर्म रहे। इस दौरान समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) सामान्य से अधिक रहा। यह दर्शाता है कि उस दौरान गर्मी का रुझान बना रहा। हालांकि, मध्य प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों (डेटलाइन के पास) में तापमान सामान्य के आसपास या उससे थोड़ा कम रहा। मतलब की वहां गर्मी का कहर थोड़ा कम रहा।

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गर्मी में अपने गेहूं की फसल काटता किसान; फोटो: आईस्टॉक

इस दौरान प्रशांत महासागर के सुदूर पूर्वी हिस्से (नीनो 1+2 क्षेत्र) और पूर्वी हिस्से (नीनो 3 क्षेत्र) में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक था। वहीं, मध्य प्रशांत क्षेत्र (नीनो 3.4 और नीनो 4 क्षेत्र) में तापमान या तो सामान्य के आसपास या उससे थोड़ा अधिक रहा।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कुछ जगहों पर स्थिति थोड़ी बेहतर रही, फिर भी भूमध्यरेखीय मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर की समुद्री और वायुमंडलीय परिस्थितियां दर्शाती हैं कि स्थिति ‘कमजोर ला नीना’ जैसी बनी हुई है।

इसी तरह नवंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर को छोड़कर, दुनिया के अधिकांश महासागरों में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया था।

गौरतलब है कि मौसम से जुड़ी अल नीनो और ला नीना की घटनाओं को आमतौर पर अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही घटनाएं प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। जहां अल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि से जुड़ा है, वहीं ला नीना तापमान में गिरावट को दर्शाता है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस बीच हिंद महासागर में स्थिति करीब-करीब सामान्य रही। वैज्ञानिकों के शब्दों में कहें तो इस दौरान हिंद महासागर द्विध्रुव विसंगति औसत के आसपास थी।

बता दें कि हिंद महासागर द्विध्रुव जलवायु से जुड़ा एक पैटर्न है। यह हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के बीच समुद्र के तापमान में मौजूद अंतर को दर्शाता है। इसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है। यह भारत के साथ-साथ अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में भी मौसम पर असर डालता है।

वहीं दूसरी तरफ अटलांटिक महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगातार पिछले साल से तापमान सामान्य से ऊपर बना हुआ है। उत्तर और दक्षिण उष्णकटिबंधीय अटलांटिक क्षेत्रों में समुद्री तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया।

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ज्यादातर हिस्सों में पड़ेगी सामान्य से अधिक गर्मी

डब्ल्यूएमओ द्वारा मई से जुलाई 2025 के लिए मौसम का जो पूर्वानुमान जारी किया गया है उससे पता चलता है कि इस दौरान प्रशांत महासागर के नीनो क्षेत्रों (नीनो 3.4 और नीनो 3 क्षेत्र) में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य के करीब बना रहेगा। यह इस बात का संकेत है कि इस दौरान अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) की स्थिति तटस्थ (न्यूट्रल) रहेगी। वहीं, हिंद महासागर द्विध्रुव के नकारात्मक दिशा में जाने की संभावना है। मतलब कि वहां तापमान सामान्य से कम रह सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक इन महीनों के दौरान अधिकांश महासागरों की सतह का तापमान सामान्य से अधिक रह सकता है। हालांकि प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में स्थिति इससे अलग रह सकती है। इसकी वजह से धरती के ज्यादातर हिस्सों में भी सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है।

आशंका है कि इस दौरान उत्तरी अफ्रीका, मेडागास्कर, एशिया (भारतीय महाद्वीप को छोड़कर), दक्षिण अमेरिका, कैरिबियन, मध्य अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूरोप में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है।

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वहीं अरब देशों से लेकर पूर्वी एशिया तक, और समुद्रों के बीच मौजूद द्वीपीय क्षेत्रों से लेकर उत्तर और दक्षिण प्रशांत तक के कई इलाकों में तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा रह सकता है। मतलब कि इन क्षेत्रों में भीषण गर्मी पड़ने की आशंका है।

भारत, दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक जरूर रहेगा, पर उम्मीद है कि वहां गर्मी उतना कहर नहीं बरपाएगी। आईएमडी ने इस बात की भी आशंका जताई है कि आने वाले महीने कुछ ज्यादा ही गर्म रह सकते हैं।

बारिश में बड़ा बदलाव संभव

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, मई से जुलाई 2025 के बीच दुनिया के कई हिस्सों में बारिश के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल सकता है। इस दौरान प्रशांत महासागर के मध्य भाग में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। विशेषकर 150° पूर्व देशांतर से लेकर इंटरनेशनल डेटलाइन तक के हिस्सों में सामान्य से कम बारिश की आशंका है।

यह स्थिति मध्य अमेरिका के पश्चिमी तटवर्ती इलाकों और उत्तर अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों तक बन सकती है।

वहीं, डेटलाइन से लेकर दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तटों तक कुछ इलाकों में औसत बारिश के आसार हैं। भूमध्यरेखीय अटलांटिक महासागर और दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में भी कम बारिश हो सकती है। इसी तरह दक्षिण प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों, यूरोप के पूर्वी और मध्य एशिया के पश्चिमी हिस्सों में भी बारिश में कमी के आसार बन रहे हैं।

दूसरी ओर, भारत, पूर्वी एशिया, समुद्री द्वीपीय क्षेत्रों, भूमध्यरेखीय अफ्रीका से लेकर 20° उत्तर अक्षांश तक, और दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी इस साल अच्छी बारिश की उम्मीद जताई है। 

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हालांकि ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश हिस्सों, उत्तर अमेरिका के उत्तर-पूर्वी भागों, दक्षिण अमेरिका के आंतरिक पूर्वी क्षेत्रों, अफ्रीका के कुछ दक्षिणी भागों, यूरोप के पश्चिमी हिस्सों और एशिया के उत्तरी इलाकों में बारिश को लेकर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं।

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