नूंह: कोटला-अखेरा आद्रभूमि की उपेक्षा पर एनजीटी सख्त, मांगा जवाब

याचिका के मुताबिक कोटला अखेरा वेटलैंड जैव विविधता से भरपूर क्षेत्र है। इसके बावजूद जलाशय को न तो आधिकारिक रूप से मान्यता मिली है और न ही संरक्षण, जिसके कारण इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हरियाणा के नूंह में कोटला-अखेरा वेटलैंड की उपेक्षा पर सख्त रुख अपनाते हुए पर्यावरण मंत्रालय और अन्य एजेंसियों से जवाब मांगा है।

  • यह वेटलैंड जैव विविधता से भरपूर है, लेकिन संरक्षण के अभाव में शिकार, प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण इसका अस्तित्व खतरे में है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 3 दिसंबर 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से हरियाणा के नूंह में स्थित एक महत्वपूर्ण आद्रभूमि (वेटलैंड) की अनदेखी पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और हरियाणा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भी नोटिस भेजा गया है।

याचिका के मुताबिक कोटला अखेरा वेटलैंड जैव विविधता से भरपूर क्षेत्र है। यहां सारस क्रेन, पेंटेड स्टॉर्क, ब्लैक-नेक्ड स्टॉर्क, यूरेशियन स्पूनबिल और कई तरह के जलपक्षियों समेत नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पनपता है। हालांकि इसके बावजूद जलाशय को न तो आधिकारिक रूप से मान्यता मिली है और न ही संरक्षण, जिसके कारण इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

शिकारी, प्रदूषण और अतिक्रमण—तीन दिशाओं से घिरा खतरा

याचिकाकर्ता का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण जलस्रोत होने के बावजूद इस वेटलैंड को न तो आधिकारिक मान्यता मिली है और न ही कोई संरक्षण। उनके वकील ने बताया कि यहां संरक्षण ने होने के कारण पैमाने पर पक्षियों का शिकार हो रहा है। इसके समर्थन में दर्ज एक एफआईआर का भी हवाला दिया गया है।

उनका कहना है कि यह झील न सिर्फ स्थानीय राजस्व दस्तावेजों में दर्ज है, बल्कि हरियाणा के नेशनल वेटलैंड एटलस में भी ‘कोटला दहर झील’ के नाम से मौजूद है, जोकि यही जलस्रोत है। इसके बावजूद इसे न तो संरक्षित घोषित किया गया है और न ही इसे बचाने के लिए कोई पुख्ता कदम उठाए गए हैं।

अदालत के सामने यह भी तथ्य रखा गया है कि तेजी से फैल रहे अतिक्रमण, प्रदूषण और शिकार इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह कर रहे हैं। ऐसे में यदि समय रहते संरक्षण न मिला, तो यह अनमोल वेटलैंड सिर्फ नक्शों और दस्तावेजों में ही रह जाएगा।

हजारीबाग: खतरे में धोबिया तालाब, प्रदूषण-अतिक्रमण से हाल-बेहाल

हजारीबाग नगर निगम (एचएमसी) द्वारा उठाए कदम धोबिया तालाब और झिंझरी नदी को प्रदूषण और अतिक्रमण से बचाने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। यह जानकारी झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) द्वारा एनजीटी में सौंपी रिपोर्ट में सामने आई है। इस रिपोर्ट को 4 दिसंबर 2025 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने 8 अप्रैल 2025 को झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया था कि वह धोबिया तालाब और झिंझरी के पुनर्जीवन के लिए तैयार कार्ययोजनाओं/संशोधित कार्ययोजनाओं के सम्बन्ध में हुई प्रगति पर रिपोर्ट जमा करे।

हजारीबाग नगर निगम ने अपनी संशोधित कार्ययोजना की स्थिति रिपोर्ट अदालत में सौंपी है, जिसमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दो हिस्से शामिल हैं। अल्पकालिक योजना में नालों को मोड़ना, अतिक्रमण रोकना, पानी की गुणवत्ता में सुधार लाना और स्थानीय लोगों में जागरूकता बढ़ाना जैसे कदम शामिल था।

लेकिन रिपोर्ट की जांच से पता चला है कि दक्षिण-पश्चिम दिशा से आने वाला एक नाला अब भी धोबिया तालाब में गिर रहा है और 9 में से केवल पांच अतिक्रमण ही हटाए गए हैं।

दीर्घकालिक योजना भी अधर में, अब तक नहीं बना एसटीपी

वहीं दीर्घकालिक कदमों में ठोस कचरा प्रबंधन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण और अतिक्रमण हटाना शामिल है। हालांकि एसटीपी के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) मंजूर हो चुकी है, लेकिन प्लांट का निर्माण अब तक शुरू नहीं हो सका है।

रिपोर्ट साफ तौर पर दर्शाती है कि योजनाओं का क्रियान्वयन बेहद धीमा है और वर्तमान व्यवस्था से इन महत्वपूर्ण जलस्रोतों का पुनर्जीवन संभव नहीं दिखता।

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