विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट ने दुनिया के सामने उभरते जल संकट की बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश की है। इस रिपोर्ट में भारत की गंगा सहित दूसरी नदियों में गिरते जल स्तर की भी विस्तृत जानकारी दी गई है। साथ ही, गिरते भूजल स्तर, कम होती बर्फ और जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते जल संकट का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2023 दुनिया भर की नदियों के लिए पिछले 33 वर्षों में सबसे सूखा वर्ष था। मतलब कि पिछले तीन दशकों के दौरान दुनिया भर की नदियों में पानी का प्रवाह कभी इतना कम नहीं रहा।
एक ओर जहां दुनिया भर में बड़ी तेजी से साफ पानी की मांग बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ इसकी उपलब्धता तेजी से कम होने की वजह से भारत सहित कई देशों में पानी को लेकर टकराव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में अधिकांश नदियों का जल स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा कम था। 2021 और 2022 की तरह ही पिछले साल दुनिया की 50 फीसदी से अधिक नदी क्षेत्रों में स्थिति असामान्य रही। इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में पानी सामान्य से कम था। वहीं कम क्षेत्र ऐसे थे जहां पानी सामान्य से अधिक रहा।
2023 में, उत्तरी, मध्य और दक्षिण अमेरिका के कई क्षेत्रों में भीषण सूखा पड़ा। साथ ही इस दौरान नदी का प्रवाह भी घट गया। ऐसा ही कुछ मिसिसिपी और अमेजन जैसी नदियों में भी देखने को मिला, जहां पानी रिकॉर्ड स्तर तक घट गया। एशिया और ओशिनिया में भी गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकांग नदी के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से कम पानी देखा गया।
दूसरी तरफ अफ्रीका के पूर्वी तट पर नदी का प्रवाह और बाढ़ सामान्य से अधिक थी। न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप और फिलीपींस में भी नदी के जल स्तर में काफी वृद्धि देखी गई। उत्तरी यूरोप, यूके, आयरलैंड, फिनलैंड और दक्षिणी स्वीडन में भी नदी का प्रवाह सामान्य से ऊपर रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक जलाशयों और झीलों में भी कुछ इसी तरह का पैटर्न देखने को मिला है, जहां सामान्य से कम पानी उपलब्ध है।
इस दौरान भारत, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में जलाशयों में पानी का स्तर सामान्य से कम रहा। देखा जाए तो जलाशयों में मौजूद पानी में अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि पानी का प्रबंधन कैसे किया जाता है। उदाहरण के लिए अमेजन और पराना बेसिन जैसे कुछ क्षेत्रों में जल स्तर बहुत अधिक था, भले ही 2023 में वहां नदी का प्रवाह बहुत कम था।
अमेजन की कोआरी झील में पानी का स्तर सामान्य से कम रहा, जिससे पानी का तापमान बहुत अधिक हो गया। इस बीच, केन्या और इथियोपिया द्वारा साझा की जाने वाली तुर्काना झील में नदी के भारी प्रवाह के चलते सामान्य से अधिक पानी था।
इस दौरान दक्षिण अफ्रीका की तरह ही भारत, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल में सामान्य से अधिक बारिश की वजह से अधिकांश कुओं का भूजल स्तर ऊंचा रहा। वहीं उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में लंबे सूखे के चलते भूजल का स्तर कम था। इसी तरह चिली और जॉर्डन में भी भूजल का स्तर सामान्य से नीचे था। हालांकि यह गिरावट जलवायु कारकों की बजाय लोगों द्वारा भूजल के बहुत ज्यादा किए जा रहे दोहन की वजह से थी।
"स्टेट ऑफ ग्लोबल वॉटर रिसोर्सेज 2023" नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा घट रही है, जिससे वैश्विक जल आपूर्ति पर दबाव बढ़ रहा है।
12 महीनों में ग्लेशियरों ने खो दी 60,000 करोड़ टन बर्फ
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पिछले पांच दशकों में ग्लेशियर भी पहले से कहीं अधिक तेजी से बर्फ खो रहे हैं। 2023 में लगातार दूसरे वर्ष दुनिया के ग्लेशियरों में जमा बर्फ में गिरावट आई है।
ग्लेशियरों से तेजी से पिघलती बर्फ भी एक बड़ी समस्या है। आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2022 से अगस्त 2023 के बीच ग्लेशियरों ने 60,000 करोड़ टन से अधिक बर्फ को खो दिया।
इस दौरान मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय आल्प्स के ग्लेशियरों में गिरावट दर्ज की गई। जहां स्विट्जरलैंड के ग्लेशियरों ने पिछले दो वर्षों में अपनी शेष बर्फ का करीब 10 फीसदी हिस्सा खो दिया। इतना ही नहीं उत्तरी गोलार्ध में बर्फ का आवरण बसंत के अंत और गर्मियों में छोटा होता जा रहा है। 1967 के बाद से मई 2023 में बर्फ का आवरण आठवां सबसे कम था। उत्तरी अमेरिका के लिए, यह उसी समय अवधि में सबसे कम रहा।
हाल के वर्षों में, यूरोप, स्कैंडिनेविया, काकेशस, पश्चिमी कनाडा, दक्षिण पश्चिमी एशिया और न्यूजीलैंड में ग्लेशियरों ने गर्मियों में बहुत अधिक बर्फ खो दी है, जिसका अर्थ है कि ग्लेशियर अपने पीछे हटने की चरम हद को पार कर चुके हैं। इसकी वजह से जल भंडारण और उपलब्धता घट जाती है। वहीं दक्षिणी एंडीज़ (विशेषकर पेटागोनिया), रूसी आर्कटिक और स्वालबार्ड में ग्लेशियर के पिघलने की दर अभी भी बढ़ रही है।
देखा जाए तो इसके तार जलवायु में आते बदलावों से भी जुड़े हैं। जलवायु आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। नतीजन कई जगहों पर तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। वहीं शुष्क परिस्थितियों के चलते लम्बे समय तक सूखे की स्थिति देखी गई। हालांकि दूसरी तरफ कई क्षेत्रों में इस दौरान बाढ़ की घटनाएं भी सामने आई।
यह तो निश्चित है कि इन चरम घटनाओं के पीछे जलवायु में आते बदलावों की बड़ी भूमिका रही है। वहीं 2023 के मध्य में ला नीना से अल नीनो में बदलाव जैसी मौसमी घटनाओं ने भी आग में घी का काम किया है। इसके साथ ही हिंद महासागर में आए बदलाव के चलते मौसम की स्थिति खराब हो गई।
इस बारे में डब्लूएमओ के महासचिव प्रोफेसर सेलेस्टे साउलो का कहना है कि, "जल, जलवायु परिवर्तन के लिए एक चेतावनी के संकेत की तरह है।" "इसे हम भारी बारिश, बाढ़ और सूखे जैसे चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि के रूप में देख रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इन चरम मौसमी घटनाओं में हताहत हुए लोगों के मामले में अफ्रीका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिए लीबिया में, सितंबर 2023 में आई भीषण बाढ़ के चलते दो बांध ढह गए। इस आपदा में 11,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इस आपदा में वहां की 22 फीसदी आबादी प्रभावित हुई। इसी तरह बाढ़ ने ग्रेटर हॉर्न ऑफ अफ्रीका, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, रवांडा, मोजाम्बिक और मलावी को भी प्रभावित किया है।
वहीं दूसरी तरफ दक्षिणी अमेरिका, मध्य अमेरिका, अर्जेंटीना, उरुग्वे, पेरू और ब्राजील सूखे से प्रभावित रहे। इसकी वजह से जहां अर्जेंटीना ने अपने तीन फीसदी जीडीपी को खो दिया। दूसरी तरफ अमेजन और टिटिकाका झील का जल स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।
डब्लूएमओ प्रमुख के मुताबिक यह घटनाएं जन-जीवन के साथ-साथ प्रकृति और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रही हैं। ध्रुवों पर जमा बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से लाखों लोगों पर खतरा मंडराने लगा है। लेकिन इसके बावजूद हम दिन-प्रतिदिन गहराती इस समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।“
सावधान! बिगड़ रहा है जलचक्र का संतुलन
उनका आगे कहना है, "बढ़ते तापमान के चलते जलचक्र का संतुलन बिगड़ रहा है, और वो कहीं अधिक अप्रत्याशित होता जा रहा है।" "इसका मतलब है कि हम बहुत ज्यादा पानी या उसकी बहुत कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनमें अप्रत्याशित बारिश, बाढ़ और सूखा जैसी घटनाएं शामिल हैं।
देखा जाए तो गर्म वातावरण में कहीं अधिक नमी होती है, जिससे भारी बारिश होती है, दूसरी तरफ वाष्पीकरण की दर बढ़ने से मिट्टी कहीं अधिक शुष्क हो जाती है, नतीजन सूखे की स्थिति कहीं बदतर रूप ले लेती है।"
उनके मुताबिक हमें इस अमूल्य संसाधन की वास्तविक स्थिति के बारे में बहुत कम जानकारी है। ऐसे में हम उस चीज का बेहतर प्रबंधन नहीं कर सकते, जिसके बारे में हमारी जानकारी सीमित है। ऐसे में न केवल सीमाओं के भीतर बल्कि उसके बाहर भी इन संसाधनों की बेहतर निगरानी, आंकड़ों को साझा करने और सीमा पार सहयोग की आवश्यकता है।
यह रिपोर्ट दुनिया भर में मौजूद जल संसाधनों का स्पष्ट और विस्तृत दृष्टिकोण देती है। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निर्णयों का मार्गदर्शन करना है जो जल संसाधन को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। साथ ही उन आपदाओं के खतरे को सीमित करना है, जो कहीं न कहीं इससे जुड़ी हैं। यह झीलों, जलाशयों और मिट्टी में मौजूद नमी के साथ ग्लेशियरों और ध्रुवों पर जमा बर्फ पर नई जानकारी के साथ अब तक की सबसे विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करती है।
रिपोर्ट का लक्ष्य कई स्रोतों से जानकारी का उपयोग करके जल सम्बन्धी आंकड़ों का एक वैश्विक संग्रह तैयार करना है। यह सभी के लिए प्रारंभिक चेतावनी पहल का समर्थन करती है, जो पानी से संबंधित आंकड़ों की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार पर केंद्रित है। इसका मकसद 2027 तक सभी को बाढ़, सूखा, तूफान जैसी घटनाओं से बचाने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना है।
रिपोर्ट के मुताबिक इसका असर न केवल जल संसाधनों पर पड़ रहा है। साथ ही यह मिट्टी में मौजूद नमी को भी प्रभावित कर रहा है। 2023 में दुनिया के कई स्थानों पर मिट्टी में नमी का स्तर सामान्य से कम था। उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व जून से अगस्त के बीच विशेष रूप से शुष्क थे।
सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में, मध्य और दक्षिण अमेरिका विशेष रूप से ब्राजील और अर्जेंटीना में सामान्य से बहुत कम वाष्पीकरण और पानी की हानि हुई। वहीं सूखे के चलते मेक्सिको ने करीब-करीब पूरे वर्ष इन शुष्क परिस्थितियों को अनुभव किया।
इसके विपरीत अलास्का, पूर्वोत्तर कनाडा, भारत, रूस और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों के साथ-साथ न्यूजीलैंड जैसे कुछ क्षेत्रों में मिट्टी में नमी का स्तर सामान्य से बहुत अधिक था।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि मार्च में उत्तरी गोलार्ध के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से कम बर्फबारी हुई। लेकिन उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में सामान्य से बहुत अधिक बर्फबारी दर्ज की गई, जबकि यूरोप और एशिया के स्थानों में भी बर्फबारी बहुत कम रही।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में 360 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें साल में कम से के एक महीने पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा। वहीं आशंका है कि अगले 26 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 500 करोड़ को पार कर जाएगा। इसका मतलब बिलकुल साफ है कि दुनिया अभी भी साफ पानी और स्वच्छता के लिए निर्धारित सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने की राह में अभी भी बहुत पीछे है।