वैज्ञानिकों की नई खोज, रेडियो तरंगों से पता चलेगा मिट्टी में सीसे का स्तर

सॉइल स्कैनर ने जांच में प्राकृतिक क्षेत्रों से लिए मिट्टी के नमूनों में सीसे की मौजूदगी और उसके स्तर का पता 72 फीसदी सटीकता के साथ लगाया
मिट्टी धरती पर जीवन का आधार है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
मिट्टी धरती पर जीवन का आधार है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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आधुनिक तकनीकों के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) सिग्नल किसी वरदान से कम नहीं। इनका वायरलेस कम्युनिकेशन से लेकर सेंसर तक अनगिनत क्षेत्रों और कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है। इसी रेडियो फ्रीक्वेंसी की मदद से अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नया सॉइल स्कैनर ईजाद किया है, जो मिट्टी में मौजूद सीसे (लीड) के स्तर का पता लगा सकता है।

इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में साझा जानकारी से पता चला है कि यह उपकरण मिट्टी में सीसे के स्तर का पता लगाने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह उपकरण उपयोग में आसान और पोर्टेबल होने के साथ-साथ सस्ता भी है।

बता दें कि कॉर्नेल टेक में सहायक प्रोफेसर राजलक्ष्मी नंदकुमार की प्रयोगशाला ने इस सॉइल स्कैनर को बनाया है। हालांकि पता चला है कि यह स्कैनर अभी प्रारंभिक चरण में है। इस पर कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ता काम कर रहे हैं।

यह उपकरण एक आरएफ ट्रांसमीटर से रिसीवर तक मिट्टी के माध्यम से विभिन्न आवृत्तियों की रेडियो तरंगें भेजता है। इन तरंगों के सिग्नल में आने वाले बदलाव यह पता लगाने में मदद करते हैं कि मिट्टी में कितना सीसा मौजूद है।

इस परियोजना में नंदकुमार की प्रयोगशाला में डॉक्टरेट के छात्र तनवीर अहमद, ब्रुकलिन कॉलेज के प्रोफेसर झोंगकी (जोशुआ) चेंग और 2023 ब्रुकलिन कॉलेज स्नातक मिखाइल मोहम्मद भी शामिल हैं, जो अब पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) में काम कर रहे हैं। वहीं सहायक प्रोफेसर नंदकुमार और यिक्सुआन गाओ इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता हैं।

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सहायक प्रोफेसर राजलक्ष्मी नंदकुमार ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि "हाल के वर्षों में, विशेष रूप से कोविड के दौरान, हममें से बहुत से लोग अपने बगीचों में काम करने को लेकर उत्साहित थे। लेकिन यदि आप को अपने बगीचे में टमाटर को उगाना है तो किसी निर्देश में मिट्टी में सीसे की जांच का जिक्र नहीं है।"

उनके मुताबिक यह पीएच के स्तर के बारे में है। हम में से बहुत से लोग, भले ही अक्सर मिट्टी के संपर्क में रहते हों, लेकिन इसके बावजूद हम सीसा प्रदूषण के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं।

गाओ का इस बारे में कहना है कि, "शोधकर्ता न्यूयॉर्क शहर में सीसे के प्रदूषण को लेकर जारी मानचित्र से प्रेरित थे, जिसे चेंग की शहरी मृदा प्रयोगशाला (यूएसएल) ने मिट्टी के सैकड़ों नमूनों का परीक्षण करने के बाद बनाया था। परीक्षणों से पता चला कि कई क्षेत्रों, खासकर उत्तरी ब्रुकलिन में सीसे का स्तर खतरनाक रूप से उच्च है।"

यूएसएल द्वारा जांचे गए मिट्टी के नमूनों में से करीब 45 फीसदी में सीसे का स्तर 400 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) से अधिक था। बता दें कि घरों की मिट्टी के लिए यह सीमा पिछले साल 200 पीपीएम कर दी गई थी।

गौरतलब है कि मिट्टी में सीसे की मात्रा केवल अमेरिका ही नहीं भारत में भी बेहद चिंता का विषय है। बिहार के पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक व्यापक अध्ययन में बिहार के छह जिलों में मानव दूध में सीसे की उच्च मात्रा पाई गई थी। इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता ने जानकारी दी है कि मिट्टी में सीसा भोजन के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है, जिसमें सब्जियां और मोटे अनाज इसके प्राथमिक वाहक होते हैं जो अंततः दूध में इसकी उपस्थिति का कारण बनते हैं।

कैसे काम करता है यह स्कैनर

मिट्टी में सीसे की जांच के लिए आमतौर पर नमूनों को विश्लेषण के लिए प्रयोगशाला में भेजना पड़ता है। इसके लिए कठोर रसायनों का उपयोग होता है, जो महंगा साबित हो सकता है। इसी तरह यदि इसकी जांच के लिए पोर्टेबल एक्स-रे फ्लोरोसेंस डिवाइस का उपयोग किया जाता है, जो कई समुदायों के लिए बहुत महंगा है।   

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वहीं वैज्ञानिकों द्वारा बनाया यह नया उपकरण बेहद सरल है। इसमें मिट्टी को ट्रांसमीटर और रिसीविंग एंटीना के बीच एक लीटर के प्लास्टिक कंटेनर में रखा जाता है। ट्रांसमीटर मिट्टी के माध्यम से कम और उच्च आवृत्तियों (700 से 1,000 मेगाहर्ट्ज और 2.3 से 2.5 गीगाहर्ट्ज) के रेडियो सिग्नल भेजता है। इसके बाद रिसीवर पावर स्पेक्ट्रम रीडिंग को विश्लेषण के लिए मशीन-लर्निंग मॉडल को भेजता है।

वैज्ञानिकों ने इस सॉइलस्कैनर को दो अलग-अलग नमूनों पर जांचा है। इसमें प्रयोगशाला में तैयार की गई मिट्टी जिसमें सीसा मिलाया गया था उसके नमूने और साथ ही 22 अलग-अलग तरह की मिट्टी में प्राकृतिक तौर पर मौजूद घटकों की जांच की गई थी।

जांच के दौरान स्कैनर ने प्राकृतिक क्षेत्रों से लिए नमूनों में सीसे की मौजूदगी और उसके स्तर का पता 72 फीसदी सटीकता के साथ लगाया था। वहीं सीसे का स्तर बढ़ने के साथ इस परिणाम कहीं ज्यादा सटीक हो गए। विश्लेषण से पता चला है कि जब सीसे का स्तर 500 पीपीएम से अधिक था, तो नतीजों में कोई त्रुटि नहीं थी।

गौरतलब है कि वैज्ञानिक स्कैनर के एक छोटे, सस्ते और बैटरी से चलने वाले संस्करण के विकास पर भी काम कर रहे हैं। इसमें स्मार्टफोन और कंप्यूटर में पाए जाने वाले वाई-फाई और आरएफआईडी चिप्स का इस्तेमाल किया जाएगा।

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