बादलों के निर्माण को प्रभावित कर रहा माइक्रोप्लास्टिक, मौसम के पैटर्न पर भी पड़ रहा असर

पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है माइक्रोप्लास्टिक्स बादलों के निर्माण से लेकर बारिश और यहां तक की मौसम के पैटर्न को भी प्रभावित कर सकते हैं
बादलों पर हावी होता माइक्रोप्लास्टिक; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
बादलों पर हावी होता माइक्रोप्लास्टिक; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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दुनिया में दिन-प्रतिदिन बढ़ता प्लास्टिक एक बड़ी समस्या को जन्म दे रहा है। माइक्रोप्लास्टिक के नाम से बदनाम इसके महीन कण मानव जाति के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। यह समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं है।

वैज्ञानिकों को समुद्र की अथाह गहराइयों से लेकर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर भी इसकी मौजूदगी के सबूत मिले हैं। यह कण हमारे भोजन, पानी और यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें भी घुल चुके हैं। इतना ही नहीं पौधों की जड़ों से लेकर अन्य जीवों में भी इसके मौजद होने के सबूत सामने आए हैं। देखा जाए तो जितना ज्यादा हम इसे समझ रहे हैं, उतना ही नए रहस्य हमारे सामने आते जा रहे हैं।

इसको लेकर किए ऐसे ही एक वैज्ञानिक अध्ययन ने खुलासा किया है कि वातावरण में मौजूद यह महीन कण मौसम के पैटर्न से लेकर जलवायु तक को प्रभावित कर रहे हैं।

पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए इस नए अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक के यह महीन कण बादलों के निर्माण से लेकर बारिश और यहां तक की जलवायु और मौसम के पैटर्न को भी प्रभावित कर सकते हैं।

बता दें कि इससे पहले जापानी वैज्ञानिकों को पहली बार बादलों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले थे।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी: एयर में प्रकाशित हुए हैं। रिसर्च से पता चला है कि प्लास्टिक के यह महीन कण बर्फ के नाभिकीय कणों के रूप में व्यवहार करते देखे गए हैं। बता दें कि बर्फ के यह नाभिकीय कण बेहद महीन एरोसोल होते हैं जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल के निर्माण में सहायता करते हैं।

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अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर मिरियम फ्रीडमैन ने इस पर प्रकाश डालते हुए प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि वातावरण में मौजूद बर्फ के जो क्रिस्टल बादलों का निर्माण करते हैं, कैसे माइक्रोप्लास्टिक उसको प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह प्लास्टिक के यह महीन कण बादलों के निर्माण, बारिश के पैटर्न, मौसम पूर्वानुमान, जलवायु मॉडलिंग और यहां तक ​​कि विमानों की सुरक्षा पर भी असर डाल सकते हैं।

फ्रीडमैन के मुताबिक पिछले दो दशकों के दौरान किए शोधों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक हर जगह मौजूद है। वहीं नए अध्ययन में यह साबित हो चुका है की यह कण बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में अब हमें इस बारे में बेहतर समझ की आवश्यकता है कि यह कण हमारी जलवायु प्रणाली के साथ कैसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं।

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अपने अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने चार प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स की जांच की है, ताकि यह समझा जा सके कि वे बर्फ के जमने को किस तरह से प्रभावित करते हैं।

इनमें कम घनत्व वाली पॉलीइथिलीन (एलडीपीई), पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी), पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी), और पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) शामिल है। प्रयोग के दौरान उन्होंने प्लास्टिक को पानी की बूंदों में लटकाया और बर्फ बनने का अध्ययन करने के लिए उन्हें धीरे-धीरे ठंडा किया।

कैसे बादल, बारिश और मौसम पर असर डाल रहा माइक्रोप्लास्टिक

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस औसत तापमान पर बूंदें जमीं, वह माइक्रोप्लास्टिक रहित बूंदों की तुलना में पांच से दस डिग्री ज्यादा गर्म था। मतलब की माइक्रोप्लास्टिक युक्त बूंदों का तापमान अन्य बूंदों की तुलना में पांच से दस डिग्री अधिक था। शोधकर्ताओं के मुताबिक आम तौर पर पानी की बूंदें -38 डिग्री सेल्सियस पर जम जाती हैं।

लेकिन धूल, बैक्टीरिया या माइक्रोप्लास्टिक जैसे कोई भी कण बर्फ जमने के शुरूआती बिंदु के रूप में कार्य कर सकते हैं। इससे माइक्रोप्लास्टिक युक्त बूंदें -22 से -28 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जम जाती हैं।

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इस तरह पानी की बूंद में किसी भी प्रकार का दोष चाहे वह धूल, बैक्टीरिया या माइक्रोप्लास्टिक हो, वो उसके आसपास बर्फ बनने में मदद कर सकते हैं। यह छोटी संरचना बूंदों को उच्च तापमान पर भी जमने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता हेदी बुसे ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, 'जब हमने माइक्रोप्लास्टिक युक्त बूंदों का परीक्षण किया, तो इनमें से आधी बूंदें -22 डिग्री सेल्सियस पर जम गईं।" उनके मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक जैसी कोई भी चीज जो घुलती नही है, वो बूंदों में एक दोष पैदा करता है, जिससे गर्म तापमान पर भी बर्फ बन जाती है।

हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इसका मौसम और जलवायु पर पड़ने वाला प्रभाव पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। लेकिन अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है की माइक्रोप्लास्टिक पहले ही इसे प्रभावित कर रहा है।

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उनके मुताबिक क्यूम्यलस, स्ट्रेटस और निम्बस जैसे बादलों में तरल और जमे पानी का मिश्रण होता है। ये बादल पूरे वायुमंडल में फैल सकते हैं। इनमें "निहाई" आकार के बादल शामिल हैं जो आंधी तूफान और गरज के साथ बन सकते हैं।

बादलों में बर्फ निर्माण की माइक्रोप्लास्टिक की क्षमता के चलते मौसम और जलवायु पर व्यापक असर पड़ सकता है। जब बादलों में ज्यादा बर्फ होती है तो वो बारिश के पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।

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शोधकर्तओं के मुताबिक जब हवा का पैटर्न बूंदों को ऊपर उठाते और ठंडा करते हैं तो यही वो समय होता है जब माइक्रोप्लास्टिक मौसम के पैटर्न के साथ-साथ बादलों में बर्फ के निर्माण को प्रभावित कर सकती है। माइक्रोप्लास्टिक जैसे अधिक एरोसोल वाले दूषित वातावरण में वहां मौजूद पानी कई एरोसोल कणों में वितरित हो जाता है, जिससे छोटी बूंदें बनती हैं। ऐसे में जब अधिक बूंदें होती हैं तो कम बारिश होती है, क्योंकि बूंदों को गिरने के लिए बड़ा होना पड़ता है।

ऐसे में बारिश होने से पहले बादल को कहीं ज्यादा पानी एकत्र करना होता है, जिससे जब बारिश होती है तो भारी मात्रा में होती है।

बादल आमतौर पर सौर विकिरण को परावर्तित करके पृथ्वी को ठंडा करते हैं, लेकिन कुछ बादल निश्चित ऊंचाई पर पृथ्वी से निकलने वाली ऊर्जा को फंसाकर धरती को गर्म कर सकते हैं। ऐसे में बादलों में मौजूद पानी और बर्फ का संतुलन इस बात को प्रभावित करता है कि वे पृथ्वी को गर्म या ठंडा करते हैं।

देखा जाए तो जैसे-जैसे माइक्रोप्लास्टिक्स वातावरण में जमा हो रहे हैं और बादलों के निर्माण के तरीकों को प्रभावित कर रहे हैं, उसका यह भी अर्थ है कि प्लास्टिक के यह महीन कण पहले ही वैश्विक जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि इन प्रभावों को अब तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है।

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रिसर्च में यह भी पता चला है कि समय के साथ, माइक्रोप्लास्टिक जैसे कण प्रकाश, हवा और एसिड के संपर्क में आने पर बदल सकते हैं। इससे उनकी बर्फ निर्माण की क्षमता पर असर पड़ता है।

परीक्षण से पता चला है कि अध्ययन किए गए सभी प्लास्टिक बर्फ निर्माण में मददगार होते हैं। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ कम घनत्व वाली पॉलीइथिलीन (एलडीपीई), पीपी और पीईटी की बर्फ निर्माण की क्षमता घट गई। वहीं दूसरी तरफ समय के साथ पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) की सतह पर होने वाले बदलावों की वजह से उसकी बर्फ निर्माण की क्षमता बढ़ जाती है।

यह अंतर दर्शाता है कि समय के साथ, जैसे-जैसे प्लास्टिक्स के यह महीन कण वायुमंडल के संपर्क में आएंगे, बादलों के निर्माण पर उनके प्रभाव में परिवर्तन हो सकता है।

रिसर्च से पता चला है कि एक बार प्लास्टिक के महीन कण जब ऊपरी वायुमंडल में पहुंचते हैं, तो सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आने से टूटने लगते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं, जो जलवायु में आते बदलावों को तेज कर सकती हैं।

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