कोटपूतली सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट विवाद: एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

ग्रामीणों का आरोप है कि कोटपूतली नगर परिषद पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन करते हुए एसटीपी बना रही है, जबकि गैर-कृषि भूमि पर इसे स्थानांतरित करने का विकल्प मौजूद है
कोटपूतली सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट विवाद: एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट
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सारांश
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कोटपूतली में प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के खिलाफ ग्रामीणों की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए एक संयुक्त समिति गठित की है।

  • समिति को चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है।

  • ग्रामीणों का आरोप है कि प्लांट आबादी और धार्मिक स्थलों के करीब बनाया जा रहा है, जिससे पर्यावरण और जनस्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 28 अक्टूबर 2025 को कोटपूतली-बहरोड़ जिले के चतुरभुज गांव में प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को लेकर ग्रामीणों की शिकायत पर संज्ञान लिया है। मामला राजस्थान का है। ग्रामीणों का आरोप है कि कोटपूतली नगर परिषद द्वारा यह प्लांट आबादी और धार्मिक स्थल के बेहद करीब बनाया जा रहा है।

एनजीटी की केंद्रीय पीठ ने निर्देश दिया है कि कोटपूतली-बहरोड़ के जिला कलेक्टर और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक-एक प्रतिनिधि की संयुक्त समिति बनाई जाए।

यह समिति मौके पर जाकर स्थानीय लोगों से बात करेगी और प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के पर्यावरण और जनस्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करेगी। समिति को चार हफ्तों के भीतर अपनी रिपोर्ट जमा करने के निर्देश दिए गए हैं।

साथ ही एनजीटी ने राजस्थान के मुख्य सचिव, नगर विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक और प्रमुख सचिव सहित अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी करने के भी निर्देश दिए हैं। सभी अधिकारियों से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।

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गौरतलब है कि यह याचिका राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले के चतुर्भुज गांव के सत्यनारायण शर्मा और तीन अन्य ग्रामीणों द्वारा दायर की गई है।

ग्रामीणों ने प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग की है। उनका कहना है कि यह प्लांट गांव चतुर्भुज में एक प्राचीन धार्मिक स्थल, स्कूल, गौशाला, मंदिर और पेयजल बोरिंग से मात्र 50 से 100 मीटर की दूरी पर बनाया जा रहा है।

गौरतलब है कि यह याचिका राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले के चतुर्भुज गांव के सत्यनारायण शर्मा और तीन अन्य ग्रामीणों द्वारा दायर की गई है।

ग्रामीणों ने प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग की है। उनका कहना है कि यह प्लांट गांव चतुर्भुज में एक प्राचीन धार्मिक स्थल, स्कूल, गौशाला, मंदिर और पेयजल बोरिंग से मात्र 50 से 100 मीटर की दूरी पर बनाया जा रहा है।

क्या है ग्रामीणों का आरोप

ग्रामीणों का आरोप है कि कोटपूतली नगर परिषद पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करते हुए एसटीपी बना रही है, जबकि गैर-कृषि भूमि पर इसे स्थानांतरित करने का विकल्प मौजूद है, जो प्रस्तावित साइट से महज 1,600 मीटर दूर है।

शिकायत में कहा गया है कि नगर परिषद ने एसटीपी को दूसरी जगह शिफ्ट करने से यह कहकर इनकार किया कि प्रस्तावित क्षेत्र बाढ़ग्रस्त इलाका है, जबकि हकीकत में यहां किसी प्रकार का जल प्रवाह नहीं होता।

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ग्रामीणों की शिकायत पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी ने साइट का निरीक्षण किया। इस जांच में पाया गया कि प्रस्तावित भूमि सरकारी स्कूल की जमीन है और उसी परिसर में, घनी आबादी के पास, एसटीपी बनाया जाना प्रस्तावित है। ग्रामीणों ने याचिका में यह भी बताया कि इस जमीन पर मुख्यमंत्री योजना के तहत गांव वालों के सहयोग से करीब 200 पेड़-पौधे लगाए गए हैं।

ग्रामीणों की शिकायत पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी ने साइट का निरीक्षण किया। इस जांच में पाया गया कि प्रस्तावित भूमि सरकारी स्कूल की जमीन है और उसी परिसर में, घनी आबादी के पास, एसटीपी बनाया जाना प्रस्तावित है। ग्रामीणों ने याचिका में यह भी बताया कि इस जमीन पर मुख्यमंत्री योजना के तहत गांव वालों के सहयोग से करीब 200 पेड़-पौधे लगाए गए हैं।

आबादी से दूर होना चाहिए प्लांट: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 28 अक्टूबर 2025 को इस मामले में स्पष्ट किया है कि इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सहमति अनिवार्य है। साथ ही, चूंकि एसटीपी गंदे पानी को साफ करती है, इसलिए इसे आबादी से पर्याप्त दूरी पर स्थापित किया जाना चाहिए।

अधिकरण ने यह भी कहा कि यदि ट्रीटमेंट प्लांट पर्यावरणीय मानकों का पालन करता है और सभी सावधानियां बरती जाती हैं, तो उसके निर्माण पर कोई कानूनी रोक नहीं है। हालांकि अदालत ने कहा कि जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत एसटीपी के लिए अनुमति आवश्यक है। यदि आवश्यक उपकरण न लगाए जाएं तो इससे दुर्गंध और प्रदूषण फैल सकता है।

अदालत ने यह भी कहा कि एसटीपी न होने पर गंदे पानी का निपटान बिना उपचार के होगा, जिससे जल और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाएगा।

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