हमीरपुर के भेरी दरिया वन ब्लॉक की सैटेलाइट छवियां बताती हैं कि वन खंड के वन क्षेत्र के अंदर या 100 मीटर की परिधि में कोई खनन नहीं पाया गया। यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है।
ग्राम हमीरपुर में वन भूमि में अवैध रेत खनन से संबंधित मामला पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। हमीरपुर के प्रभागीय वनाधिकारी को इस मामले की जांच के लिए एनजीटी द्वारा निर्देशित किया गया था।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भेरी दरिया वन ब्लॉक के वन क्षेत्र के अंदर अवैध खनन न हो यह सुनिश्चित करने के लिए भेरी दरिया वन ब्लॉक से सटे खनन ब्लॉक, सीमावर्ती कर्मचारियों द्वारा नियमित गश्त और उत्तर प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण जैसे प्रभावी उपायों का पालन कर रहे थे।
भादर नदी प्रदूषण
गुजरात के जेतपुर में सभी 3 सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (एसईटीपी) और एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से अपशिष्ट जल का उपचार, कृषि भूमि में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि सभी तीन सीईटीपी और एक एसटीपी से उत्पादित अपशिष्ट जल की मात्रा सिंचाई के लिए उपलब्ध भूमि की तुलना में बहुत अधिक है। यह सब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की संयुक्त समिति की अनुपालन रिपोर्ट में कहा गया है।
यह रिपोर्ट गुजरात के जेतपुर में कपड़ा इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी के कारण भादर नदी में हो रहे प्रदूषण पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुपालन में थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जेतपुर डाइंग एंड प्रिंटिंग एसोसिएशन (जेडीपीए) ने टैंकरों के माध्यम से कपड़ा इकाइयों से अपशिष्ट जल संग्रहण के लिए भादर नदी के किनारे 3 कुओं का निर्माण किया है।
कपड़ा इकाइयों ने इन नवनिर्मित कुओं के लिए ज्यादातर टैंकरों के माध्यम से अपशिष्ट को निकालना शुरू कर दिया है। हालांकि यह जेतपुर क्षेत्र से सीवेज और प्राथमिक उपचार जेतपुर के आवासीय क्षेत्र में स्थित कपड़ा इकाइयों से बहता है, जिसे अभी भी खुले सी-चैनल में छोड़ा जा रहा है और नदी के किनारे स्थित संग्रह करने वाले कुंओं में एकत्र किया जाता है। इसलिए भादर नदी के किनारे संग्रह करने वाले कुओं को नष्ट नहीं किया जाता है।
एक बार जब जेतपुर-नवागढ़ नगरपालिका द्वारा 23.5 एमएलडी क्षमता एसटीपी शुरू हो जाती है, तो सी-चैनल में कपड़ा इकाइयों से बहने वाले अपशिष्ट पूरी तरह से बंद होने की संभावना है और जेतपुर क्षेत्र में भादर नदी में अपशिष्ट जल भी नहीं मिलेगा।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि जेतपुर-नवागढ़ नगरपालिका द्वारा 23.5 एमएलडी एसटीपी का निर्माण कार्य जल्द से जल्द पूरा किया जाए और इसे चालू किया जाए ताकि पूरे क्षेत्र के सीवेज को इस एसटीपी से उपचार किया जा सके और जिससे सी-चैनल में बहने वाले सीवेज को पूरी तरह से बंद किया जा सके।
जीपीसीबी और जेडीपीए को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि औद्योगिक इकाइयां केवल जेडीपीए के सीईटीपी तक टैंकरों के माध्यम से अपने गंदे पानी का निपटान करें और सी-चैनल में किसी भी प्रकार के गंदे पानी को नहीं छोड़ा जाए ।
सभी उद्योगों से सीईटीपी टैंकरों को जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ जोड़ा जाना चाहिए और ट्रैकिंग को नियमित आधार पर जीपीसीबी को बताया जाना चाहिए। जेडीपीए को मौजूदा सी-चैनल, संग्रह नाबदान और भादर नदी के किनारे स्थित पम्पिंग स्टेशन को हटा देना चाहिए और जीपीसीबी निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिए।
इसके अलावा जेडीपीए की एसटीपी जो वर्तमान में सीवेज और अपशिष्ट के मिश्रण का उपचार कर रही है, इसको केवल औद्योगिक अपशिष्ट के उपचार के लिए सीईटीपी में परिवर्तित किया जाना चाहिए। एक बार जेतपुर-नवागढ़ नगरपालिका द्वारा एसटीपी का निर्माण किया जाता है तो सभी सीवेज को एसटीपी में बदल दिया जा सकता है। यह रिपोर्ट 23 नवंबर, 2020 को एनजीटी साइट पर अपलोड की गई।
औद्योगिक गतिविधियों के कारण कोसी नदी में प्रदूषण
19 नवंबर, 2020 को न्यायमूर्ति एसवीएस राठौर की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति ने सिफारिश की कि भूजल को उपयोग में लाने वाली सभी इकाइयों के संयंत्रों को होने वाली पानी की वास्तविक आवश्यकता का आकलन कर पानी के ऑडिट कराने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए जिसमें सतही जल जैसे स्रोत, उपचारित जल का पुन: उपयोग या जल संचयन आदि शामिल हैं।
ऐसे सभी उद्योगों को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपचारित पानी का उपयोग करने के तरीकों का पता लगाने के लिए नगरपालिका निकायों के साथ चर्चा करनी चाहिए। एक ऐसी योजना जिसमें पानी की न्यूनतम बर्बादी हो, इसे तैयार किया जाना चाहिए और इसे लागू किया जाना चाहिए।
उद्योगों को पीने और उपयोग के लिए पानी को उपयुक्त बनाने के लिए तृतीयक जल उपचार सुविधाओं को लगाने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। भूजल के गुणवत्ता नियंत्रण के संबंध में, बोरवेल ऐसी सभी इकाइयों के आसपास खोदे जा सकते हैं और पानी के नमूनों को समय-समय पर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) / राज्य भूजल प्राधिकरण (एसजीडब्ल्यूए) द्वारा हर तरह के के प्रदूषण का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
औद्योगिक गतिविधियों के कारण रामपुर जिले के कोसी नदी में होने वाले प्रदूषण का मुद्दा विचारणीय था। मुरादाबाद में भेल नदी, रामपुर में कोसी नदी की एक सहायक नदी है जो रामगंगा की सहायक नदी है जो बदले में गंगा नदी की सहायक नदी है।
हालांकि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों में स्थित उद्योगों द्वारा इन नदियों में प्रदूषण होता है, लेकिन निरीक्षण समिति ने केवल उत्तर प्रदेश में स्थित इकाइयों पर विचार किया क्योंकि उत्तराखंड के लिए एक अलग निरीक्षण समिति है।