
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने 7 जुलाई 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह जाजपुर जिले के विभिन्न गांवों में 'साबिक' और 'हाल' किस्म की वन भूमि पर हो रहे अवैध निर्माण के मामले में अपना जवाब दाखिल करे। इस मामले में ओडिशा के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग, और जाजपुर जिले के जिलाधिकारी को भी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है।
याचिकाकर्ता कैलाश चंद्र नायक का आरोप है कि वन भूमि पर गैर-वन गतिविधियों के लिए निर्माण कार्य हो रहा है। याचिकाकर्ता जाजपुर जिले के दनागड़ी तहसील के नुआडीही गांव निवासी हैं।
उनका कहना है कि ये अवैध निर्माण जिला खनिज फाउंडेशन फंड से किए जा रहे हैं, जिसे स्वयं जाजपुर के जिलाधिकारी ने मंजूरी दी है, जो कि फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं। निर्माण कार्य दनागड़ी और सुकीन्दा के बीडीओ द्वारा कराए जा रहे हैं।
आवेदक का आरोप है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना वन भूमि पर अवैध निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने 30 मार्च 2025 को इस मामले की शिकायत संबंधित विभाग को सौंपी थी।
इसके बाद 9 अप्रैल 2025 को ओडिशा के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के उप सचिव ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एचओएफएफ) को जांच के साथ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा गया था। हालांकि, वन भूमि पर अवैध निर्माण गतिविधि को रोकने के लिए अधिकारियों ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत केंद्र सरकार से अनुमति लिए बिना बड़े पैमाने पर कंक्रीट के निर्माण किए जा रहे हैं।
प्रदूषण मुक्त नालों से सरयू का जल होगा निर्मल, साम्यंधिरा नाले का कार्य शत-प्रतिशत पूरा
साम्यंधिरा नाले का कार्य शत-प्रतिशत पूरा हो चुका है। अब इस नाले से प्रस्तावित 26.25 क्यूसेक पानी बिना किसी रुकावट के सरयू नदी की ओर प्रवाहित हो सकेगा। यह जानकारी अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 8 जुलाई, 2025 को अदालत में सौंपी गई रिपोर्ट में दी गई है।
यह रिपोर्ट त्रिलोदकी नदी के प्रवाह में अवरोध और अमृत बॉटलर्स प्राइवेट लिमिटेड (कोका-कोला), अयोध्या द्वारा प्रदूषित जल छोड़े जाने की शिकायतों के संदर्भ में दी गई। इस नदी को स्थानीय रूप से त्रिलोकी या तिलोदकी गंगा भी कहा जाता है।
अयोध्या विकास प्राधिकरण के मुताबिक तेलइया नाले के विकास कार्य को उत्तर प्रदेश सरकार से मंजूरी मिल चुकी है। इसके लिए स्वीकृत 29.80 करोड़ रुपए में से अब तक 20.86 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं। यह नाला घनी आबादी वाले क्षेत्रों से गुजरता है, और इसका 80 फीसदी कार्य पूरा कर लिया गया है। वहीं शेष कार्य भी तेजी से किया जा रहा है।
अमृत बॉटलर्स ने दूषित जल को साफ करने के लिए एक संयंत्र (ईटीपी) भी लगाया है। इसमें प्रारंभिक, द्वितीयक और तृतीयक शोधन इकाइयों के साथ रिवर्स ऑस्मोसिस/अल्ट्रा-फिल्ट्रेशन यूनिट भी शामिल है। फिलहाल साफ किया गया पानी वर्तमान में मानकों के अनुसार एक प्राकृतिक नाले में छोड़ा जा रहा है, जो आगे चलकर तेलइया नाले में मिलता है।
कंपनी ने एक अलग नाला बनाने और उसे नए तेलइया नाले से जोड़ने की योजना भी तैयार की है।
प्रदूषण नियंत्रण या खानापूर्ति? एनजीटी के निशाने पर कालपी का एसटीपी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सोमवार 7 जुलाई, 2025 को रयाद नाले के इंटरसेप्शन और डायवर्जन के बाद बनाए जा रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण पर सुनवाई की। यह नाला उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कालपी नगर पालिका परिषद क्षेत्र से होकर बहता है।
याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा कि रयाद नाले में हर दिन करीब 11 मिलियन लीटर (एमएलडी) गंदा पानी बहता है, जबकि प्रस्तावित एसटीपी की क्षमता मात्र 5 एमएलडी है। इससे यह साफ है कि एसटीपी की क्षमता नाले के प्रवाह के मुकाबले काफी कम है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में समस्या आ सकती है।
याचिकाकर्ता ने अपने दावे के समर्थन में गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई, उत्तर प्रदेश जल निगम (ग्रामीण), कानपुर द्वारा 14 फरवरी 2025 को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और नाले के प्रवाह के माप से जुड़ी रिपोर्ट का हवाला दिया है।
एनजीटी ने इस मामले में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय सहित अन्य संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।