
राजस्थान में कोटा वन विभाग को मगरमच्छों की संख्या पर नजर रखने और उनकी आबादी को समझने के लिए नियमित रूप से गिनती करनी चाहिए। मगरमच्छों की उन्मुक्त आवाजाही और नदी जल स्वतंत्र रूप से बह सके इसके लिए एनीकट (छोटे बांध) की जगह पुल बनाए जाने चाहिए।
यह सिफारिशें संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में की हैं। यह रिपोर्ट 24 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई है।
संयुक्त समिति ने यह भी सिफारिश की है कि राज्य कृषि विभाग को चंद्रलोई नदी क्षेत्र में जैविक खाद को लेकर जागरूकता पैदा करनी चाहिए और इसे बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) को कोटा नगर निगम से घरेलू सीवेज कनेक्शनों में तेजी लाने और सभी नालों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की ओर मोड़ने का निर्देश देने की भी बात कही है।
इससे न केवल शहर से निकलने वाले सीवेज का उचित तरीके से उपचार हो सकेगा साथ ही चंद्रलोई नदी में भी बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सकेगी। नतीजन नदी की जल गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
गौरतलब है कि छह दिसंबर 2024 को अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के आधार पर अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है। खबर में नदी में मृत पाए गए चार संकटग्रस्त मगरमच्छों के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया गया था।
खबर में यह भी कहा गया कि 2022 के दौरान चंद्रलोई नदी में 50 मगरमच्छों की मौत हो गई, जिसका कारण उद्योगों से निकलने वाला कचरा और बढ़ता प्रदूषण था। खबर के प्रकाशित होने से छह दिन पहले, चार मगरमच्छ, जिनकी लम्बाई करीब 6 से 7 फीट थी, मृत पाए गए। इनकी मौत का कारण नदी के पानी में हो रहे औद्योगिक प्रदूषण को बताया गया।
इस मामले में 19 दिसंबर, 2024 को एनजीटी के आदेश पर एक संयुक्त समिति का गठन किया गया। अदालत ने संयुक्त समिति को साइट का निरीक्षण, जैव निगरानी और जैव-परीक्षण करने के साथ-साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था।
चन्द्रलोई नदी, चंबल की एक छोटी सहायक नदी है, जो कोटा के बाहरी इलाके में बहती है। इस नदी में कंसुआ नाला मिलता है, जो घरेलू सीवेज, साफ किए औद्योगिक अपशिष्ट और कृषि अपवाह को भी अपने में समेटे रहता है।
चंद्रलोई नदी के इस हिस्से में नदी की पूरी लम्बाई में मगरमच्छ पाए जाते हैं। कोटा में नदी के इस भाग में कुछ मगरमच्छ मृत मिले हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता और वन्यजीव की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
संयुक्त समिति ने 24 और 25 जनवरी, 2025 को इस क्षेत्र का दौरा किया और चंद्रलोई नदी में उन नौ स्थानों से पानी के नमूने एकत्र किए, जहां 30 नवंबर से 4 दिसंबर, 2024 के बीच मगरमच्छों की मौत की सूचना मिली थी।
नदी में बढ़ता प्रदूषण है समस्या की जड़
चंद्रलोई नदी में दूषित सीवेज का मिलना एक बड़ी समस्या है, जैसा कि जल गुणवत्ता परीक्षणों और टोटल और फीकल कोलीफॉर्म के उच्च स्तरों से पता चलता है। बढ़ता जैविक प्रदूषण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। वहीं नदी तल में चिरोनोमिडे कीटों की मौजूदगी भी सीवेज प्रदूषण की पुष्टि करती है।
दिलचस्प बात यह है कि जैव-परीक्षण के नतीजे एकत्रित नमूनों में मछलियों के जीवित रहने की दर 90 से 100 फीसदी दर्शाते हैं, जोकि अच्छी खबर है। इससे पता चलता है कि प्रदूषण के बावजूद जलीय जीवन अभी भी जीवित रहने में कामयाब हो रहे हैं। हालांकि, लम्बे समय तक प्रदूषण की मौजूदगी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है।
यह भी देखा गया कि भारी धातुओं का स्तर सामान्य सीमा के भीतर है। लेकिन स्थानीय किसानों द्वारा कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग चिंता का विषय है। नदी के पानी में एल्ड्रिन, एंडोसल्फान, 4,4-डीडीई जैसे कीटनाशकों के अंश पाए गए हैं, हालांकि यह स्तर अभी भी पेयजल के लिए निर्धारित मानकों के भीतर हैं।
समिति ने कोटा के पशु चिकित्सा अधिकारियों से भी बात की है, जिन्होंने पोस्टमॉर्टम किया था। हालांकि, शव सड़ने के कारण मगरमच्छों की मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है। लेकिन इसका संभावित कारण कई अंगों का विफल होना हो सकता है। विसरा के नमूने कोटा में राज्य फोरेंसिक लैब में भेजे गए हैं और रिपोर्ट का इंतजार है।
रिपोर्ट में माना गया है कि कोटा के सीवेज सिस्टम में कुछ समस्याएं हैं, जिससे दूषित सीवेज चंद्रलोई नदी में मिल रहा है। हालांकि 2.75 एमएलडी की अतिरिक्त सीवेज उपचार क्षमता मौजूद है, लेकिन घरेलू कनेक्शनों में मौजूद अंतराल प्रदूषण का कारण बन रहा है।
ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक सभी घरों को सीवेज सिस्टम से जोड़ने और नदी तक पहुंचने से पहले सीवेज का उपचार सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।
अखबार ने 50 मगरमच्छों की मौत की सूचना दी है, लेकिन कोटा के वन एवं वन्यजीव विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक, जनवरी 2022 से दिसंबर 2024 के बीच केवल दस मगरमच्छों की मौत हुई है।