
गोदावरी नदी, विशेष रूप से तेलंगाना क्षेत्र में, लगातार बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जताते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 29 मई, 2025 को संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया है।
इस मामले में अदालत ने तेलंगाना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड को अगली सुनवाई से पहले अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई एक अगस्त, 2025 को होगी।
यह मामला तेलंगाना टुडे में 13 मई 2025 को छपी खबर के आधार पर ट्रिब्यूनल ने स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज किया है। इस खबर में बताया गया है कि औद्योगिक इकाइयों और सीवेज का बिना उपचार गंदा पानी सीधे गोदावरी में बहाया जा रहा है। इसकी वजह से गोदावरी नदी में गंभीर प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है।
इसकी वजह से पानी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर बढ़ रहा है।
खबर के मुताबिक तेलंगाना के आदिलाबाद, करीमनगर, वारंगल और खम्मम जिलों में प्रदूषण से स्थिति बेहद गंभीर है। भद्राचलम जैसे क्षेत्रों में पानी पीने तो दूर, उपयोग लायक भी नहीं बचा। यहां नदी का पानी काला हो गया है और उसमें से दुर्गंध आ रही है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अंधाधुंध शहरीकरण, नदी के किनारों पर अनियंत्रित अतिक्रमण और वनों की कटाई ने स्थिति और बिगाड़ दी है। इन पर्यावरणीय मुद्दों के कारण स्थानीय आबादी में त्वचा रोग और पेट संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।
उद्योगों की लापरवाही से दूषित गोदावरी
खबर के मुताबिक, बार-बार चेतावनी के बावजूद उद्योगों और सार्वजनिक इकाइयों से अवैध रूप से अपशिष्ट बहाया जा रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र में नासिक से पैठण तक गोदावरी के करीब 300 किलोमीटर लंबे हिस्से में जैविक प्रदूषण (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) बहुत अधिक दर्ज किया गया है, जिससे जलजीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
तेलंगाना टुडे में छपी इस खबर के मुताबिक नासिक और नांदेड़ में खेतों से निकलने वाली रासायनिक खाद और कीटनाशक बिना किसी फिल्टरेशन के सीधे नदी में पहुंच रहे हैं।
औरंगाबाद व पैठण के पानी में भारी धातुएं जैसे लोहा, जिंक, निकल और तांबा खतरनाक स्तर तक पहुंच गए हैं, जिससे पानी पीने लायक नहीं रह गया है।
समाचार में यह भी बताया गया है कि आंध्र प्रदेश में राजमहेंद्रवरम से डोलेश्वरम बैराज तक की नदी की हालत और खराब है। यह हिस्सा देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी खंडों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (नेशनल रिवर कंजर्वेशन प्लान) जैसे प्रयासों के बावजूद नदी की हालत में खास सुधार नहीं आया है और प्रदूषण का स्तर उच्च बना हुआ है।