उत्तराखंड में गंगा जल नहाने योग्य पानी के लिए निर्धारित प्राथमिक जल गुणवत्ता मानकों पर खरा है। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने चार नवंबर 2024 को अदालत में दाखिल अपनी रिपोर्ट में दी है।
जनवरी से जुलाई 2024 के बीच दर्ज आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान पानी में घुली ऑक्सीजन (डीओ), पीएच, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), फीकल कोलीफॉर्म (एफसी) और फीकल स्ट्रेप्टोकोकी (एफएस) का स्तर तय मानकों के अनुरूप था।
रिपोर्ट के मुताबिक सीपीसीबी, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) के साथ मिलकर 2023 में मानसून के बाद से उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहायक नदियों (अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी, पिंडर और नंदाकिनी) में सीधे गिरने वाले 176 नालों की निगरानी कर रहा है। इनमें रामगंगा और उसकी सहायक नदियां जैसे सुसवा, सोंग, बाणगंगा और सुखी में मिलने वाले 25 नाले भी शामिल हैं। इन नालों में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट के साथ-साथ घरों से निकलने वाला दूषित पानी भी होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक निगरानी किए गए 176 नालों में से 113 नालों को अलग-अलग सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से जोड़ा गया है।
हालांकि सोंग नदी में गिरने वाले रिस्पना नाले में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर काफी अधिक था। इस नाले में रोजाना 755.56 मिलियन लीटर (एमएलडी) पानी बहता है और बीओडी का स्तर 32 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
मानकों पर खरे नहीं थे 48 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
वहीं जब बात उत्तराखंड में गंगा किनारे बसे शहरों में सीवेज प्रबंधन की स्थिति की आती है, तो रिपोर्ट से पता चला है कि 19 शहरों में 53 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। सीपीसीबी द्वारा अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच की गई निगरानी के मुताबिक इनमें से 50 संयंत्र चालू पाए गए, जबकि तीन काम नहीं कर रहे थे।
इन 53 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से दो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 30 अप्रैल, 2019 के आदेश पर निर्धारित मानकों को पूरा कर रहे थे, जबकि 48 उन मानकों पर खरे नहीं थे।
वहीं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) द्वारा 13 अक्टूबर, 2017 को घोषित ट्रीटेड सीवेज डिस्चार्ज मानकों के लिहाज से देखें तो नौ प्लांट इन मानकों का पालन कर रहे थे, जबकि 41 एसटीपी इनपर खरे नहीं थे।
गौरतलब है कि इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उत्तर प्रदेश में गंगा की जल गुणवत्ता को लेकर 22 अक्टूबर, 2024 को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट की थी। इसके अनुसार 2024 के जल गुणवत्ता आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में गंगा का अधिकांश हिस्सा नहाने योग्य पानी के लिए निर्धारित बुनियादी जल गुणवत्ता मानकों को पूरा करता है।
हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक कुछ क्षेत्र इन मानकों पर पूरी तरह खरे नहीं हैं, इनमें फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर तक और कन्नौज से कानपुर में गंगा पुराना राजापुर तक का हिस्सा शामिल है।
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 तक की गई सीपीसीबी की निगरानी के अनुसार, इनमें से 35 एसटीपी काम कर रहे हैं, जबकि छह चालू नहीं थे।
बता दें कि इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सात अगस्त, 2024 को एनजीटी के समक्ष दायर अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि गंगा नदी बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के लिए तय गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं है।
वहीं बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दस अक्टूबर 2024 को एनजीटी में सौंपी अपनी जल गुणवत्ता विश्लेषण रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि गंगा की जल गुणवत्ता पीएच, घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ), और बीओडी के मानकों को तो पूरा करती है। हालांकि, वो स्नान के लिए सुरक्षित आवश्यक बैक्टीरियोलॉजिकल मानकों जैसे टोटल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म पर खरी नहीं है।