एनजीटी ने 'आयड़ रिवर स्मार्ट फ्रंट डेवलपमेंट एंड ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट' पर जारी किए दिशानिर्देश

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दून घाटी के लिए पर्यटन विकास योजना बनाने का दिया निर्देश
एनजीटी ने 'आयड़ रिवर स्मार्ट फ्रंट डेवलपमेंट एंड ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट' पर जारी किए दिशानिर्देश
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उदयपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड को 'आयड़ रिवर स्मार्ट फ्रंट डेवलपमेंट एंड ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट' पर काम करते समय सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि नदी के प्रवाह की दिशा में खड़ी दीवारों को छोड़कर कहीं भी आरसीसी कंक्रीट का उपयोग न करें। वहीं जिन स्थानों पर आरसीसी से निर्माण की योजना है, खासकर कमजोर मिट्टी और कम असर क्षमता वाले क्षेत्रों में, उससे बचना चाहिए।

आरसीसी स्लैब का उपयोग करने के बजाय, परियोजना को सूखे पत्थर के बोल्डर या स्थिरीकरण जैसे अन्य तरीकों का उपयोग करके क्षेत्र को मजबूत करना चाहिए। यह दिशानिर्देश एनजीटी की भोपाल स्थित सेंट्रल बेंच नेदिए हैं।

अदालत का कहना है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) से निकले उपचारित अपशिष्ट जल को नदी में छोड़ने से पहले कीटाणुरहित करने के लिए वर्तमान में क्लोरीनीकरण प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इसलिए, कोर्ट ने क्लोरीनीकरण से ओजोनीकरण पर स्विच करने की सिफारिश की है, जो कीटाणुओं को दूर करने की एक अधिक प्रभावी विधि है और अपशिष्ट जल में घुले ऑक्सीजन की मात्रा को भी बढ़ाती है।

इसके अतिरिक्त, अदालत ने 5 सितंबर, 2023 को अधिकारियों को कुछ दिशानिर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया है, जैसे:

  • नदी के दोनों किनारों पर पेड़ लगाएं।
  • नदी के किनारे ऊंची इमारतें बनाने से बचें।
  • पूरे शहर में एक केंद्रीय चैनल बनाएं।
  • वहां स्थित इमारतों की नींव संबंधी संभावित समस्याओं से बचने के लिए नदी के किनारों के पास गहराई बढ़ाने से रोकें, क्योंकि इससे नदी के किनारों पर स्थित इमारतों की नींव खराब हो सकती है।

इन उपायों का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और नदी के स्वास्थ्य में सुधार करना है।

इस मामले में आवेदक, झील संरक्षण समिति ने दलील दी है कि सौंदर्यीकरण के नाम पर किए गए कंक्रीट कार्यों और निर्माण गतिविधियों के चलते आरोपी ने आयड़ के नदी तटों और बाढ़ के मैदान पर सीधे अतिक्रमण किया है। उनका आगे दावा है कि नदी तल पर किए इस कंक्रीट कार्य और बाढ़ क्षेत्र पर निर्माण ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर दिया है, जो जल अधिनियम 1974 का उल्लंघन है।

बता दें किआयड़, बेराच की सहायक नदी है, जो बनास नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, और बनास नदी, चंबल नदी की एक सहायक नदी है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने रूपनगर में हो रहे अवैध खनन के असली दोषियों की पहचान करने का दिया निर्देश

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इलाके में हो रहे अवैध खनन से निपटने में रूपनगर पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने देखा कि पुलिस केवल जेसीबी चालक और टिपर ऑपरेटर जैसे गरीब व्यक्तियों को ही गिरफ्तार कर रही है और उनके साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जा रहा है।

कोर्ट ने चार सितम्बर 2023 को दिए बयान में कहा है कि "यह एक खेदजनक स्थिति है कि पुलिस असली दोषियों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है, जिनके कहने पर अवैध खनन किया जा रहा था।"

कोर्ट के अनुसार पुलिस यह पता लगाने में सक्षम नहीं थी कि अवैध खनन किसके इशारे पर किया जा रहा था और ऐसे में अदालत ने रूपनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एक विस्तृत रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया है। इस रिपोर्ट में कोर्ट ने यह जानकारी मांगी है कि अवैध खनन किसके कहने पर किया जा रहा था और उसपर आरोप क्यों नहीं लगाए गए हैं।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दून घाटी के लिए पर्यटन विकास योजना बनाने का दिया निर्देश

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दून घाटी में पर्यटन विकास और खनन गतिविधियों को लेकर राज्य को निर्देश दिए हैं। कोर्ट के अनुसार राज्य को एक पर्यटन विकास योजना बनानी होगी और चार सप्ताह के भीतर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी लेने का निर्देश दिया है। इसके अतिरिक्त, राज्य को 6 जनवरी, 2020 को संशोधित दून वैली अधिसूचना में  दिए अन्य सभी दायित्वों का पालन करने को कहा है।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया है कि संशोधित दून घाटी अधिसूचना के अनुसार, दून घाटी में किसी भी खनन गतिविधि को शुरू करने से पहले केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी लेना अनिवार्य है।

साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड को एक हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए कहा है, जिसमें पूछा है कि क्या राज्य ने इसके सम्बन्ध में कानून बनाए हैं, जिसमें इस बात की जानकारी हो कि दून घाटी के भीतर किसी भी खनन गतिविधि को करने के लिए कोई भी लाइसेंस पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के बाद ही जारी किया जाएगा। राज्य को चराई के लिए एक योजना भी बनानी चाहिए और इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी लेनी चाहिए।

वे यह भी जानना चाहते हैं कि इस संशोधन को रद्द करने के राज्य सरकार के अनुरोध का क्या हुआ। इसके अतिरिक्त, अदालत चाहती है कि केंद्र सरकार उन्हें 24 अप्रैल, 2023 को राज्य द्वारा प्रस्तुत एकीकृत मास्टर प्लान की समीक्षा में प्रगति के बारे में जानकारी दे। हाई कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया तो उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 10 अक्टूबर 2023 को अदालत के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा

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