

मेघालय सरकार ने मिंटडू नदी की सुरक्षा के लिए जोवाई बाइपास सड़क निर्माण के दौरान हुई पर्यावरणीय क्षति की भरपाई के लिए कई कदम उठाए हैं।
प्रभावित किसानों को मुआवजा दिया गया है और कचरे का पुनः उपयोग किया जा रहा है। नदी की गाद निकालने का काम शुरू हो चुका है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
मेघालय सरकार ने भरोसा दिलाया है कि जोवाई बाइपास सड़क निर्माण के दौरान हुई पर्यावरणीय क्षति की भरपाई के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि मिंटडू नदी की स्वच्छ और प्राकृतिक स्थिति बनी रहे। इस संबंध में 11 दिसंबर 2025 को लोक निर्माण विभाग (सड़क एवं भवन) के सचिव ने राज्य सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क निर्माण परियोजना के दुष्प्रभावों को कम करने और मिंटडू नदी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रशासन ने कई कदम उठाए हैं। सभी कृषि क्षेत्रों से मलबा और कचरा हटा दिया गया है और प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा भी दिया गया है।
रिपोर्ट से पता चला है कि सड़क परियोजना से निकलने वाला निर्माण और टूटफूट से जुड़ा अधिकांश कचरा मिट्टी, पत्थर और बोल्डर के रूप में है। इनमें से ज्यादातर का उपयोग दोबारा तटबंध, फुटपाथ, डिवाइडर और संपर्क सड़कों के निर्माण में किया जा रहा है, जबकि बहुत कम मात्रा में ही ऐसा कचरा है जिसे अलग से निपटाने की जरूरत पड़ रही है।
मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को रोकने के लिए जून-जुलाई 2025 में सड़क के ढलान वाले हिस्सों में 300 से 400 बांस और अन्य पौधे लगाए गए हैं। इसके अलावा, मिंटडू नदी से गाद निकालने (डी-सिल्टिंग) का काम भी शुरू हो चुका है, जिसे मार्च 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
सरकार ने यह भी कहा है कि यह परियोजना राज्य में, खासकर पश्चिम जैंतिया हिल्स में, सड़क संपर्क को बेहतर बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। खराब मौसम और पर्यावरणीय चुनौतियों के बावजूद परियोजना में लगातार प्रगति हो रही है। लोक निर्माण विभाग की सतत निगरानी और आवश्यक सुरक्षा उपायों के चलते यह परियोजना जल्द सफलतापूर्वक पूरी होने की राह पर है, जिससे क्षेत्र के लोगों को लंबे समय तक फायदा मिलेगा।
प्रोजेक्ट साइट के आसपास कृषि भूमि को सुरक्षित रखने और किसी भी तरह के नुकसान या अतिक्रमण को रोकने के लिए भी उचित कदम उठाए गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, मिंटडू नदी में अस्थाई सैंडबैग सुरक्षा संरचनाएं केवल स्टील गर्डर प्लेट लगाने के लिए बनाई गई हैं। पानी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए तटबंधों में ह्यूम पाइप लगाए गए हैं। चक्रवात ‘रेमल’ और निर्माण कार्य से नदी में जमा हुई गाद को भी नियमित रूप से साफ किया जा रहा है।
इसके अलावा, जोवाई नगर बोर्ड ने मेघालय सरकार की मदद से उमलाम्मत एलाका में जोवाई के लिए एक एकीकृत वैज्ञानिक लैंडफिल के लिए जमीन की पहचान कर ली है और उसे हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
गौरतलब है कि एनजीटी के आदेश पर गठित एक संयुक्त समिति ने 13 दिसंबर 2024 को साइट का निरीक्षण किया था। समिति ने देखा कि जोवाई बाइपास के पूरे हिस्से में मिट्टी और पत्थरों सहित खोदी गई सामग्री घाटी में फेंकी जा रही थी। जांच में यह भी पता चला कि निर्माण और विध्वंस कचरे के लिए 2016 के सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के अनुसार कोई अधिकृत डंपिंग साइट, संग्रह केंद्र या प्रोसेस साइट मौजूद नहीं थी, जो कि नियमों का उल्लंघन है।
संयुक्त समिति ने यह बह पाया है कि ठेकेदार ने अधिकांश क्षेत्रों में मलबे को ढलान से बहने को रोकने के लिए रेत की बोरियों की अस्थाई दीवार बनाई है, जो मलबे को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त थी।
निरीक्षण के दौरान यह भी पाया गया कि परियोजना से उत्पन्न कचरे का कोई रिकॉर्ड या लिस्ट नहीं बनाई गई। इसके अलावा, 2016 के सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के तहत आवश्यक वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट और स्थानीय प्राधिकरण की मंजूरी भी नहीं दी गई थी।
जल गुणवत्ता पर सड़क निर्माण के प्रभाव को समझने के लिए मेघालय राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने जल गुणवत्ता की जांच की है। इसकी विश्लेषण रिपोर्ट में पाया गया कि पानी नहाने योग्य मानकों के अनुरूप था और निर्माण तथा विध्वंस कचरे का मिंटडू नदी की जल गुणवत्ता पर कोई गंभीर असर नहीं पड़ा है। हालांकि, मलबा फेंकने से नदी में गाद जम रही थी।
संयुक्त समिति ने यह भी देखा कि जोवाई के आसपास के क्षेत्रों का ठोस कचरा घाटी में लापरवाही से फेंका जा रहा है। कचरे के इस असंगत निपटान ने स्थानीय प्रशासन की कचरा संग्रह, भंडारण और परिवहन व्यवस्था में कमजोरियों को उजागर किया है। इसके अलावा, समिति ने शहर में ठोस कचरा प्रसंस्करण सुविधा के अभाव को भी रेखांकित किया है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया कि जोवाई बाइपास सड़क के निर्माण के दौरान पर्यावरण नियमों के उल्लंघन, कचरा प्रबंधन में लापरवाही के साथ-साथ वनस्पति व जीव-जंतुओं को नुकसान के मामले सामने आए हैं।
कई एजेंसियों के भरोसे दिल्ली के झील, तालाब, रिकॉर्ड अब भी अधूरे
दिल्ली में झीलों, तालाबों और अन्य जल संरचनाओं का रखरखाव अलग-अलग सरकारी एजेंसियां द्वारा किया जा रहा है। यह जानकारी 12 दिसंबर 2025 को दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी की ओर से दाखिल एक रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, जिस इलाके में जलाशय स्थित है, उस क्षेत्र की भूमि स्वामी एजेंसी उसका रखरखाव कर रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में मौजूद 1,045 जल संरचनाओं का मिलान 17 भूमि स्वामी एजेंसियों के साथ समन्वय कर पूरा कर लिया गया है। हालांकि, दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार कई जलाशयों के खसरा नंबर उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उनके सही रिकॉर्ड और निगरानी में दिक्कत आ रही है।
ये जल संरचनाएं केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी), वन विभाग, नगर निगम दिल्ली (एमसीडी), राजस्व विभाग और आइजीएससी के अधीन आती हैं।
यह मामला दिल्ली में जल संरचनाओं के गायब होने से जुड़ा है। द हिंदू में 25 अप्रैल 2024 को प्रकाशित खबर के मुताबिक, 2024 में दिल्ली में भीषण बाढ़ आने के बावजूद जल संरचनाओं की बदहाल स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। ये जलाशय अतिरिक्त पानी को रोककर बाढ़ के असर को सीमित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।