
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के तिरुपत्तूर, वेल्लोर और रानीपेट जिलों में चमड़ा उद्योगों की सख्त निगरानी के लिए तीन सदस्यीय पर्यावरण ऑडिट समिति गठित की है।
यह समिति केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर आठ कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स और 27 इंटीग्रेटेड एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स का ऑडिट करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के तिरुपत्तूर, वेल्लोर और रानीपेट में चल रहे चमड़ा उद्योगों और ट्रीटमेंट प्लांट्स की जांच के निर्देश दिए हैं। 16 सितंबर 2025 को दिए अपने आदेश में अदालत ने इन जिलों में चल रहे आठ कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी), उनकी 457 इकाइयों और 27 इंटीग्रेटेड एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट का ऑडिट करने को कहा है।
इसके लिए तीन सदस्यीय पर्यावरण ऑडिट समिति बनाई गई है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए जांच करेगी। इस समिति में दो विशेषज्ञ आईआईटी मद्रास से नामित होंगे, जबकि तीसरे सदस्य के रूप में जानसन्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयम्बटूर के प्रिंसिपल वी नागराजन शामिल होंगें।
समिति से हर छह महीने में ऑडिट करने को कहा गया है और पहली रिपोर्ट छह महीने में सुप्रीम कोर्ट में सौंपी जाएगी। उसके बाद कोर्ट तय करेगा कि कितनी बार यह ऑडिट दोहराया जाए।
पारदर्शिता और निगरानी पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वेल्लोर जिला पर्यावरण निगरानी समिति जरूरत पड़ने पर तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जस्टिस एम सत्यनारायणन की अध्यक्षता वाली समिति से डेटा मांग सकती है। ऐसी स्थिति में संबंधित जानकारी तुरंत याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराई जाए।
तमिलनाडु सरकार से कहा गया है कि वो समिति की बैठकों के लिए जरूरी ढांचा और रिकॉर्ड सुरक्षित रखने की सुविधा उपलब्ध कराए। अगर समिति को सुचारू कामकाज के लिए किसी और मदद की जरूरत हो, तो राज्य सरकार तुरंत उसे पूरा करे। यह मामला सीईटीपी और आईईटीपी की नियमित निगरानी से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दायर हलफनामे पर भी गौर किया है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 22 अगस्त 2025 को तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सीपीसीबी और सीएसआईआर-नीरी के साथ बैठक की थी। इसमें तिरुपत्तूर, वेल्लोर और रानीपेट जिलों में चल रहे सीईटीपी, उनकी सदस्य इकाइयों और आईईटीपी के पर्यावरण ऑडिट अध्ययन को अंतिम रूप देने पर चर्चा हुई।
बैठक में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि 18 अगस्त 2025 को उसने सीएसआईआर-सीएलआरआई और सीएसआईआर-नीरी को ऑडिट करने के लिए पत्र भेजा था।
बोर्ड के पत्र के जवाब में केवल सीएसआईआर-नीरी ने ऑडिट करने में रुचि दिखाई। बैठक में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने वेल्लोर डिस्ट्रिक्ट एनवायरमेंट मॉनिटरिंग कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों को समझाया और मौजूदा निगरानी व्यवस्था पर भी चर्चा की।
ऑडिट का उद्देश्य सिर्फ खामियों को दर्ज करना नहीं: सीपीसीबी
सीपीसीबी अधिकारियों ने पर्यावरण ऑडिट अध्ययन के लिए पानी और नमक के संतुलन पर तकनीकी सुझाव दिए। सीपीसीबी ने कहा कि तिरुपत्तूर, वेल्लोर और रानीपेट में चल रहे 8 सीईटीपी, उनकी 457 सदस्य इकाइयों और 27 आईईटीपी का ऑडिट किया जाना चाहिए। साथ ही, सीईटीपी के प्रदर्शन मूल्यांकन के दौरान उसकी सदस्य इकाइयों का भी समानांतर ऑडिट किया जाना जरूरी है।
सीपीसीबी ने कहा कि ऑडिट का उद्देश्य सिर्फ खामियों को दर्ज करना नहीं है, बल्कि अनुपालन, निगरानी और जवाबदेही के लिए एक मजबूत व्यवस्था बनाना भी है। इसके लिए व्यापक ऑडिट, वैज्ञानिक जल और नमक संतुलन अध्ययन, ऊर्जा दक्षता की जांच और क्रोम रिकवरी सिस्टम की पुष्टि पर जोर दिया गया है। यह सब चमड़ा फैक्ट्रियों को पर्यावरण अनुकूल ढंग से चलाने की दिशा में व्यावहारिक कदम हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इन कदमों का मकसद बिना या अधूरे तरीके से साफ किए गए गंदे पानी की समस्या को जड़ से खत्म करना है, ताकि प्रभावित जिलों में लंबे समय तक पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके।
यह साफ तौर पर दिखाता है कि चमड़ा उद्योगों से निकलने वाला गंदा पानी केवल स्थानीय नदियों और जमीन को ही नहीं, बल्कि लाखों लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती अब इस समस्या के स्थाई समाधान की ओर एक बड़ा कदम मानी जा रही है।