

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश में चार लेन सड़क निर्माण के दौरान नदी में मलबा फेंकने की शिकायत पर गंभीरता से संज्ञान लिया है।
एनजीटी ने हिमाचल सरकार, एनएचएआई और अन्य संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है। साथ ही, मलबे के सुरक्षित निपटान और निगरानी के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने वास्तविक स्थिति की जांच और जरूरी कदम उठाने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने के भी निर्देश दिए हैं।
इस समिति में पर्यावरण मंत्रालय का शिमला स्थित क्षेत्रीय कार्यालय, हिमाचल प्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हिमाचल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मंडी के जिलाधीश के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
मंडी के सौली खड्ड में सड़क निर्माण के दौरान नदी में मलबा फेंके जाने की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हिमाचल सरकार से जवाब मांगा है। मामला हिमाचल प्रदेश का है। आरोप है कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) की चार लेन सड़क परियोजना के निर्माण के दौरान नदी में मलबा फेंका गया।
19 नवंबर 2025 को दिए अपने आदेश में एनजीटी ने इस मामले में हिमाचल प्रदेश सरकार, मंडी के जिलाधीश, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी) और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से जवाब मांगा है।
अदालत ने एनएचएआई को यह बताने का निर्देश दिया है कि मलबे को तय जगहों पर सुरक्षित ढंग से फेंकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट करे कि नदी में मलबा न गिरे, इसके लिए निगरानी कैसे की जा रही है। साथ ही मलबे को निर्धारित डंप साइट पर ही डालने की क्या व्यवस्था की गई है।
एनजीटी ने वास्तविक स्थिति की जांच और जरूरी कदम उठाने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने के भी निर्देश दिए हैं। इस समिति में पर्यावरण मंत्रालय का शिमला स्थित क्षेत्रीय कार्यालय, हिमाचल प्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हिमाचल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मंडी के जिलाधीश के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
संयुक्त समिति को निर्देश दिया गया है कि वह मौके पर जाकर स्थिति की जांच करे, शिकायतकर्ता की आपत्तियों को सुने, तथ्यात्मक हालात की पुष्टि करे और सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए। समिति को एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट अदालत में सौंपनी होगी।
आवेदन में आरोप लगाया गया है कि ठेकेदार बिना किसी रोक-टोक के बड़े पत्थर और भारी मात्रा में मलबा पास की नदी में फेंक रहे हैं।
अस्पतालों की पर्यावरण प्रबंधन योजना पर उठे सवाल, स्वास्थ्य मंत्रालय ने अदालत में रखा अपना पक्ष
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से अदालत में बताया गया कि अस्पतालों की पर्यावरण प्रबंधन योजना को वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए जरूरी निर्देश दिए जाने अभी बाकी हैं
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 नवंबर 2025 को देश के प्रमुख अस्पतालों के भीतर और आसपास बढ़ते प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से कड़े कदम उठाने को कहा है। सुनवाई में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बताया गया कि अस्पतालों की पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) को वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए जरूरी निर्देश दिए जाने अभी बाकी हैं।
ट्रिब्यूनल को यह भी बताया गया है कि योजना के क्लॉज-6 में दो अहम सिफारिशें दी गई हैं। इनमें पहला, पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को देखने के लिए विशेष मल्टी-डिसिप्लिनरी इंटर-एजेंसी समिति बनाने की जरूरत है। दूसरा हर अस्पताल में एक स्थाई पर्यावरण इंजीनियर नियुक्त हो, जो पर्यावरण प्रबंधन योजना को लागू करने और समन्वय का काम देखे।
मंत्रालय का कहना है कि क्लॉज-6 के पालन से जुड़े निर्देश अभी आने बाकी हैं। ऐसे में मंत्रालय ने अदालत से इस पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय देने का अनुरोध किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 11 फरवरी 2026 को होगी।
गौरतलब है कि 21 अगस्त 2025 को सुनवाई में ट्रिब्यूनल ने पाया था कि अस्पतालों की जो पर्यावरण प्रबंधन योजना मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की गई है, उस पर किसी अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं और यह भी पता नहीं चलता कि यह योजना ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुसार तैयार की गई है या नहीं।
इसके बाद 26 अगस्त 2025 को दाखिल अपने हलफनामे में मंत्रालय ने दावा किया था कि “पर्यावरण प्रबंधन योजना विधिवत तैयार और स्वीकृत की जा चुकी है।“
लेकिन ट्रिब्यूनल ने सवाल उठाया कि इस योजना को किस अधिकारी ने तैयार और स्वीकृत किया है, इसका कोई विवरण हलफनामे में नहीं दिया गया।