जैसे ही अंधेरा छाता है रात में जागने वाले जीवों का एक तरह से दिन शुरू हो जाता है। निशाचर प्रजातियां लाखों सालों से रात के अंधेरे में जीवित रहने के लिए पूरी तरह से अनुकूल हैं। इन अंधेरे में रहने वाले जीवों के साथ क्या होता है जब रात में उनके घर पर स्ट्रीट लाइट या अन्य तरह की कृत्रिम रोशनी पड़ती है?
नए अध्ययन में, अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का अध्ययन किया कि प्रकाश प्रदूषण ऑस्ट्रेलियाई गार्डन ऑर्ब वीविंग स्पाइडर या मकड़ियों के विकास को कैसे प्रभावित करता है। उन्होंने पाया कि यह उनके मस्तिष्क को छोटा बनाता है, विशेष रूप से आंखों वाले हिस्सों में जो उनके व्यवहार पर कई अज्ञात प्रभाव डालता है।
जानवरों पर प्रकाश प्रदूषण का असर
कृत्रिम प्रकाश दुनिया को प्रदूषित करने के सबसे तेजी से बढ़ते तरीकों में से एक है और इसका जानवरों, पौधों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। हाल के साक्ष्य बताते हैं कि प्रकाश प्रदूषण के साथ रहने का तनाव कुछ पक्षियों और स्तनधारियों में मस्तिष्क के विकास को रोक सकता है।
यह विनाशकारी हो सकता है। ऐसे नए वातावरण में जीवित रहने के लिए जहां प्रकाश प्रदूषण सबसे आम है, जैसे कि शहर, जानवरों को वास्तव में बड़े और अधिक जटिल मस्तिष्क की आवश्यकता हो सकती है।
लेकिन रात्रिचर कीड़ों, मकड़ियों और अन्य छोटे जीवों के बारे में क्या? क्या प्रकाश प्रदूषण उनके मस्तिष्क की वृद्धि और विकास को भी प्रभावित कर सकता है? रात्रिचर ऑस्ट्रेलियाई गार्डन ऑर्ब वीविंग स्पाइडर या मकड़ियों पर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि ऐसा होता है।
ऑस्ट्रेलियाई गार्डन ऑर्ब वीविंग स्पाइडर इस सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए एक आदर्श प्रजाति है। यह शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में आराम से रहता है, जहां यह हर रात खुले इलाकों में अपना जाल बनाता है।
पिछले अध्ययनों में पाया गया कि शहरी मकड़ियां जो स्ट्रीट लाइट के नीचे जाल बनाती हैं, वे अधिक कीटों का शिकार करती हैं। शोध में कहा गया है कि रात में प्रकाश की कीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि यह किशोरों के विकास को तेज करता है, जिसके कारण छोटे वयस्क कम संतान पैदा करते हैं।
इस वर्तमान अध्ययन में इस बात पता लगाया गया कि क्या रात में प्रकाश में विकास नर और मादाओं में मस्तिष्क के आकार को भी प्रभावित करता है।
बायोलॉजी लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में, इस सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए, शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में अपेक्षाकृत अंधेरे पार्कों से किशोर मकड़ियों को लिया और उन्हें वयस्क होने तक प्रयोगशाला में पाला। पालन-पोषण के दौरान, आधी मकड़ियों को रात में अंधेरे में रखा गया और बाकी आधी को स्ट्रीट लाइट की चमक के बराबर रात की रोशनी में रखा गया।
छोटे मस्तिष्क, के पीछे के क्या कारण हैं?
मकड़ियों के पूरी तरह से विकसित होने के कुछ सप्ताह बाद, शोधकर्ताओं के द्वारा मूल्यांकन किया गया कि क्या रात में प्रकाश ने उनके मस्तिष्क के विकास को प्रभावित किया है। क्योंकि मकड़ी का मस्तिष्क बॉलपॉइंट पेन की निब के आकार का होता है, जो कि एक घन मिलीमीटर से भी कम होता है, इसलिए शोधकर्ताओं ने अंदर क्या है, यह देखने के लिए माइक्रो-सीटी इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि रात में प्रकाश के थोड़े समय के संपर्क में आने से मकड़ी के मस्तिष्क का आकार कुल मिलाकर छोटा हो गया। सबसे मजबूत प्रभाव मकड़ी की प्राथमिक आंखों में देखने से जुड़े मस्तिष्क के इलाके में देखा गया।
यह हो सकता है कि रात में प्रकाश के कारण एक तनावपूर्ण वातावरण बना जिसने विकास और वृद्धि से संबंधित हार्मोनल प्रक्रियाओं को रोक दिया। हालांकि अगर ऐसा होता, तो हम मस्तिष्क के सभी हिस्सों को प्रभावित होते हुए देखा जा सकता है।
रेगिस्तानी चींटियों (कैटाग्लिफिस फोर्टिस) जैसे अन्य अकशेरुकी अपने मस्तिष्क के देखने वाले हिस्से में इसी तरह के "न्यूरोप्लास्टिक बदलाव" दिखाते हैं जब वे जमीन की नीचे घोंसले की देखभाल से ऊपर की ओर देखकर भोजन की तलाश में जाते हैं।
हमारे लिए मकड़ियां और उनका दिमाग क्यों जरूरी हैं
यह सब काफी रोचक है, लेकिन आप सोच रहे होंगे कि हमें प्रकाश प्रदूषण के कारण मकड़ी के मस्तिष्क के आकार पर पड़ने वाले प्रभाव की परवाह क्यों करनी चाहिए।
यह इसलिए कि मकड़ियां पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे अन्य अकशेरुकी जीवों को खाती हैं, जिनमें मक्खियां और मच्छर जैसी कई कीट प्रजातियां शामिल हैं। मकड़ियां पक्षियों और छिपकलियों जैसे अन्य शिकारियों के लिए भी महत्वपूर्ण शिकार हैं।
यदि मकड़ियों का मस्तिष्क छोटा हो जाता है, तो यह उनके ज्ञान संबंधी कार्य और महत्वपूर्ण भूमिकाओं को निभाने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। हम पक्षियों और स्तनधारियों की अन्य प्रजातियों से जानते हैं कि बड़े मस्तिष्क जीवों को नए शहरी वातावरण में जीवित रहने में मदद कर सकते हैं और यह संभावना है कि मकड़ियों के लिए भी यही सच हो सकता है।
यह शोध इस बात की भी तस्दीक करता है कि मस्तिष्क के विकास पर प्रकाश प्रदूषण का प्रभाव अकशेरुकी जीवों के साथ-साथ पक्षियों और स्तनधारियों तक भी फैलता है।