रात में कृत्रिम रोशनी की वजह से घट रही है कीट पतंगों की आबादी: अध्ययन

झाड़ियों और घास-पूस वाली जगहों पर कीटों की आबादी में 47 प्रतिशत की कमी और सड़क के किनारे घास-पूस वाले क्षेत्रों में 37 प्रतिशत की कमी देखी गई
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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आज इस बात के कई प्रमाण हैं कि हाल के दशकों के दौरान कुछ स्थलीय कीट पतंगों की आबादी में तेजी से गिरावट आई है, जिसने पारिस्थितिक तंत्र के कामकाज के बारे में चिंता बढ़ा दी है। रात में उपयोग किया जाने वाला कृत्रिम प्रकाश (एएलएएन) जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र प्रक्रियाओं के लिए तेजी से खतरा बनते जा रहा है।  

रात में उपयोग होने वाले स्ट्रीट लाइट विशेष कर वे जो सफेद प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एल ई डी) हैं। यह न केवल कीटों के व्यवहार को बदल रहा हैं, बल्कि उनकी घटती संख्या के लिए भी जिम्मेवार है। इस बात का पता दक्षिणी इंग्लैंड में किए गए एक नए अध्ययन से चला है। रात में कृत्रिम रोशनी को दुनिया भर में कीटों की आबादी में गिरावट करने वाले कारणों के रूप में पहचाना गया था, लेकिन इस विषय पर बहुत कम शोध किया गया है।  

इस सवाल का हल ढूंढने के लिए, वैज्ञानिकों ने 26 सड़कों के किनारों की तुलना की, जिसमें झाड़ियों और घास-पूस वाली जगहों के किनारे शामिल थे, जहां स्ट्रीट लाइट द्वारा रोशनी की जा रही थी। वहीं दूसरी ओर ऐसी ही समान संख्या में जगहें थी जो बिना रोशनी के थे। उन्होंने एक ऐसी जगह की भी जांच की जिसमें एक बिना रोशनी वाला हिस्सा था और दो जगहों पर स्ट्रीट लाइट के द्वारा रोशनी की गई थी, जिनमें वनस्पति लगभग समान थी।   

टीम ने रात्रिचर कीट मोथ कैटरपिलर को चुना, क्योंकि वे उड़ने की क्षमता हासिल करने से पहले अपने जीवन के लार्वा चरण के दौरान कुछ ही मीटर के अंदर रहते हैं।

टीम ने या तो झाड़ियों को डंडों से हिलाया ताकि कैटरपिलर बाहर गिर जाएं या घास को झाड़ कर कर उन्हें जाल में उठा लिया। शोधकर्ताओं ने कहा परिणाम आंखें खोलने वाले थे, झाड़ियों और घास-पूस वाली जगहों पर कीटों की आबादी में 47 प्रतिशत की कमी और सड़क के किनारे घास-पूस वाले क्षेत्रों में 37 प्रतिशत की कमी देखी गई।  

यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के प्रमुख शोधकर्ता डगलस बोयस ने बताया कि हम वास्तव में काफी हैरान थे कि यह कितना गंभीर था, जबकि टीम को लगभग 10 प्रतिशत की मामूली गिरावट की उम्मीद थी। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस बात के सबसे अधिक आसार हैं कि इन इलाकों में मादाओं के अंडे नहीं देने के कारण यह सब हो रहा है।

कृत्रिम रोशनी ने उनके खाने के व्यवहार को भी बिगाड़ दिया है, जब टीम ने कैटरपिलर का वजन किया, तो उन्होंने पाया कि रोशनी वाले क्षेत्रों में वे अधिक भारी थे। बोयस ने कहा कि टीम ने इस बात का पता लगाया कि कैटरपिलर यह नहीं जानते कि अनजान स्थिति का जवाब कैसे दिया जाए, जो उन परिस्थितियों के विपरीत चलती है जहां वे लाखों वर्षों में विकसित हुई हैं। अपने विकास के माध्यम से तेजी से बढ़ने के परिणामस्वरूप वे अधिक खाना खाती हैं।

टीम ने पाया कि उच्च दबाव वाले सोडियम (एचपीएस) लैंप या पुराने निम्न-दबाव वाले सोडियम (एलपीएस) लैंप के विपरीत एलईडी की रोशनी वाले इलाकों में व्यवधान सबसे अधिक पाया गया। दोनों ही एक पीले-नारंगी चमक उत्पन्न करते हैं जो सूरज की रोशनी से कम मेल खाती है। यह अध्ययन साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है।

अपनी बेहतर ऊर्जा दक्षता के कारण हाल के वर्षों में एलईडी लैंप अधिक लोकप्रिय हो गए हैं। अध्ययन ने माना कि स्ट्रीट लाइट का प्रभाव स्थानीय आधार पर होता है और कीटों की संख्या में गिरावट के लिए मामूली तौर पर जिम्मेदार है। शहरीकरण और उनके आवासों के विनाश, अत्यधिक कृषि, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन सहित अन्य महत्वपूर्ण कारण भी इनकी कम होती संख्या के जिम्मेवार हैं।

लेकिन यहां तक ​​कि स्थानीय आधार पर भोजन की कटौती के पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पक्षियों और चमगादड़ों के लिए भोजन कम होता है जो अक्सर कीड़ों का शिकार कर अपना पेट भरते हैं।

शोधकर्ताओं ने इस समस्या से निपटने के लिए काफी अच्छा समाधान भी बताया हैं। बोयस ने कहा समाधान के रूप में जैसे लैंप के रंग को बदलने के लिए उस पर फिल्टर लगाना या ढाल लगाना ताकि प्रकाश केवल सड़क पर ही रोशनी बिखेरे, कीट पतंगों के रहने वाली जगहों पर नहीं। 

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