एक अध्ययन में कहा गया है कि समुद्र के तटवर्ती शहरों में रहने वाले लोगों पर भी प्रकाश प्रदूषण का हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। दुनिया की 75 फीसदी आबादी तटीय क्षेत्रों में रहती है। तटीय आबादी के 2060 तक दोगुने से अधिक होने का अनुमान है।
इतना ही नहीं, कृत्रिम प्रकाश से समुद्री प्रजातियों पर भी खतरनाक प्रभाव पड़ने की बात कही गई है।
अब दुनिया के कस्बों और शहरों को रोशन करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई सफेद एलईडी में चमक पैदा करने के लिए हरे, नीले और लाल तरंग दैर्ध्य के मिश्रण का उपयोग किया जा रहा है। रात के समय बढ़ते कृत्रिम प्रकाश को एक तरह के प्रदूषण के रूप में देखा जा रहा है।
लेकिन आक्रामक प्रजातियों पर कृत्रिम प्रकाश (एलन) के प्रभाव के बारे में बहुत कम शोध हुआ है। खासकर ऐसी प्रजातियां जो किसी क्षेत्र में स्थानीय रुप से या जन्म से नहीं रहती हैं। कभी-कभी इनके कारण आर्थिक और पारिस्थितिक क्षति हो सकती सकती है। यह शोध साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
हालांकि निशाचर कीट जैसे पतंगे, मक्खियां और भृंग इस कृत्रिम प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं। ये अकशेरुकी जीव, जो शिकारी पक्षी और मेंढक जैसे निशाचर परभक्षियों के खाद्य स्रोत हैं। इन सभी परभक्षियों में केन मेंढक (केन टोड) जिसका वैज्ञानिक नाम 'राइनेला मरीना' है, ये सबसे प्रतिष्ठित आक्रामक प्रजातियों में से एक है।
केन मेंढक रात में उड़ने वाले कीड़ों का शिकार करते हैं। टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर हिरोटका कोमाइन और ऑस्ट्रेलिया के जेम्स कुक विश्वविद्यालय के अपने सहयोगियों के साथ यह पता लगाना चाहते थे कि - क्या विशेष रूप से किसी विशेष स्थान पर कृत्रिम प्रकाश के द्वारा खाद्य स्रोत उपलब्ध कराया जा रहा हैं, उसका केन टोड पर कोई प्रभाव पड़ रहा है या नहीं।
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के टाउनस्विले, क्वींसलैंड के आसपास के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में छह बाड़े बनाए, जिनमें कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था की गई।
इसके बाद सूर्यास्त से पहले उन्होंने इन बाड़ों में केन टोड रख दिए। कृत्रिम प्रकाश (एलन) से निशाचर कीट पतंगें इसकी ओर आकर्षित हुए, जिनकी केन टोड द्वारा रात भर दावत उड़ाई गई। टोड के पेट की सामग्री को मापने के लिए इनके पेट को विच्छेदित किया गया।
शोधकर्ताओं ने प्रकाश की मात्रा को परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित किया था, साथ ही बारिश, हवा की गति और तापमान के प्रभावों को भी नियंत्रित किया था, क्योंकि ये सभी भोजन के स्रोतों की उपलब्धता पर भी प्रभाव डालते हैं। उन्होंने पाया कि जब रोशनी को चालू किया जाता था, तो कीड़ों के उड़ने के साथ-साथ मेंढक के शिकार करने का प्रतिशत काफी बढ़ जाता था।
लेकिन चांद के अधिक चमकीले होने पर मेंढक ने उड़ने वाले कीड़ों का शिकार नहीं किया। वही कीड़ों की खपत उन क्षेत्रों में बढ़ गई जो शहरी क्षेत्रों के करीब थे, जो पहले से ही पर्याप्त कृत्रिम प्रकाश (एलन) से पीड़ित थे।
जीवविज्ञानी हिरोटका कोमाइन ने कहा यह हमें बताता है कि इस आक्रामक प्रजाति के विकास को किस तरह नियंत्रित किया जा सकता है। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण जीवों को भी बचाया जा सकता है।
ग्रामीण इलाकों में कृत्रिम प्रकाश का अधिक सावधानी से प्रबंधन किया जाना चाहिए। राजमार्गों पर बिजली के खम्भे लगाने या बड़ी इमारतों में लगे कृत्रिम प्रकाश, उपलब्ध खाद्य संसाधनों को कम कर सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रकाश की व्यवस्था चन्द्रमा के चक्र पर विचार करके किया जाना चाहिए, जैसे कि अंधेरे चंद्र चरणों के दौरान प्रकाश का उपयोग कम करना चाहिए।