आदित्य सिंह चौहान ने गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) द्वारा दायर रिपोर्ट पर अपनी आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि प्रदूषणकारी उद्योगों को जारी रखने के लिए बोर्ड, जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) की शर्त में संशोधन की वकालत कर रहा है। हलफनामे में उन्होंने कहा है कि सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) के माध्यम से नदी में निर्वहन के लिए जेडएलडी की स्थिति में संशोधन से साबरमती नदी को भारी नुकसान होगा, जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं होगी।
उनका तर्क है कि जीरो लिक्विड डिस्चार्ज जैसी उन्नत तकनीक को छोड़ने और पुरानी प्रणाली पर लौटने का कोई उचित आधार नहीं है, जिसकी निगरानी करना और अनुपालन सुनिश्चित करना कठिन है। उनके मुताबिक यह तकनीकें पुराना हो चुकी हैं, प्रदूषण नियंत्रण में उतनी प्रभावी नहीं हैं।
गौरतलब है कि यह मुद्दा बेहरामपुरा और दानिलिम्दा में 672 कपड़ा प्रसंस्करण इकाइयों से जुड़ा है, जो अपने कारखानों से निकलने वाले दूषित जल से साबरमती को मैला कर रहे हैं। आवेदक का कहना है कि इस क्षेत्र में 672 उद्योग हैं, जिनमें से सभी अहमदाबाद हैंड स्क्रीन प्रिंटिंग एसोसिएशन (एएचएसपीए) का हिस्सा हैं और एक सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्र (सीईटीपी) का उपयोग करते हैं।
हालांकि जीपीसीबी रिपोर्ट इनमें से केवल 55 उद्योगों को संबोधित करती है। इसके अतिरिक्त, जीपीसीबी ने कहा कि क्षेत्र में केवल 55 जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) यूनिट हैं, लेकिन आवेदक का मानना है कि उनकी जानकारी के अनुसार क्षेत्र में 200 से अधिक जेडएलडी इकाइयां मौजूद हैं।
नियमों को ताक पर रख साबरमती को दूषित कर रहे उद्योग
हलफनामे के अनुसार क्षेत्र में जेडएलडी अनुमति वाले उद्योगों की संख्या की पुष्टि जुलाई 2023 में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी किए गए नोटिस की जांच करके की जा सकती है। यह नोटिस जल निकासी पाइपलाइन कनेक्शन नहीं है इसकी पुष्टि करने के लिए जारी किए गए थे।
जहां तक आवेदक को जानकारी है, किसी भी इकाई ने इस नोटिस के जवाब में अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) से प्राप्त प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया है, जो इस बात की पुष्टि करता हो कि उसके यहां जल निकासी के लिए पाइपलाइन कनेक्शन नहीं है। ये उद्योग लगातार औद्योगिक अपशिष्टों को छोड़ रहे हैं, जिससे उनके जेडएलडी परमिट में दी शर्तों का उल्लंघन हो रहा है।
आवेदक का कहना है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जेडएलडी संशोधनों पर जोर दे रहा है, जो इन नियमों का पालन न करने वाले उद्योगों को चालू रखने की अनुमति देने का एक और बहाना है।
जेडएलडी उल्लंघन के मुद्दे पर आवेदक ने सवाल किया है कि जीपीसीबी अधिकारी इस तरह की गतिविधियों को जारी रखने के बारे में कैसे सोच सकते हैं, जबकि संयुक्त समिति की रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जिन उद्योगों को जेडएलडी की अनुमति दी गई है वो सभी उद्योग इसके नियमों और शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं।
इतना ही नहीं यह उद्योग दूषित और आंशिक रूप से साफ किए गए अपशिष्ट का लगातार निर्वहन भी कर रहे हैं, जिससे साबरमती में भारी प्रदूषण हो रहा है। साथ ही वो जेडएलडी की शर्तों में संशोधन करके केवल 30 एमएलडी क्षमता के सीईटीपी के माध्यम से नदी में उद्योगों से निकले अपशिष्ट को छोड़ने का प्रस्ताव कैसे कर सकते हैं।