सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने 29 जुलाई, 2020 को आईआईटी-बॉम्बे को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन करने पर संस्थान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। मामला दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए स्मॉग टावरों को लगाने का है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि आईआईटी-बॉम्बे अब अपने समझौते से पीछे हट रही है। यही वजह है कि वो स्मॉग टावर स्थापित करने के लिए आईआईटी बॉम्बे के साथ कोई भी समझौता नहीं कर पा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे आदेश का उल्लंघन बताया है और कहा है कि संस्थान जानबूझकर काम को धीमा कर रहा है जिससे समय बर्बाद हो रहा है। साथ ही कोर्ट ने आईआईटी-बॉम्बे को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ और इससे जुड़े लोगों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदेश जारी होने के बाद उस पर अमल करना होगा और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो आदेश का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने यह भी कहा है कि आईआईटी-बॉम्बे जैसे संस्थान से इस तरह के रवैये की उम्मीद नहीं की जाती। खासकर मामला जब जनहित से जोड़ा हो। कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश का अनुपालन किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई, 2020 को की जाएगी।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण (जीपीसीबी) बोर्ड की संयुक्त जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी में जमा कर दी है। इसमें जानकारी दी गई है कि सीपीसीबी और जीपीसीबी के अधिकारियों ने वापी में गुजरात औद्योगिक विकास निगम की चार पेपर मिलों का निरीक्षण किया था और वहां किस तरह से कचरे का निपटारा किया जाता है, इस बात की जानकरी ली थी। इसके साथ ही उन्होंने 13-15 नवंबर, 2019 के बीच उस क्षेत्र के आसपास भूजल की भी निगरानी और जांच की थी। इस जांच में शिकायतकर्ता यूनुस दाउद शेख ने भी 13 नवंबर, 2019 को रात के समय जीआईडीसी, वापी और आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण भी किया था।
गौरतलब है कि कोर्ट को जानकारी दी गई थी कि वापी में रात के समय पेपर मिलों से निकले कचरा और स्क्रैप को जलाया जा रहा था, जिससे वायु प्रदूषित हो रही थी। इसके साथ ही वहां का भूजल भी केमिकल के कारण दूषित हो रहा है। इस कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रात के समय इसकी जांच के आदेश दिए थे।
इन पेपर मिलों को पेपर बोर्ड/ क्राफ्ट पेपर जैसे उत्पादों के लिए डिंकिंग प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। इनसे बहुत ही कम मात्रा में प्लास्टिक वेस्ट और ईटीपी स्लज उत्पन्न होता है। इसके निपटान के लिए पहले ही सीमेंट मिलों के साथ समझौता किया हुआ था। यह सीमेंट मिलें ईटीपी स्लज को वापस काम लायक सामान में बदल देती हैं। रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि जांच के समय इन यूनिट्स के परिसर में कोई ईटीपी स्लज जमा नहीं पाया गया।
हालांकि रिपोर्ट के अनुसार वहां रात के समय तीन अलग-अलग स्थानों पर बड़ी मात्रा में कचरे को अंधाधुंध जलते हुए देखा गया था| टीम ने जब अगली सुबह उस क्षेत्र का दौरा किया तो पता चला कि उस जगह पर विभिन्न प्रकार का औद्योगिक अपशिष्ट जैसे लाइनर, ड्रम, प्लास्टिक बैग, केबल आदि बिखरे हुए थे। इसके साथ ही वहां वाणिज्यिक क्षेत्र से निकले कचरे को भी उस क्षेत्र में फेंक दिया गया था। जांच टीम ने यह भी जानकारी दी है कि यह क्षेत्र आबादी से घिरा हुआ है।
29 जून, 2020 के एनजीटी के आदेश पर समिति ने अपनी कार्रवाई रिपोर्ट कोर्ट में जमा करा दी है। मामला 10 अप्रैल, 2020 को मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रिलायंस के मेसर्स सासन अल्ट्रा थर्मल पावर प्लांट द्वारा निर्मित फ्लाई ऐश तालाब के ढहने से जुड़ा है। रिपोर्ट को 28 जुलाई, 2020 में एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है।
गौरतलब है कि इस घटना के कारण हर्रहा गांव में जहरीली राख युक्त पानी भर गया था। इस हादसे में आसपास के गांवों के 6 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के कारण न केवल मानव और पशुओं के जीवन को नुकसान पहुंचा है, बल्कि पर्यावरण पर भी गंभीर असर पड़ा है। इससे आसपास की वनस्पति, जैव विविधता और उपजाऊ कृषि भूमि पर भी असर पड़ा है। साथ ही आसपास के नालों का जल भी दूषित हो गया है।
मेसर्स प्लेटिनम एएसी ब्लॉकस जून 2017 से मई 2019 तक अनधिकृत तरीके से ऑटोक्लेव्ड एरेटेड कंक्रीट ब्लॉक का निर्माण कर रहा था। यह जानकारी प्रदूषण नियंत्रण समिति, दमन दीव और दादरा नगर हवेली द्वारा दायर हलफनामे में सामने आई है। यह यूनिट दादरा और नगर हवेली के खेरड़ी गांव में स्थित है।
प्लेटिनम एएसी निर्माण इकाई ने पूरे परिसर में फ्लाई ऐश से जुड़े कच्चे माल को डंप कर रखा था जिसके कारण पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच रहा था। साथ ही इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने और लोगों को सांस और अन्य गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए इस यूनिट को बंद करना जरूरी है।
रिपोर्ट के अनुसार यह यूनिट जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के प्रावधानों का उल्लंघन करके स्थापित की गई है। यह उद्योग रेड श्रेणी में आता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह प्लांट बड़ी मात्रा में फ्लाई ऐश का उपयोग कच्चे माल के रूप में करता है। इस वजह से इसे थर्मल पावर प्लांट या सीमेंट प्लांट के आसपास स्थापित किया जाना चाहिए| इस वजह से सड़क यातायात पर भी दबाव घटेगा।
यह यूनिट रेड कैटिगरी में नहीं आती जैसा कि इसने घोषित किया था। साथ ही इसने झूठी जानकारी भी दी थी कि यह ऑटोक्लेव्ड एरेटेड कंक्रीट ब्लॉक का निर्माण जून 2019 से कर रही है पर वास्तविकता में वो इन ब्लॉक्स का निर्माण जून 2017 से कर रही है।