सर्वोच्च न्यायालय ने 20 अक्टूबर 2023 को तमिलनाडु में रीइन्फोर्स्ड पेपर कप के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। गौरतलब है कि एक जनवरी 2019 से तमिलनाडु में इन रीइन्फोर्स्ड पेपर कप के उपयोग पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रतिबंध के वैज्ञानिक आधार हैं और लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाना राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायलय का कहना है कि इस मामले में हस्तक्षेप करने और प्रतिबंध के पीछे के कारणों पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं है।
हालांकि कोर्ट ने तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) को नॉन वोवन (गैर-बुने) बैग्स की स्थिति की समीक्षा करने का निर्देश दिया है, जिस पर उच्च न्यायालय ने भी रोक लगा दी थी। कोर्ट के निर्देशानुसार इस समीक्षा में 2016 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम में किए गए परिवर्तनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इन संशोधित नियमों में 60 ग्राम प्रति वर्ग मीटर (जीएसएम) से अधिक वजन वाले गैर-बुने बैग के उत्पादन और उपयोग को अनुमति दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में विशेषज्ञ समिति की एक रिपोर्ट पर विचार किया है, जिसमें कहा गया था कि कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) कोटिंग के कारण रीइन्फोर्स्ड पेपर कप को रीसायकल करना बेहद कठिन होता है। यह रिपोर्ट सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीईटी) द्वारा किए परीक्षणों पर आधारित है। देखा जाए तो पेपर कप अक्सर एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिए जाते हैं, जिससे उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है।
अदालत का कहना है कि यह प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से नहीं टूटता यानी गैर-बायोडिग्रेडेबल होता है। उनके पुनर्चक्रण में भारी कठिनाई होती है क्योंकि इसके लिए अन्य चुनौतियों के साथ-साथ उचित संग्रह और छंटाई की आवश्यकता होती है।
मामले में अपीलकर्ता, तमिलनाडु और पुडुचेरी पेपर कप मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले से नाखुश थे। अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने उनकी कानूनी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अपनी याचिका में उन्होंने उस सरकारी आदेश को चुनौती दी थी जिसमें सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण, भंडारण, आपूर्ति, परिवहन, बिक्री, वितरण और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मवेशियों की समस्या पर कार्रवाई न करने पर गुजरात उच्च न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों को चेताया
25 अक्टूबर 2023 को गुजरात राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव ने उच्च न्यायालय को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में मवेशियों और यातायात से सम्बंधित समस्याओं से जुड़े मुद्दों को शामिल किया गया है।
इस रिपोर्ट पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री और न्यायमूर्ति हेमंत एम प्रच्छक की पीठ ने कहा है कि मवेशियों की समस्या को हल करने के लिए उठाए कदमों के बारे में जो स्थानीय अधिकारियों ने हलफनामे में बातें कहीं हैं, जमीनी हकीकत उनसे काफी अलग है।
ऐसे में कोर्ट ने उचित निर्णय लेने के लिए मामले पर 26 अक्टूबर, 2023 को आगे विचार करने की बात कही है।