
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में उत्तर प्रदेश के 443 उद्योगों की पोल खोली है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर की गई जांच में पाया गया कि 1,370 में से 858 उद्योग चालू थे, जिनमें से 443 नियमों का पालन नहीं कर रहे थे।
रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजी गई है।
गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पेश की है।
यह रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 27 जुलाई 2022 को दिए आदेश पर तैयार की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक अदालत के आदेश पर सीपीसीबी ने करीब 50 टीमों का गठन किया गया। इन टीमों को उत्तर प्रदेश के 62 जिलों में बेहद प्रदूषण करने वाले 1,370 उद्योगों (जीपीआई), 10 जिलों के 36 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और 5 जिलों के आठ सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (सीईटीपी)/कॉमन क्रोम रिकवरी यूनिट (सीसीआरयू) का औचक निरीक्षण करने की जिम्मेवारी सौंपी गई।
यह जांच 26 अगस्त 2022 से शुरू की गई। रिपोर्ट दाखिल करने तक कुल 1,414 जांचें पूरी की गई। जांच के दौरान पाया गया कि 1,370 उद्योगों में से 858 चालू हालत में थे, जबकि 512 बंद पाए गए। इन चालू इकाइयों में से 415 नियमों का पालन कर रहे थे। वहीं 443 इकाइयां ऐसी थी जो नियमों पर खरी नहीं थी।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि 512 बंद उद्योगों में से 8 के प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र चालू स्थिति में मिले। इनमें से 4 नियमों का पालन कर रहे थे, जबकि बाकी चार नियमों का पालन नहीं कर रहे थे।
इस जांच में शामिल सभी 1,370 उद्योगों, 36 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और आठ कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेज दी गई है।
पवूर उल्या कुद्रू पर पर्यावरण संकट: खनन से कमजोर हो रहा नदी तट, सिकुड़ रहा द्वीप
रेत खनन ने नेत्रावती नदी के तल को अस्थिर कर दिया है, इससे पवूर उल्या कुद्रू द्वीप का नदी तट और किनारे कमजोर हो गए हैं, जिससे कटाव का खबर बढ़ गया है। यह जानकारी चेन्नई स्थित नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट द्वारा 17 सितंबर 2025 को एनजीटी में दाखिल रिपोर्ट में दी गई है।
पवूर उल्या कुद्रू, मंगलोर के पास पवूर और अद्यार के बीच नेत्रावती नदी में स्थित एक छोटा नदी द्वीप है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ दशकों में यह द्वीप काफी सिकुड़ चुका है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
इस द्वीप पर 35 से 52 परिवार रहते हैं, जो मछली पकड़ने, कृषि और मौसमी फलों की खेती पर निर्भर हैं। रिपोर्ट के अनुसार रेत खनन और नदी के ऊपरी हिस्से से तलछट की कमी ने द्वीप के कई हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। विशेष रूप से, रेत निकालने से नदी का तल अस्थिर हो गया है और द्वीप के किनारे तेजी से कट रहे हैं।
साथ ही हाल ही में नदी के आसपास किए गए निर्माण कार्यों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
नदी किनारे हो रहे विकास से प्राकृतिक तलछट के जमा होने की प्रक्रिया बाधित होती है और नदी के प्रवाह में बदलाव आता है। पक्के निर्माण और कठोर संरचनाएं पानी की गति बढ़ा देती हैं, जिससे किनारों में कटाव हो सकता है। यह संरचनाएं द्वीप की स्थिरता के लिए जरूरी प्राकृतिक बदलाव को रोक देती हैं। साथ ही, नदी के किनारे की वनस्पति हटाने से मिट्टी की मजबूती घट जाती है, जिससे कटाव का खतरा और बढ़ जाता है।
सामूहिक रूप से, ये इंसानी गतिविधियां नदी में तलछट की आपूर्ति को कम कर देती हैं, भूमि क्षरण की गति बढ़ाती हैं, पर्यावरणीय आवासों को नष्ट करती हैं और बाढ़ व चरम जलवायु स्थितियों के प्रति संवेदनशीलता को भी बढ़ा देती हैं, जिससे पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय लोगों की जीविकाएं खतरे में पड़ जाती हैं।
शोधकर्ताओं और स्थानीय पर्यवेक्षकों का कहना है कि "भारी मशीनरी, अर्थ मूवर्स और मोटर चालित नावों के अंधाधुंध उपयोग से नदी के तल में 15 से 25 फीट की गहरी खाइयां बन गई हैं। यह किनारों को काट सकती हैं, और द्वीप की स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती हैं। साथ ही यह नदी के प्राकृतिक प्रवाह को भी बदल सकती हैं।“
गौरतलब है कि अक्टूबर 2024 में मंगलोर उप-विभाग के सहायक आयुक्त ने एक आदेश जारी कर पवूर उल्या द्वीप के 2 किलोमीटर के दायरे में सभी तरह के रेत खनन पर रोक लगा दी थी। इस आदेश में रेत ढोने वाली नावों और मशीनों की आवाजाही, नदी किनारे रेत का भंडारण और वितरण भी प्रतिबंधित कर दिया गया, सिवाय उन नावों के जो केवल द्वीप तक आने-जाने के लिए इस्तेमाल होती हैं।
रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि अगर तत्काल वैज्ञानिक और पारिस्थितिक सुधार नहीं किया गया, तो द्वीप का आकार आधा हो सकता है, आवासीय क्षेत्र और जीवन संकट में आ जाएगा, और जीविका प्रभावित होगी। इसके लिए रिपोर्ट में तटीय वनस्पति की सुरक्षा, क्षेत्र को “तटीय संवेदनशील क्षेत्र” घोषित करने, नदी किनारे निर्माण पर रोक लगाने, अवैध रेत खनन को रोकने और समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है।