
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर भारत में भारी बारिश और बाढ़ से हुई तबाही पर चिंता जताई है।
कोर्ट ने पेड़ों की अवैध कटाई पर सवाल उठाते हुए केंद्र और संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किया है।
कोर्ट ने कहा कि बाढ़ के दौरान बहते लकड़ी के लट्ठे अवैध कटाई का संकेत देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर 2025 को उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बारिश और बाढ़ से हुई भारी तबाही पर गहरी चिंता जताई है।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि बाढ़ के दौरान बड़ी संख्या में लकड़ी के लट्ठे पानी के साथ बहते देखे गए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि पहली नजर में लगता है कि पहाड़ी इलाकों में अवैध रूप से पेड़ काटे गए हैं।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, पर्यावरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर की सरकारों को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
बायल खदान विवाद: एनजीटी ने स्वास्थ्य और पर्यावरण नियमों के उल्लंघन पर मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 8 सितंबर 2025 को हरियाणा के बायल गांव में खदान के आसपास रहने वाले ग्रामीणों और श्रमिकों के स्वास्थ्य पर खदान से जुड़ी गतिविधियों के पड़ रहे प्रभाव के बारे में संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है।
यह मामला महेंद्रगढ़ जिले की नागल चौधरी तहसील का है।
इस मामले में अदालत ने हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण, वन और वन्यजीव विभाग), खनन और भूविज्ञान निदेशक, महेंद्रगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट, और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया कि वे खदान और आसपास के क्षेत्र में स्वास्थ्य प्रभाव का विस्तृत मूल्यांकन पेश करें।
एनजीटी ने बायल क्वार्ट्ज और फेल्डस्पार खदान द्वारा सीईआर और सीएसआर फंड के रूप में दान दी गई राशि के उपयोग के संबंध में भी जवाब मांगा है। इस मामले में अंतिम सुनवाई 14 अक्टूबर 2025 को होगी।
शिकायतकर्ता का आरोप है कि बायल क्वार्ट्ज और फेल्डस्पार माइंस अवैध रूप से खनन गतिविधियां चला रही है। खदान साइट और आवासीय क्षेत्र के बीच महज 50 मीटर की दूरी है, जबकि पास में 200 मीटर के भीतर एक स्कूल और अस्पताल भी है। भारी ब्लास्टिंग से आसपास की इमारतों को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है और हवा में बढ़ता प्रदूषण स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है।
यह भी दावा है कि परियोजना संचालक पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की शर्तों का भी उल्लंघन कर रहे हैं, जैसे वृक्षारोपण, खदान की गहराई और सीआएस गतिविधियां। उन्होंने तीन स्टोन क्रशर लगाए हैं, जिनमें से एक बिना कानूनी अनुमति और लाइसेंस के चल रहा है।
यह खनन गतिविधियां बायल गांव के खसरा नंबर 198 और 202 में की जा रही हैं, जो अरावली वन क्षेत्र का हिस्सा भी हैं।