
पंजाब में बाढ़ का कारण केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि गंभीर कुप्रबंधन भी है
दो दशक के दौरान आई बाढ़ के कारणों के गहन अध्ययन के बाद कई अहम कारण सामने आए
पंजाब ने 2024 में फ्लड प्रीपेयरड गाइडबुक प्रकाशित की थी, जिसमें बाढ़ के कई कारणों की पहचान की गई थी
पंजाब का एक बड़ा हिस्सा जलोड़ यानी बाढ़ के मैदानों में बसा है
पंजाब में बाढ़ के लिए हिमालयी राज्यों से आ रही नदियों और पंजाब में हो रही भारी बारिश को दोषी माना जा रहा है, लेकिन पंजाब की इस आपदा के लिए और भी कई कारण हैं, जो प्राकृतिक कतई नहीं हैं। हिमाचल और जम्मू में तबाही का कारण बेशक अचानक आई बाढ़ (फ्लैश फ्लड) है, लेकिन इन राज्यों की नदियां उफान में आने के तीन से चार दिन बाद पंजाब पहुंची, बावजूद इसके पंजाब निसहाय बन कर देख रहा है।
पंजाब की बाढ़ का मुख्य कारण भाखड़ा व रंजीत सागर बाढ़ से पानी छोड़ने को माना जा रहा है। भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) के प्रवक्ता तेजवीर सिंह कहते हैं, “भाखड़ा व रंजीत सागर बांध का पानी समय से पहले छोड़ना चाहिए था। उस समय राजस्थान भी अपने हिस्से के पानी की मांग कर रहा था, क्योंकि उनकी नदी नाले सूखे पड़े थे। वहां लोगों ने धरना व प्रदर्शन किया, लेकिन उन्हें पानी नहीं दिया गया। इसके अलावा इन बांधों को सितंबर के बाद ही रिचार्ज करते थे, लेकिन इस बार पहले रिचार्ज क्यों किया गया?
दो दशक में आई बाढ़ के ये रहे कारण
राज्य में 1990 से 2010 तक के दो दशकों के दौरान आई बाढ़ों का अध्ययन करने के बाद कहा गया कि पंजाब में बाढ़ मुख्य रूप से जुलाई से सितंबर के बीच मूसलाधार बारिश के कारण आती है, लेकिन इसकी प्रमुख वजहों में भाखड़ा बांध से पानी छोड़ना, नदियों व नहरों की खराब प्रबंधन व्यवस्था और तटबंधों का कमजोर होना भी शामिल है।
यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ रिसर्च एंड एनालिटिकल रिव्यूज में “टेम्पोरल एनालिसिस ऑफ फ्लड इन पंजाब (1990-2010)” शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इसमें कहा गया कि पंजाब में बाढ़ का संकट केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि गंभीर कुप्रबंधन से भी जुड़ा है।
इस स्टडी के मुताबिक नदियों और नहरों की समय पर सफाई न होने से जल निकासी बाधित होती है और छोटी धाराएं किनारे तोड़कर खेतों व गांवों को डुबो देती हैं। तटबंधों की मरम्मत की अनदेखी से कमजोर बांध बारिश में टूट जाते हैं और तबाही बढ़ जाती है।
स्टडी में 2005 की बाढ़ का उदाहरण देते हुए कहा गया कि इस साल आई बाढ़ में रूपनगर जिले के किरतपुर साहिब ब्लॉक का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया, क्योंकि लोतान रिवूलट पर बने बांध में दरार आ गई थी।
2007 में आनंदपुर साहिब क्षेत्र में गंगा रिवूलट पर बने एक रेलवे पुल का हिस्सा ध्वस्त हो गया। इसके चलते नहर का तटबंध टूट गया और करीब 12 गांव डूब गए। 2010 की बाढ़ में भी रूपनगर, पटियाला, संगरूर, लुधियाना, मोगा में तटबंध टूटने और कमजोर बांधों के कारण भारी नुकसान हुआ।
स्टडी के मुताबिक कई बार किसान नहरों में अवैध रिलीफ कट लगाकर पानी मोड़ते हैं, जिससे आसपास की फसलें और घर डूब जाते हैं। 1988 और 2010 में भाखड़ा डैम से अचानक पानी छोड़ा जाना भी विनाशकारी साबित हुआ। इसके साथ ही घग्गर नदी क्षेत्र की सिंचाई परियोजनाओं का डिजाइन सही नहीं है, जिससे अतिरिक्त पानी का निकास बाधित होता है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
2023 की बाढ़ के बाद पहचाने कारण
साल 2023 की बाढ़ के बाद पंजाब के जल संसाधन विभाग ने बाढ़ की तैयारियों से संबंधित एक डॉक्यूमेंट फ्लड प्रीपेयर्ड बुक 2024 प्रकाशित की। इस किताब में बाढ़ के कई मानव निर्मित कारणों का खुलासा किए गए। इसमें कहा गया है कि प्राकृतिक जलनिकासी मार्गों में कई तरह की रुकावटें खासकर नालों के प्रवाह को बाधित करने वाले ढांचों के कारण बाढ़ के हालात बनते हैं। इस सरकारी डॉक्यूमेंट में साल 2023 में आई बाढ़ का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि सतलुज नदी के पास स्थित एक गांव के लिए रेलवे पुल बड़ी मुसीबत बन गया। पुल के नीचे पानी निकासी के लिए जलमार्ग बनाया गया, लेकिन इस जलमार्ग की चौड़ाई काफी ज्यादा थी, ऐसे में 8–9 महीने जब नदी में पानी कम होता है तो वहां गाद जमने लगी। इसके चलते नदी के प्रवाह की रफ्तार घट गई और जलमार्ग संकरा हो गया। जब 2023 में भारी बारिश हुई, तो जमा हुई गाद ने जल प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया और इलाके में बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो गई।
इस डॉक्यूमेंट में एक और उदाहरण सड़क पुल का दिया गया है। यह पुल ब्यास नदी पर स्थित है। पुल का जलमार्ग गाद जमने के कारण आवश्यकता से कम चौड़ा पाया गया। इसके चलते बाढ़ के समय जब पानी आया तो पुल की सीमित क्षमता इतने ज्यादा पानी के प्रवाह को थामने में असमर्थ रही। इससे पानी के बहाव में अवरोध पैदा हुआ और वर्ष 2023 में ब्यास नदी के दाहिने किनारे के बांध (बंध) टूट गए।
इस डॉक्यूमेंट में नए ऊंचे राजमार्गों का निर्माण पर भी सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि एक्सप्रेसवे अथवा ऊंचे राजमार्गों के निर्माण से पहले प्राकृतिक शीट फ्लो (पानी का सतही प्रवाह) का समुचित अध्ययन नहीं किया जाता और बरसात के मौसम में वर्षाजल के निकास हेतु आवश्यक *कॉजवे* (जल निकासी मार्ग) का निर्माण भी नहीं होता। इसका परिणाम यह होता है कि वर्षा का सतही प्रवाह बाधित हो जाता है और आसपास के क्षेत्रों में जलभराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
अतिक्रमण व पाइप आउटलेट
साथ ही अतिक्रमण और शहरीकरण को भी दोषी मानते हुए कहा गया है कि भारी वर्षा के समय नदी तंत्र के किनारों पर अनियंत्रित निर्माण और अतिक्रमण के कारण बहते पानी के निकलने का स्वाभाविक मार्ग बाधित हो जाता है। उदाहरण स्वरूप, जिला एस.ए.एस. नगर के डेराबस्सी ब्लॉक में इस तरह के अनियोजित विकास के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई। इसके अतिरिक्त, नदी के तल पर यूकेलिप्टस के पेड़ों का बड़े पैमाने पर रोपण भी नालों के जल प्रवाह को बाधित करता है।
इसके अलावा पाइप आउटलेट्स पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि किसानों द्वारा अस्थायी रूप से लगाए गए पाइप आउटलेट, चाहे वह सिंचाई के लिए हों या बारिश के समय खेतों से अतिरिक्त पानी निकालने के लिए तटबंध को कमजोर बना देते हैं। परिणामस्वरूप, बाढ़ के समय इन कमजोर स्थानों पर अक्सर तटबंध टूट जाता है। इसके अलावा बीएंडआर और स्थानीय किसान तटबंधों के अंदर जाने के लिए अस्थायी रैम्प बना लेते हैं। यह तटबंध की मजबूती और स्थायित्व को प्रभावित करता है।
बाढ़ के मैदानों पर पंजाब का ज्यादातर इलाका
पंजाब राज्य आपदा प्रबंधन योजना के मुताबकि पंजाब का ज़्यादातर इलाका नदियों से बनी जलोढ़ (बाढ़ के मैदान) जमीन पर बसा है। ये पुराने बाढ़ के मैदान हैं, जो अब नदियों के मौजूदा तल से ऊँचे हिस्सों पर दिखाई देते हैं। इनके बीच में कई जगह रेत के टीले और छोटी-छोटी चट्टानें बनी हुई हैं।
इस मिट्टी की बनावट अलग-अलग होती है। कुछ जगह यह ढीली है, कहीं कार्बन जमा है, तो कहीं लवणीयता (नमकपन) और क्षारीयता की समस्या है। पंजाब के कुल क्षेत्र का लगभग 77 प्रतिशत हिस्सा ऐसे ही मैदानों से बना है।
योजना के डॉक्यूमेंट के मुताबिक राज्य में तीन बड़े मैदान पहचाने गए। इनमें उप्पर-बारी दोआब में अमृतसर, तरन तारन और गुरदासपुर जिलों का बड़ा हिस्सा, बिस्ट दोआब ब्यास और सतलुज नदियों के बीच का क्षेत्र।
मालवा मैदान में सतलुज नदी के दक्षिण का इलाका। और रावी, ब्यास, सतलुज और घग्गर नदियों के किनारे बने बाढ़ के मैदान भी हैं, जो राज्य के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से में फैले हैं।
इनकी मिट्टी नई और परतदार होती है, क्योंकि नदियां लगातार मिट्टी काटती और जमाती रहती हैं। इसी वजह से यहां की मिट्टी पूरी तरह स्थायी नहीं बन पाती।
इसके अलावा पैलियो चैनल दरअसल पुरानी नदी धाराओं के अवशेष माने जाते हैं। पहले ये धाराएं सक्रिय थीं, लेकिन समय के साथ रावी, ब्यास, सतलुज और घग्गर नदियों तथा उनकी सहायक नदियों के रास्ते बार-बार बदलने के कारण ये पुरानी धाराएं बंद हो गईं और उनमें गाद भर गई। आज ये क्षेत्र जमीन पर अपेक्षाकृत निचले हिस्सों में पाए जाते हैं।