पंजाब की बाढ़: पानी में डूबे गांव, पर जज्बे और मोहब्बत ने थामा हाथ

अमृतसर व फिरोजपुर में बाढ़ की वजह से गांव के गांव डूबे हुए हैं, लेकिन लोग अपने दुख से ज्यादा पड़ोसियों के दुख को बड़ा मान रहे हैं
पंजाब में बाढ़ से अभी तक 1698 गांव प्रभावित हुए हैं। फोटो: मनदीप पूनिया
पंजाब में बाढ़ से अभी तक 1698 गांव प्रभावित हुए हैं। फोटो: मनदीप पूनिया
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पंजाब के हरे खेतों पर मटियल पानी की चादर चढ़ी हुई है. सतलुज, ब्यास और रावी नदी ने पंजाब के खेतों को अपने अंदर समा लिया है। पंजाब सरकार के मुताबिक, इन नदियों के कारण आई बाढ़ से अभी तक 1698 गाँव प्रभावित हुए हैं और 39 लोगों की मौत हो चुकी है।

हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी मानसूनी बारिश ने रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में पानी का सैलाब ला दिया। परिणामस्वरूप, रंजीत सागर, भाखड़ा और पोंग बांधों से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया, जिसने पंजाब के मैदानों को जलमग्न कर दिया। इन नदियों में आए उफान ने पंजाब के गुरदासपुर, अमृतसर, पठानकोट, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, कपूरथला और अन्य जिलों में तबाही मचाई।

रावी नदी पर बना रंजीत सागर बांध अगस्त के अंत तक अपनी अधिकतम क्षमता 527 मीटर के करीब पहुंच गया था। 26-27 अगस्त को, बांध से 2 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया। यह प्रचंड जलप्रवाह माधोपुर बैराज तक पहुंचा, जहां पुराने ढांचे और रखरखाव की कमी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया।

बैराज के गेट जाम हो गए और कई टूट गए, जिससे पानी ने गुरदासपुर, पठानकोट और अमृतसर के गाँवों को डुबो दिया। रावी नदी ने अनेकों जगहों पर धूसी बांधों (नदी से करीब 2 किलोमीटर दूर के तटबंध, जो आबादी और नदी को अलग करते हैं) को तोड़ दिया और पंजाब के सरहदी इलाकों में बाढ़ आ गई। सरहद पार पाकिस्तान के इलाके में भी रावी के पानी की मार रही, जिससे करतारपुर कॉरिडोर और लाहौर शहर में पानी घुस गया।

पंजाब के खेतों में फैली इस पानी की चादर को चीरते हुए 47 वर्षीय किसान गुरभेज सिंह अपने ट्रैक्टर पर हमें अमृतसर जिले के रामदास कस्बे से अपने गांव जट्टा ले गए। रामदास कस्बे के मुख्य चौक पर भी ट्रैक्टर के आधे पहिए डूबे रहे और उनके गांव को जाने वाली सड़क पर भी। उन्होंने बताया, “अमृतसर की अजनाला तहसील के लगभग सभी गांव में पानी आया है, कई गांव ऐसे हैं, जिनका संपर्क भी दूसरे गांव-कस्बों से टूटा हुआ है। पीछे डैम (रणजीत सागर बांध) से रावी नदी में छोड़े गए पानी के कारण हमारा ये हाल हुआ है।”

बाढ़ पीड़ितों की मदद को हर हाथ आगे आ रहा है।फोटो: मनदीप पूनिया
बाढ़ पीड़ितों की मदद को हर हाथ आगे आ रहा है।फोटो: मनदीप पूनिया


गुरभेज ने गांव से आगे उस धूसी बंध को दिखाते हुए बताया कि इस बंध को रावी के पानी ने कई जगह से काट रखा था। कटे हुए रास्तों से अभी भी पानी पास लगते माछीवाल, घोनेवाल, सहजादा, जट्टा और पशिया गांव की तरफ बह रहा था। इन गांव के खेत एक विशाल जल सागर में तब्दील हो चुके थे, गांव की आबादी का इलाका इस विशाल जल सागर में टापुओं की तरह लग रहे थे।

वहां अपने खेतों में खड़े माछीवाल के किसान कर्मसिंह ने बताया, “26 तारीख को जब 4 बजे पानी आया तो हमारे गांव के ही हमारे पड़ौसी परमजीत सिंह इस पानी में बह गए। हमने प्रशासन की टीमों को भी फोन किया, लेकिन बात नहीं बनी। दो दिन बाद हमें उसकी लाश ही मिली। सारी गलती प्रशासन की है। उन्होंने पानी आने से सिर्फ आधे घंटे पहले हमें आकर बताया। बताइए, आधे घंटे में कैसे आदमी खुद को बचाए।”

पंजाब के दूरदराज ही नहीं बल्कि हरियाणा राजस्थान से भी लोग बाढ़ पीड़ितों की मदद को पहुंच रहे हैं। फोटो: मनदीप पूनिया
पंजाब के दूरदराज ही नहीं बल्कि हरियाणा राजस्थान से भी लोग बाढ़ पीड़ितों की मदद को पहुंच रहे हैं। फोटो: मनदीप पूनिया



किसान कर्म सिंह को बाढ़ से हुए उसकी 32 एकड़ गन्ने की फसल के नुकसान और घर में आई दरारों से अधिक दुख अपने पड़ौसी की मौत का है। उनके एक दूसरे पड़ौसी महिंदर सिंह की दस बकरियां और घर की चारदीवारी पानी में बह गई है। महिंदर और उनकी पत्नी ने बताया, “हमने जालंधर के साहूकार से तीन लाख रुपए का कर्ज लेकर घर की चारदीवारी करवाई थी और 12 बकरियां खरीदी थीं, लेकिन पानी सब बहा ले गया। सिर्फ 2 बकरियां बची हैं।”

आपबीती सुनाते-सुनाते उनकी आवाज बैठने लगी, लेकिन संभलते हुए कहते हैं, “हमसे ज्यादा नुकसान तो हमारे पड़ौसी तरसेम सिंह का हुआ है। उस बेचारे का तो पूरा घर ही बह गया।”

तरसेम सिंह के पूरे मकान की छत टूट चुकी है, घर का बरामदा और कमरों की आगे वाली दीवारें पानी में बह चुकी हैं। वह और उसका परिवार किसान कर्म सिंह के घर पर रह रहे हैं। माछीवाल गांव के इन सभी रहवासियों का नुकसान हुआ है, लेकिन सभी दूसरे के दुख को बड़ा मानकर आपस में मदद कर रहे हैं।

माछीवाल गांव के साथ लगते गांव शहजादा के दलित मजदूर परिवार गांव की मुख्य सड़क की एक ऊंची पुलिया के किनारे अपने पशुओं के साथ बैठे हैं। अपना कीमती सामान गांव के किसानों की ट्रॉलियाँ मांगकर उनमें रखा हुआ है। वहां मौजूद सुच्चा सिंह ने बताया, “गांव के किसानों ने हमें ये ट्रॉलियां दी हैं, ताकि इनमें हमारा सामान रख सकें। हम गरीबों के 15 घर पूरी तरह डूबे हुए हैं। कइयों की तो छतें भी गिर गईं। इसलिए हम यहाँ बैठे हैं।”

बाढ़ पीड़तों की मदद के लिए लोग आ रहे हैं।  फोटो: मनदीप पूनिया
बाढ़ पीड़तों की मदद के लिए लोग आ रहे हैं। फोटो: मनदीप पूनिया


दलित परिवारों के घरों की छतें कच्ची और दीवारें बिन प्लस्तर की होने के कारण ज्यादा नुकसान में हैं। पानी भरा होने के कारण वे अपनी दिहाड़ी मजदूरी पर भी नहीं जा पा रहे हैं। वहीं ग्रामीण किसानों की धान और गन्ने जैसी फसलें तबाह हो गई हैं और उनके घरों में भी दरारें आई हुई हैं।

अगले गांव पशिया में ट्रेक्टर ट्रालियों की कतारें लगी हैं। ये ट्रेक्टर पंजाब के उन गांव से राहत सामग्री लेकर आए हुए थे, जहां बाढ़ का असर कम है। कई ट्रेक्टर ट्रॉलियां हरियाणा और राजस्थान के गांव से भी आई हुई थीं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आए किसान इंदरप्रीत ने बताया, “हम कुरुक्षेत्र के उमरी गांव से अपने भाइयों की मदद करने आए हैं। जब हमें पंजाब में बाढ़ का पता लगा तो हमने गांव के मंदिर और गुरद्वारे में अनाउंसमेंट करवा हर घर से जरूरत का सामान इकट्ठा करना शुरू कर दिया। पंजाब हमारा बड़ा भाई है। हम उसे आपदा में नहीं देख सकते, इसलिए पूरे गांव के लोगों ने अपने क्षमता से भी अधिक मदद भेजी है।”

ट्रैक्टरों के पीछे जुड़ी इन ट्रालियों में आटा, दाल, बिस्किट, ब्रेड, मछरदानी, बच्चों के डायपर, सेनेट्री पैड से लेकर तिरपाल तक हर सामान मौजूद था।

कुछ ट्रेक्टर पशुओं के चारे वाली ट्रॉलियां भी लेकर आए थे। इस आपदा के बीच, पंजाब की आत्मा, उसकी एकजुटता और उसके छोटे भाई हरियाणा के साथ उसका प्यार सबसे ज्यादा चमक रहा है. अमृतसर के अजनाला में, किसान यूनियन और सिख जथेबंदियां लंगर चला रही हैं। जहां हजारों लोगों को रोजाना खाना मिल रहा है।

इस समय पंजाब के गायकों से लेकर डॉक्टरों तक समाज का हर वर्ग एकजुट दिख रहा है। पंजाबी गायक रेशम अनमोल ने नाव का इंतजाम किया है, ताकि पानी में फंसे लोगों को बचाने और मदद पहुंचाने का काम किया जा सके। गायक दिलजीत दोसांझ ने गुरदासपुर और अमृतसर के 10 गांवों को गोद लिया है, जबकि सतिंदर सरताज, गिप्पी ग्रेवाल भी लगातार राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं।

रावी नदी में आई बाढ़ के कारण गुरदासपुर के 324, अमृतसर के 190 और पठानकोट जिले के 88 गांव प्रभावित हैं। रावी की तरह ही सूबे की सतलुज और ब्यास नदी ने भी लाखों लोगों को प्रभावित किया है।

बाढ़ में घर डूबने के कारण कई परिवार बाहर ऊंची जगहों पर शरण लेने को मजबूर हैं। फोटो: मनदीप पूनिया
बाढ़ में घर डूबने के कारण कई परिवार बाहर ऊंची जगहों पर शरण लेने को मजबूर हैं। फोटो: मनदीप पूनिया



रावी की तरह सतलुज नदी पर स्थित भाखड़ा बांध भी भारी दबाव में था। 25 अगस्त को इसका जलस्तर 1668.57 फीट तक पहुंच गया, जो खतरे के निशान (1680 फीट) से केवल 11 फीट कम था। बांध के गेटों को दो-दो फीट खोलकर पानी छोड़ा गया, जिसने सतलुज के बहाव को 2.6 लाख क्यूसेक तक बढ़ा दिया। 26-27 अगस्त को, बांध से छोड़ा गया पानी नीचे की ओर दौड़ा, जिसने फाजिल्का के 77, फिरोजपुर के 102 और रूपनगर के 44 गाँवों को अपनी चपेट में ले लिया।

ब्यास नदी पर भी पोंग बांध का जलस्तर 25-26 अगस्त को 1393 फीट तक पहुंच गया, जो इसकी क्षमता से अधिक था। बांध से छोड़े गए पानी के कारण कपूरथला के 123, होशियारपुर के 125, जालंधर के 64 और तरनतारण के 70 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। ब्यास का बहाव सामान्य क्षमता (80 हजार क्यूसेक) से कहीं अधिक हो गया, जिसने खेतों और बस्तियों को जलमग्न कर दिया।

सतलुज और ब्यास नदी तरणतारण जिले के हरिके कस्बे के पास जाकर मिलती हैं और एक बड़ा संगम बनाती हैं जिसे हरिके पत्तन कहा जाता है। इस साल दोनों नदियों में आया उफान जब हरिके पत्तन में आकर मिला तो उसने वहां के करीब तीस गांव को प्रभावित किया।

डाउन टू अर्थ जब हरिके पहुंंचा तो अपनी लकड़ी की नाव में सवार होकर किसान सुखविंदर सिंह लेने पहुंच गए। सुखविंदर सिंह का छोटा-सा गांव फतेहगढ़ सभरां अब टापू बन चुका है।

चारों तरफ पानी, ऊपर आसमान में बादल, और नीचे पानी में डूबे खेत. नाविक सुखविंदर कहते हैं, “अब तो हर दो साल बाद बाढ़ आ रही है। इससे पहले 2023 में और 2019 में आई थी। 2023 में भी हमारा गांव डूब गया था और अब भी। मैं ठेके पर जमीन लेकर खेती करता हूं उस साल मेरी ढाई एकड़ फसल डूब गई थी। हमें सिर्फ़ 6800 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा दिया गया। जबकि मेरा खर्च 30 हजार रुपए था।”

नाव में चलते हुए जब सुखविंदर के खेत आए तो उन्होंने वहां नाव रोककर कहा, “अबकी बार सब्जी लगाई थी। जब सब्जी उतारने की बारी आई तो ये पानी आ गया। सब कुछ बर्बाद हो गया। 2023 की बाढ़ मेरे ऊपर 2 लाख रुपये का कर्ज चढ़ाकर गई थी। पिछले साल थोड़ा कर्ज उतारा था, लेकिन इस बार फिर कर्ज सर फोड़ेगा. पता नहीं हमारा क्या ही होगा।”

सुखविंदर के गांव का संपर्क टूटा हुआ है। गाँव के चारों तरफ पानी ही पानी। गांव के सभी घर प्रभावित थे। इस गांव में नाव से राहत सामग्री बांटने आए हुए दविंदर सिंह सेखों ने बताया, “यह बाढ़ जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक मानसून से आई है, लेकिन मानव निर्मित कमियों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। बांधों का कुप्रबंधन, तटबंधों की मरम्मत में देरी, नदियों की अनदेखी और अपर्याप्त ड्रेनेज सिस्टम ने पानी को रास्ता नहीं दिया। पंजाब में 1988 की बाढ़ को लोग याद कर रहे हैं, लेकिन इस बार तबाही का दायरा और गहरा है।”

पंजाब हिमालय का फ्लड प्लेन है। हिमालय से निकलने वाले दरिया जब फैलकर चौड़े हो जाते हैं तो उससे पंजाब की जमीनें सरसब्ज होती हैं और कुछ ईकोसिस्टम को मदद मिलती है।

वहीं, दूसरी तरफ इसकी वजह से बड़े पैमाने पर तबाही भी होती है। पंजाब में इस समय हिमालय की तलहटी में बने बांधों को लेकर चर्चा है। लोग कह रहे हैं कि यह तबाही इन बड़े बांधों के कारण हुई है। पंजाब के चिंतक बांधों के प्रबंधन पर बड़े सवाल उठा रहे हैं और ज्यादातर राजनैतिक धड़े बांधों का प्रबंधन पंजाब को सौंपे जाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि बाढ़ का आना इस समय पंजाब के लिए अच्छा है या बुरा?

मौसमी बाढ़ कई पारिस्थितिक तंत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। पंजाब में, सतलुज, रावी और ब्यास नदियों की बाढ़ मिट्टी के पोषक तत्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है, जिससे खेतों की उर्वरता बढ़ती है। ये पोषक तत्व नदी के मैदानों और डेल्टा क्षेत्रों तक पहुंचते हैं, जो जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

बाढ़ का पानी नदियों की तलछट को साफ करता है, मिट्टी में पोषक तत्वों का वितरण करता है, और कई प्रजातियों को निचले क्षेत्रों तक पहुंचाता है। पंजाब के खेतों में बाढ़ के बाद छोड़ी गई तलछट और पोषक तत्व मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जिससे फसलों की पैदावार बढ़ती है। यही कारण है कि पंजाब की हरियाली और कृषि समृद्धि नदियों के आसपास केंद्रित रही है. इसके अलावा, बाढ़ का पानी भूजल स्तर को बढ़ाने में भी मदद करता है।

किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने बताया, “जिन ट्रैक्टरों से किसान आंदोलन के दौरान सरकार नफरत करती थी, आज वे ट्रेक्टर ही गांव-गांव मदद पहुंचा रहे हैं। किसान इन्हीं ट्रैक्टरों में मिट्टी ढोकर धूसी बांधों को दोबारा बांध रहे हैं। इस पूरी तबाही के बीच सरकार गायब है और उसकी हमदर्दी। प्रधानमंत्री ने बाढ़ को लेकर अभी तक एक ट्वीट भी नहीं किया है।”

लेकिन पंजाब के शहरों की गलियों से लेकर बाढ़ग्रस्त गांवों तक, लोग अपने दुखों को भुलाकर एक-दूसरे के लिए जी रहे हैं। कोई ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में राहत सामग्री भरकर बाढ़ के बीच पहुंच रहा है, तो कोई मिट्टी से लदी ट्रॉलियां लेकर तटबंधों को बचाने की जद्दोजहद में जुटा है। और फिर, कुछ ऐसे भी हैं, जो अपनी खोई हुई दुनिया के बीच से भी मेहमाननवाजी की मिसाल कायम कर रहे हैं. बाढ़ में फंसे लोग, जिनके पास अब शायद ही कुछ बचा हो, चाय की पेशकश कर रहे हैं, पैसे दान कर रहे हैं, और अपने सीमित साधनों से दूसरों की मदद कर रहे हैं।

यह पंजाब है, जहां बाढ़ की तबाही के बीच भी मानवता का सूरज चमक रहा है। यह वह धरती है, जहां दुख की गहराई में भी लोग एक-दूसरे के लिए जी रहे हैं, जहां हानि के बीच भी उदारता का जज़्बा जिंदा है। यह कहानी सिर्फ बाढ़ की नहीं, बल्कि उस अटूट आत्मा की है, जो पंजाब को पंजाब बनाती है।

पंजाब सरकार ने पूरे राज्य को आपदा प्रभावित घोषित कर दिया है. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र से 60,000 करोड़ रुपये के फंड और प्रति एकड़ 50,000 रुपए मुआवजे की मांग की है।

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