
इस बार देश में कई तरह की मौसमी गतिविधियां हुई और जारी हैं, इनमें आंधी-तूफान, बंगाल की खाड़ी से भारी नमी से भरी हवाओं का आवागमन की घटनाएं शामिल हैं। इन घटनाओं के कारण भारत के कई राज्यों में जान-माल का नुकसान हुआ।
मार्च 2025 से 17 अप्रैल 2025 के बीच भारत के 12 राज्यों में बिजली गिरने से 162 लोग मारे गए। पिछले साल मार्च और अप्रैल 2024 के बीच दर्ज की गई 57 मौतों की तुलना में 184 फीसदी की चौंका देने वाली बढ़ोतरी है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट और डाउन टू अर्थ (डीटीई) द्वारा एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स एटलस के आंकड़ों के विश्लेषण के साथ-साथ आपदा प्रबंधन अधिकारियों के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 के बाद से वज्रपात के लिए मार्च से अप्रैल की अवधि घातक रही है।
अप्रैल 2025 के पहले 17 दिनों में ही 142 मौतें हुई, जो अप्रैल 2024 की तुलना में पांच गुना अधिक है, जब बिजली गिरने से केवल 28 मौतें हुई थीं। सिर्फ मार्च महीने की तुलना करें तो इस साल बिजली गिरने से 20 लोगों की मौत हुई, जबकि 2024 में 29 मौतें रिकॉर्ड की गई थीं।
विशेषज्ञों ने इस वृद्धि के लिए बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी से भरी पूर्वी हवाओं के चलते वायुमंडलीय अस्थिरता को जिम्मेवार ठहराया, लेकिन इस बात का तर्क दिया कि बेहतर तैयारी और सार्वजनिक जागरूकता से कई मौतों को टाला जा सकता था।
बिहार बना वज्रपात का केंद्र, उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित
वज्रपात के मामले में बिहार सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा, जहां मार्च और अप्रैल 2025 के बीच बिजली गिरने से 99 मौतें दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय कुल मौतों का 61 फीसदी है। चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के आपदा प्रबंधन अधिकारियों के अनुसार, इनमें से 98 मौतें नौ से 14 अप्रैल के बीच मात्र छह दिनों के भीतर हुई।
अप्रैल 2025 बिहार में 2017 के बाद से बिजली गिरने के मामले में इसी अवधि की अपेक्षा सबसे घातक महीना बन गया। इससे पहले अप्रैल 2020 में 25, 2018 में 24 और 2019 में 12 मौतें हुई थीं। राज्य में 2023 और 2024 दोनों में मार्च और अप्रैल के दौरान बिजली गिरने से हुई मौतें दर्ज ही नहीं की गई।
बिहार लंबे समय से भारत के सबसे अधिक वज्रपात होने वाले राज्यों में से एक रहा है और इससे संबंधित मौतों और चोटों के लिए एक हॉटस्पॉट रहा है। क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (सीआरओपीसी) की वार्षिक वज्रपात संबंधी रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, 2014 से 2024 के बीच, बिजली गिरने से होने वाली मौतों में यह राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर रहा।
ज्यादातर मौतें आम तौर पर मॉनसूनी मौसम के दौरान होती हैं, खासकर जून और जुलाई में। जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 2017 से 2022 के बीच, जून और जुलाई में राज्य में बिजली गिरने से 58.8 फीसदी मौतें और 59.4 प्रतिशत चोट लगने की घटनाएं सामने आई।
राज्य स्तरीय अध्ययन और सीएसई-डीटीई चरम मौसम डेटाबेस से महीनेवार आंकड़ों के मुताबिक, मात्र 17 दिनों में, इस महीने में नौ साल का सबसे बड़ा रिकॉर्ड हासिल किया।
इससे पहले अप्रैल में बिजली से संबंधित मौतों की सबसे अधिक संख्या 2020 में दर्ज की गई थी, जिसमें 25 मौतें हुई थीं, इसके बाद अप्रैल 2018 में 24 और अप्रैल 2019 में 12 मौतें हुई थीं। इसके विपरीत अप्रैल 2021 और अप्रैल 2022 में केवल दो-दो ऐसी मौतें हुई। जबकि 2023 और 2024 दोनों सालों में राज्य में मार्च और अप्रैल के दौरान वज्रपात से हुई मौतों को दर्ज ही नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश में तकरीबन 28 मौतें हुई, जिनमें से 23 अप्रैल के पहले 17 दिनों में हुई। यह मार्च और अप्रैल 2024 के बीच दर्ज की गई पांच मौतों की तुलना में 460 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। ये सभी पांच मौतें मार्च में हुई, जबकि पिछले साल अप्रैल में कोई भी मौत नहीं हुई थी।
जलवायु के कारण घटनाओं में वृद्धि और प्रशासनिक विफलताएं
बिजली गिरने की घटनाएं पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण होती हैं, लेकिन इसके कारण होने वाली मनुष्य जीवन की हानि को टाला जा सकता था।
सीआरओपीसी के संस्थापक कर्नल संजय कुमार श्रीवास्तव ने डीटीई को बताया,"बिजली गिरने की घटनाएं बंगाल की खाड़ी से हिमालय की तलहटी और पड़ोसी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों की ओर चलने वाली नमी से भरी पूर्वी हवाओं के कारण अस्थिर मौसम से जुड़ी थीं, जहां वे पश्चिमी विक्षोभ और जेट स्ट्रीम से टकराती थीं"।
इस तरह की की मौसमी गतिविधियों ने वज्रपात के लिए आदर्श परिस्थितियां पैदा की। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों ने हवा की दिशा में बदलाव की भी जानकारी दी है। ये घटनाएं दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने वाली हवाएं, जो अक्सर गंभीर, स्थानीय तूफानों के आने का संकेत देता है। इन स्थितियों को तेज हवाओं, बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी करने के लिए जाना जाता है।
श्रीवास्तव ने कहा कि बिजली गिरना, एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन जागरूकता और समय पर कार्रवाई से जानें बचाई जा सकती है। उन्होंने कहा, "वज्रपात से सुरक्षा सावधानियों के बारे में जागरूकता की गंभीर कमी है, जैसा कि नालंदा में 23 मौतों से पता चलता है, जहां लोगों ने एक पेड़ और एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर के नीचे शरण ली थी।"
उन्होंने कहा कि इस घातक घटना का पूर्वानुमान तीन से चार दिन पहले ही लगा दिया गया था। फिर भी राज्य और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तेजी से कार्रवाई करने में विफल रहे। श्रीवास्तव ने कहा, "पूर्व चेतावनी के लिए शीघ्र कार्रवाई की जरूरत पड़ती है। इस मामले में सही समय का उपयोग नहीं किया गया और गरीब ग्रामीण समुदाय बिना किसी तैयारी के फंस गए।"
जबकि लोगों के सामने आने वाले खतरों के बारे में सचेत करने के लिए मोबाइल ऐप विकसित किया गया था, श्रीवास्तव ने कहा कि कई ग्रामीणों ने चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया।
उन्होंने शुरुआती चेतावनियों पर प्रतिक्रिया देने के लिए एक मजबूत संचार और कार्य योजना की कमी की भी आलोचना की, दावा किया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी मौजूदा प्रसार प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया।
श्रीवास्तव ने कहा, "अब समय आ गया है कि बिहार और उत्तर प्रदेश अपनी आपदा प्रबंधन क्षमताओं में सुधार करें और ओडिशा जैसे राज्यों के अनुभवों से सबक लें।"