सदी के अंत तक दुनिया में 49 फीसदी बढ़ जाएगा बाढ़ का खतरा, रिसर्च में हुआ खुलासा

उत्तरी अटलांटिक और हिंद महासागर के तटों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया और प्रशांत द्वीप समूहों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की आशंका है
प्रयागराज में आई बाढ़ के चलते सुरक्षित स्थानों पर पलायन करते लोग; फोटो: आईस्टॉक
प्रयागराज में आई बाढ़ के चलते सुरक्षित स्थानों पर पलायन करते लोग; फोटो: आईस्टॉक
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वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि यदि वैश्विक उत्सर्जन में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो सदी के अंत तक दुनिया में बाढ़ की घटनाएं 49 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। इस बारे में जारी नए अध्ययन के मुताबिक उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और एशिया के तटीय क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तरी अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि हो सकती है।

जर्नल वाटर रिसोर्सेज रिसर्च में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक उत्तरी अटलांटिक और हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया और प्रशांत द्वीपों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की आशंका है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर पॉल बेट्स का कहना है कि, हमें उम्मीद है कि हमारा अध्ययन लोगों की जान के साथ इमारतों और बुनियादी ढांचे को बाढ़ से बचाने में मददगार होगा। इसके साथ ही यह बीमा कंपनियां के लिए प्रीमियम निर्धारित करने के साथ-साथ जलवायु नियमों का पालन करने में मदद करेगा।"

बता दें कि प्रोफेसर पॉल बेट्स ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के कैबोट इंस्टीट्यूट फॉर द एनवायरनमेंट में हाइड्रोलॉजी के प्रोफेसर हैं।

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प्रयागराज में आई बाढ़ के चलते सुरक्षित स्थानों पर पलायन करते लोग; फोटो: आईस्टॉक

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कंप्यूटर मॉडल की मदद से बनाए गए बाढ़ के पुराने मानचित्र व्यवहारिक रूप से बाढ़ के प्रभावों को दर्शाने में बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया है, ताकि यह समझा जा सके कि बाढ़ की अलग-अलग आशंकाओं के मद्देनजर मॉडल में कितना पानी शामिल करना है।

बेट्स और उनके सहयोगियों ने बारिश, नदियों और समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण आने वाली बाढ़ को दर्शाने के लिए एक वैश्विक मानचित्र भी तैयार किया है।

मॉडल की मदद से शोधकर्ताओं ने इस बात का भी पूर्वानुमान किया है कि बढ़ते तापमान के साथ बारिश, नदियों का प्रवाह और समुद्र का जलस्तर कैसे बदलेगा। इन पूर्वानुमानों के आधार शोधकर्ताओं ने बाढ़ के बढ़ते खतरे को समायोजित किया है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनके मुताबिक यदि 2050 तक, उत्सर्जन कम रहता है तो बाढ़ का जोखिम सात फीसदी बढ़ जाएगा, वहीं यदि उत्सर्जन तेजी से बढ़ता है तो यह जोखिम 15 फीसदी तक बढ़ सकता है।

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तटीय क्षेत्रों में 99 फीसदी तक बढ़ जाएगा बाढ़ का खतरा

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता ओलिवर विंग का कहना है कि जहां कुछ स्थानों पर बाढ़ का खतरा कम हो जाएगा। वहीं कुछ क्षेत्रों में बाढ़ के जोखिम में होने वाली वृद्धि वैश्विक औसत से भी कई गुना अधिक होगी। यहां तक की कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी स्थिति बेहद खराब होगी।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि दुनिया भर में तटीय बाढ़ के खतरे में लगातार और बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। आशंका है कि सदी के अंत तक तटीय क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ का खतरा 99 फीसदी तक बढ़ जाएगा। मतलब कि यदि भले ही उत्सर्जन को कम कर दिया जाए तो भी इस बाढ़ का खतरा बढ़कर दोगुणा हो जाएगा।

ऐसा इसलिए है क्योंकि हवा का तापमान यदि बढ़ना बंद भी हो जाए तो भी समुद्र का औसत तापमान बढ़ता रहेगा। पानी गर्म होने पर फैलता है, जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ते तापमान के साथ और बढ़ जाएगा।

इसके साथ ही उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिणी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा दक्षिण अमेरिका की नदियों में भी बाढ़ आने की आशंका है।

इस बीच, जलवायु में आते बदलावों की वजह से बारिश की वजह से आने वाली बाढ़ और बदतर हो सकती है। मतलब की समय के साथ बाढ़ की आशंका कहीं ज्यादा बढ़ सकती है। अध्ययन के मुताबिक जहां निम्न उत्सर्जन परिदृश्य में सदी के अंत तक जहां बाढ़ का यह खतरा छह फीसदी तक बढ़ सकता है। वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह जोखिम 44 फीसदी तक बढ़ने की आशंका है।

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