नालियों में जमा होते प्लास्टिक से भारत सहित दुनिया भर में 22 करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है बाढ़ का खतरा

प्लास्टिक और इसकी वजह से आने वाली बाढ़ का सबसे ज्यादा खामियाजा कमजोर तबके को उठाना पड़ रहा है, जो पहले ही बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं
भारत में प्लास्टिक कचरे से भरी नालियां; फोटो: आईस्टॉक
भारत में प्लास्टिक कचरे से भरी नालियां; फोटो: आईस्टॉक
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भारत सहित दुनिया भर में 21.8 करोड़ लोगों पर प्लास्टिक की वजह से बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यह वो प्लास्टिक है जो ऐसे ही फेंकें जाने के कारण नालियों में जमा हो रहा है और ड्रेनेज सिस्टम को अवरुद्ध कर रहा है। यह लोग वैश्विक आबादी के तीन फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं जो यूके, फ्रांस और जर्मनी की कुल आबादी के बराबर हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक यह कोई एक बार का संकट नहीं, बल्कि लोगों को बार-बार बाढ़ के खतरे में धकेल रहा है। गौरतलब है कि मुंबई में जुलाई 2005 में आई ऐसी ही भीषण बाढ़ में 1,056 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 9,000 करोड़ से ज्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ था। जांच रिपोर्ट में इस बाढ़ के लिए बारिश के साथ-साथ नालियों में जमा होते प्लास्टिक कचरे को भी एक वजह माना था।

इन प्लास्टिक की थैलियों ने तूफानी नालियों को अवरुद्ध कर दिया था, जिसकी वजह से मानसूनी बारिश का पानी शहर में ही जमा हो गया था। रिपोर्ट में 1988 में बांग्लादेश में आई बाढ़ का भी जिक्र किया है। जब प्लास्टिक की थैलियों ने जलमार्गों को अवरुद्ध कर विनाशकारी बाढ़ में मदद की थी। इस बाढ़ में देश का दो-तिहाई हिस्सा पानी में डूब गया था।  

अंतराष्ट्रीय ऐड एजेंसी टेअरफण्ड और पर्यावरण परामर्श संगठन रिसोर्स फ्यूचर द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक फेंके जा रहे इस प्लास्टिक और इसकी वजह से आने वाली बाढ़ का सबसे ज्यादा खामियाजा कमजोर तबके को उठाना पड़ रहा है जो पहले ही बुनियादी सुविधाओं के आभाव में जीने को मजबूर हैं।

रिपोर्ट में सामने आया है कि जिन लोगों पर इस बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है उनमें से 4.1 करोड़ बच्चे, बुजुर्ग और विकलांग हैं। यह लोग पहले ही स्वास्थ्य और अन्य समस्याओं से जूझ रहें हैं ऐसे में यह एक और नए खतरे का सामना करने के काबिल भी नहीं है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्लास्टिक बाढ़ के खतरे को और गंभीर बना देती हैं। इनकी वजह से जल निकासी प्रणालियां अवरुद्ध हो जाती है, जिनकी वजह से बाढ़ कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेती है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह खतरा बढ़ते प्लास्टिक के साथ और बढ़ता जा रहा है। अनुमान है कि 2000 से 2019 के बीच प्लास्टिक कचरा बढ़कर दोगुना हो गया है। इसके बढ़ने के लिए ठोस कचरे का ठीक तरह से प्रबंधन न किया जाना जिम्मेवार है। 

हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए गंभीर समस्या पैदा कर देगा बढ़ता प्लास्टिक कचरा

रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ उप सहारा अफ्रीका में इस तरह की बाढ़ का खतरा सबसे ज्यादा है। यहां घनी आबादी के बीच लोग मैली-कुचैली स्लम बस्तियों में रहने को मजबूर हैं जहां बुनियादी ढांचे का भी आभाव है। न नालियां, न साफ पानी की व्यवस्था और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं इसके खतरे को और बढ़ा रही हैं।

आशंका है कि अनियोजित विकास और फैला कचरा इन क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को कहीं ज्यादा बढ़ा सकता है। यदि लोग बाढ़ के इस संकट से बच भी जाएं तो इससे फैली बीमारियां उनके जीवन की राह को कठिन बना देती हैं।

अनुमान है कि यदि प्लास्टिक और उसके निपटान पर अभी ध्यान न दिया गया तो यह कचरा ऐसे ही बढ़ता रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक इससे सबसे ज्यादा प्रभावित एशिया और अफ्रीका होंगें। वहीं यदि स्लम में रहने वाले लोगों की आबादी को देखें तो वो मौजूदा समय में 100 करोड़ के आसपास है। वहीं अनुमान है कि 2050 तक स्लम में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की आबादी बढ़कर 300 करोड़ पर पहुंच जाएगी।

इस बाढ़ से जुड़ा एक और मुद्दा ऐसा है जिसपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है और वो मुद्दा जलवायु में आते बदलावों का है। दुनिया भर में जिस तरह वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते अनुमान है कि न केवल बारिश की घटनाएं बढ़ जाएंगी साथ ही थोड़े समय में ही कहीं ज्यादा तेज बारिश होगी, जो स्थिति को गंभीर बना देगी। रिपोर्ट में इस बात को भी स्वीकार किया है कि बाढ़ प्रभावितों का यह जो आंकड़ा सामने आया है वो वास्तविकता में इससे कहीं ज्यादा हो सकता है।

आज दुनिया भर में बढ़ता कचरा एक बड़ी समस्या बन चुका है। ओईसीडी द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि अगले 37 सालों में 2060 तक प्लास्टिक कचरे की मात्रा तीन गुणा बढ़ जाएगी। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2060 तक हर साल करीब 100 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा होगा, जिसका एक बड़ा हिस्सा करीब 15.3 करोड़ टन बिना किसी उपचार के ऐसे ही पर्यावरण में डंप कर दिया जाएगा। जो आगे चलकर गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने अपनी नई रिपोर्ट में आशा जताई है कि यदि देश और कंपनियां मौजूदा तकनीकों का उपयोग करके अपनी नीतियों और बाजार में बदलाव करें तो 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

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