नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून (एनजीटी) ने संदूर में 1200 साल पुराने मंदिर के पास होने वाली खनन गतिविधियों के संबंध में अधिकारियों से जवाब मांगा है। मामला कर्नाटक के बल्लारी जिले का है।
28 अगस्त, 2024 को दिए अपने इस आदेश में ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), कर्नाटक के खान एवं भूविज्ञान विभाग, कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, बेंगलुरू, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और बल्लारी के जिला मजिस्ट्रेट सहित कई अधिकारियों को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि 19 जून 2024 को अंग्रेजी अखबार डक्क्न हेराल्ड में प्रकाशित एक खबर के आधार पर इस मामले में अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया था। इस खबर के मुताबिक कर्नाटक सरकार ने कुमारस्वामी के पास एक खनन परियोजना के लिए प्रारंभिक स्तर की मंजूरी की सिफारिश की गई है। यह मंदिर 7वीं या 8वीं शताब्दी में बनाया गया था, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत एक संरक्षित स्मारक भी है।
खबर में जिक्र किया गया है कि कर्नाटक वन विभाग ने कुमारस्वामी बेट्टा नामक 70 एकड़ वन क्षेत्र में खनन के लिए "सैद्धांतिक" (चरण-1) का अनुमोदन मांगा है।
खबर में यह भी सामने आया है कि सरकार द्वारा जिस खनन पट्टे की मंजूरी दी है वो मंदिर के 400 मीटर के दायरे में है। इससे स्थानीय कार्यकर्ता और आम लोग चिंतित हैं। गौरतलब है कि मंदिर के पास खनन के लिए मंजूरी देने का सरकार का निर्णय 1978 की अधिसूचना को वापस लेने के बाद संभव हुआ है।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि इस अधिसूचना में संरक्षित स्मारकों के दो किलोमीटर के दायरे में खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया था। खबर में इस बात की भी आशंका जताई है कि खनन गतिविधियों में भारी मशीनरी और विस्फोटों के उपयोग की वजह से मंदिर की संरचना के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
खबर में यह भी जानकारी दी गई है कि कार्यकर्ताओं ने इस परियोजना का विरोध किया था और इस बाबत अगस्त 2023 में कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इसके बाद न्यायालय ने मंदिर और उसके आसपास के इलाकों पर खनन के प्रभावों का आंकलन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया था। हालांकि इससे पहले कि समिति अपने निष्कर्षों को अंतिम रूप दे पाती, खान और भूविज्ञान विभाग ने खनन को मंदिर से 600 मीटर के दायरे के बाहर तक सीमित करने का निर्णय लिया था।
कार्यकर्ताओं की नजर में यह निर्णय विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को दरकिनार करने का प्रयास है। उनके मुताबिक समिति ने पर्यावरणीय जोखिमों को उजागर करने वाली केवल एक प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, लेकिन अभी तक मंदिर की संरचनात्मक सुरक्षा का आकलन नहीं किया गया है।
ऐसे में एनजीटी ने कहा है कि इस खबर में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 से जुड़े प्रावधानों के पालन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है।