खनन पर यू-टर्न? एनजीटी ने मांगा जवाब, कर्नाटक वन विभाग पर उठे सवाल

एनजीटी ने कर्नाटक के तुमकुर में दो खनन पट्टों को अनुमति देने के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब तलब किया है
खनन के कारण तबाह क्षेत्र को देखती ग्रामीण; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
खनन के कारण तबाह क्षेत्र को देखती ग्रामीण; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
Published on

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कर्नाटक के तुमकुर जिले में दो खनन पट्टों को अनुमति देने के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से जवाब तलब किया है। यह अनुमति कर्नाटक वन विभाग द्वारा दी गई थी। गौरतलब है कि यह लीज पहले पर्यावरणीय चिंताओं के चलते खारिज कर दी गई थीं।

इसके साथ ही अदालत ने 9 जुलाई, 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी), बेंगलुरु क्षेत्रीय कार्यालय और कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी नोटिस जारी कर जवाब देने का निर्देश दिया है।

इस मामले में अगली सुनवाई 25 सितंबर 2025 को एनजीटी की दक्षिणी बेंच करेगी।

बता दें कि 10 जुलाई 2025 को अंग्रेजी अखबार दक्कन हेराल्ड में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है। इस खबर में कहा गया है कि कर्नाटक वन विभाग ने मई 2025 में मिनरल एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को 119.1 एकड़ भूमि में खनन की अनुमति की सिफारिश की थी। यह भूमि चिक्कनायकनहल्ली तालुक के गोल्लहल्ली, होसहल्ली और कोडिहल्ली गांवों में फैली है।

हालांकि, पहले तुमकुर के उप वन संरक्षक ने इस क्षेत्र को "तेज मृदा कटाव" से प्रभावित बताया था और यहां तेंदुआ, भालू, जंगली सुअर और मोर जैसे वन्यजीवों की मौजूदगी की बात कही थी।

पर्यावरण कार्यकर्ता गिरीधर कुलकर्णी ने इस पर आपत्ति जताते हुए वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखा और मांग की कि इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाए। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि इससे सटे दो अन्य खनन प्रस्ताव पहले ही पर्यावरण मंत्रालय की क्षेत्रीय टीम द्वारा निरीक्षण के बाद अस्वीकृत कर दिए हैं।

बाढ़ के बाद खेतों से रेत हटाने के नाम पर खनन, एनजीटी सख्त, क्या है पूरा मामला

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कृषि भूमि से बाढ़ के बाद जमा रेत हटाने के नाम पर प्राइवेट लीज के जरिए होने वाले खनन को लेकर चल रहे मामले की सुनवाई 8 सितंबर 2025 को तय की है।

मामला मानसून के बाद कृषि भूमि पर जमा रेत को हटाने के नाम पर, निजी जमीन मालिकों को अल्पकालिक खनन परमिट देने की व्यवस्था से जुड़ा है। इस प्रक्रिया में व्यावसायिक खनन गतिविधियों को बढ़ावा मिलने का खतरा बताया गया है।

9 जुलाई 2025 को सुनवाई के दौरान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब लेने के लिए अदालत से समय मांगा था, जिसे एनजीटी ने मंजूरी दे दी है।

यह मांग इसलिए की गई ताकि विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति को राज्यों के साथ मिलकर बाढ़ के बाद खेतों से रेत हटाने, अल्पकालिक परमिट और इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर चर्चा पूरी करने का समय मिल सके।

पर्यावरण मंत्रालय ने अदालत को जानकारी दी है अब तक सिर्फ उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और हरियाणा जैसे पांच राज्यों से ही बातचीत हुई थी, जबकि पूरे देश से जानकारी लेना जरूरी है। इसके लिए मंत्रालय ने एनजीटी द्वारा उठाए सवालों के आधार पर एक विस्तृत प्रश्नावली तैयार कर, सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन प्राधिकरण (एसईआईएए) और संबंधित खान एवं भूविज्ञान विभागों (डीएमजी) को भेजी है।

कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से इस विषय में प्रतिक्रियाएं प्राप्त करने के बाद 11 जून 2025 को एक ऑनलाइन बैठक हुई, जिसमें विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (नॉन-कोल माइनिंग सेक्टर), विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के खनन विभाग, राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (एसईआईएए), राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों (एसईएसी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) के प्रतिनिधियों तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिकारियों ने भाग लिया और विस्तृत चर्चा की गई।

इसके बाद, यह मुद्दा विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की 46वीं बैठक (25 से 26 जून) में भी उठाया गया, जिसमें राज्यों से अब तक मिली प्रतिक्रियाओं की समीक्षा की गई।

विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने माना कि इस पर और गहन चर्चा की जरूरत है, जो जुलाई 2025 में प्रस्तावित 47वीं बैठक में की जाएगी। साथ ही तब तक 11 जून, 2025 को हुई चर्चा के ड्राफ्ट रिकॉर्ड के संबंध में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की अंतिम टिप्पणियां भी प्राप्त हो जाएंगी।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in