उदयपुर की जयसमंद झील में बंद हो अवैध खनन, एनजीटी ने दिए आदेश

एनजीटी ने आदेश दिया है कि अवैध खनन की नियमित निगरानी और जांच होनी चाहिए। साथ ही दोषियों पर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए
अवैध खनन का कारोबार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
अवैध खनन का कारोबार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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जयसमंद झील को बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उदयपुर के कलेक्टर और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अवैध खनन और उसके परिवहन पर नियमित निगरानी रखने को कहा है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने 23 अक्टूबर 2024 को अधिकारियों से मामले में मुकदमा चलाने और पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली के साथ-साथ आवश्यक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।

आदेश में कहा गया है कि अवैध खनन की नियमित निगरानी और जांच होनी चाहिए। खनन विभाग को शिकायतों के लिए एक शिकायत पोर्टल बनाना चाहिए और अवैध रेत परिवहन की निगरानी के लिए पुलिस के साथ चौबीसों घंटे चेकपॉइंट होने चाहिए। इसके अलावा, निगरानी के लिए प्रमुख स्थानों पर सीसीटीवी लगाए जाने चाहिए।

खनन विभाग को निर्देश दिया गया है कि वो उदयपुर के कलेक्टर की सहमति और परामर्श से खनन रॉयल्टी से प्राप्त धनराशि का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और सीसीटीवी लगाने के लिए करे।

24 फरवरी, 2024 को दैनिक भास्कर में छपी एक खबर में जानकारी दी गई कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील जयसमंद में खनन माफिया अवैध रूप से रेत खनन कर रहे हैं। खबर में यह भी कहा गया कि खनन 20 फीट की गहराई तक पहुँच गया है। इन अवैध गतिविधियों में कई ट्रैक्टर और डंपर शामिल हैं।

एनजीटी द्वारा बार-बार निर्देश दिए गए हैं कि जयसमंद झील के जलग्रहण क्षेत्र में खनन गतिविधियों को स्थाई रूप से बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही अवैध खनन में शामिल हर एक व्यक्ति से मुआवजा वसूलने का भी निर्देश दिया जाना चाहिए।

डीएफओ को पर्यावरण की बहाली का भी निर्देश दिया गया है। ट्रिब्यूनल का कहना है कि हालांकि इसके बावजूद "बिना रोक टोक के व्यावसायिक फायदों के लिए अवैध गतिविधियां जारी हैं।"

उदयपुर में सड़कों को चौड़ा करते समय पेड़ों के मामले में बरती जानी चाहिए सावधानी: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उदयपुर विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि यदि सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों को काटने या नुकसान पहुंचाने की जरूरत पड़ती है तो ऐसा करते समय सावधानी बरती जाए। इसके साथ ही जिन पेड़ों के प्रत्यारोपण या स्थानांतरण की आवश्यकता है उस दौरान भी आवश्यक सावधानियां बरती जानी चाहिए।

23 अक्टूबर 2024 को दिए इस आदेश में अदालत ने कहा है कि अगर पेड़ काटने ही हैं तो उसके लिए सक्षम प्राधिकारी से आवश्यक अनुमति लेनी होगी। साथ ही नियमों का पालन करते हुए उस क्षेत्र में दस गुना पेड़ लगाने होंगे।

गौरतलब है कि आवेदन में उदयपुर के हवाला खुर्द में बिना उचित अनुमति के सड़क को 60 से 80 फीट चौड़ा करने के लिए पेड़ों को काटे जाने का मुद्दा उठाया गया था।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि उदयपुर विकास प्राधिकरण ने यातायात के भारी दबाव के चलते सड़क को चौड़ा करने का फैसला किया था। अदालत को यह भी बताया गया है कि अनावश्यक पेड़ों की कटाई या नुकसान से बचने के लिए अड़चनों को सावधानीपूर्वक संबोधित किया जाना चाहिए। इसके लिए उचित सावधानी बरती जानी चाहिए।

साबरमती नदी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या कुछ की गई हैं कार्रवाई, रिपोर्ट में दी गई जानकारी

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास ने 23 अक्टूबर, 2024 को एनजीटी को जानकारी दी है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) ने साबरमती नदी प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों पर एक विस्तृत रिपोर्ट दायर की है।

उन्होंने नदी और भूजल को प्रदूषित करने वाले दूषित पानी को रोकने के लिए की गई कार्रवाई पर एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के लिए अदालत से और समय मांगा है।

अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने भी मामले पर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा है। अदालत ने चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अदालत का कहना है कि चूंकि दलीलें पूरी हो चुकी हैं, ऐसे में इस मामले में अंतिम सुनवाई 21 जनवरी, 2025 को होगी।

गौरतलब है कि आवेदन में इस बात पर चिंता जताई गई कि दूषित या आंशिक रूप से साफ औद्योगिक अपशिष्ट को खुले क्षेत्रों या अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) की पाइपलाइनों में छोड़ा जा रहा है, जोकि सहमति की शर्तों का उल्लंघन है। इस मामले में की गई कार्रवाई और तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया गया था।

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