क्यों चमगादड़ों को नहीं होता कैंसर, क्या है उनकी लम्बी उम्र और सेहत का राज

स्टडी से पता चला है कि कैसे चमगादड़ों में पी53 जीन, टेलोमेरेज और मजबूत इम्यून सिस्टम उन्हें कैंसर से बचाता है। यह जानकारी इंसानों में कैंसर के इलाज के नए रास्ते खोल सकती है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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चमगादड़ बेहद अनोखे जीव हैं भले ही कोरोना को लेकर वो दुनिया भर में बदनाम हों। लेकिन उनके शरीर में कई ऐसे रहस्य छुपे हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकते हैं। ऐसे ही अनोखी खासियत है कैंसर से बचाव। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्या है कि इतना लम्बा जीवन जीने वाले यह जीव कैंसर से बचे रहते हैं।

रॉचेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपनी अद्भुत खोज में पता लगाया है कि क्यों लंबे समय तक जीने वाले चमगादड़ों को कैंसर नहीं होता। इस शोध में वैज्ञानिकों ने बीमारी से लड़ने वाली उनकी जैविक क्षमताओं पर भी प्रकाश डाला है।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि चार आम प्रजातियों के चमगादड़ ऐसे "सुपरपावर" रखते हैं, जो उन्हें 35 साल तक कैंसर मुक्त जीवन जीने में मदद करते हैं, जो इंसानी उम्र के हिसाब से करीब 180 वर्षों के बराबर है।

चमगादड़ों की 'एंटी-कैंसर सुपरपावर'

वैज्ञानिकों के मुताबिक चमगादड़ों के शरीर में ऐसे जैविक तंत्र हैं जो कैंसर को शुरू होने से पहले ही रोक देते हैं।

चमगादड़ों और इंसानों दोनों में पी53 नामक एक जीन होता है, जो कैंसर को रोकने में मदद करता है। यह एक ट्यूमर-रोधी जीन है जो शरीर में कैंसर कोशिकाओं को समय रहते नष्ट कर सकता है। इंसानों में कैंसर के करीब आधे मामलों में पी53 जीन में गड़बड़ी पाई जाती है, जिससे यह ठीक से काम नहीं कर पाती।

लेकिन "लिटिल ब्राउन बैट" नाम की चमगादड़ की एक प्रजाति, जो न्यूयॉर्क के रोचेस्टर और आसपास पाई जाती है, पी53 जीन की दो प्रतियां रखती है और इंसानों की तुलना में इसकी सक्रियता भी अधिक होती है।

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गौरतलब है कि जब पी53 जीन सक्रिय होती है, तो वो शरीर में हानिकारक बनने से पहले ही कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। इसे अपोप्टोसिस कहा जाता है। हालांकि, यदि पी53 बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाए, तो वह स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

लेकिन चमगादड़ों में एक विशेष तंत्र होता है जो इस प्रक्रिया को संतुलित रखता है। चमगादड़ों में इस जीन की सक्रियता इतनी संतुलित है कि वह केवल हानिकारक कोशिकाओं को ही खत्म करती है।

स्टडी से पता चला है कि चमगादड़ों में टेलोमेरेज नामक एंजाइम स्वाभाविक रूप से सक्रिय रहता है, जिससे उनकी कोशिकाएं बार-बार विभाजित हो सकती हैं। इनकी कोशिकाएं उम्र बढ़ने या चोट लगने पर भी खुद की मरम्मत करती रहती हैं।

हालांकि यदि यह एंजाइम अनियंत्रित हो जाए तो कैंसर का कारण बन सकता है, लेकिन पी53 की सक्रियता इसे संतुलित रखती है। इस जीन की सक्रियता कैंसर जैसी कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें नष्ट कर देती है। इस तरह चमगादड़ों का शरीर खुद को संतुलित और सुरक्षित बनाए रखता है।

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मजबूत इम्यून सिस्टम में छिपा स्वस्थ जीवन का रहस्य

चमगादड़ों की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम बेहद मजबूत होता है, जो कई खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया को आसानी से खत्म कर देता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक उनकी यही ताकत उन्हें कैंसर से बचाने में भी मदद करती है। यह प्रणाली कैंसर कोशिकाओं को जल्द पहचानकर खत्म कर देती है।

जहां इंसानों में उम्र बढ़ने के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ने लगती है और सूजन बढ़ जाती है, वहीं चमगादड़ सूजन को भी अच्छी तरह नियंत्रित कर लेते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस जटिल लेकिन संतुलित प्रणाली के कारण वे वायरस और उम्र से जुड़ी बीमारियों से खुद को सुरक्षित रख पाते हैं।

क्या इंसानों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है यह शोध?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, कैंसर धीरे-धीरे विकसित होता है और उम्र के साथ जोखिम बढ़ता जाता है। इसमें सामान्य कोशिकाएं कई चरणों में बदलकर खतरनाक (मैलिग्नेंट) बनती हैं। इसलिए, लंबी जितनी उम्र होती है, उतनी ही अधिक बार कोशिकाओं में बदलाव (म्यूटेशन) होने की संभावना बढ़ जाती है, खासकर जब बाहरी कारण जैसे प्रदूषण या खराब जीवनशैली भी शामिल हों।

ये सभी मिलकर कैंसर के जोखिम को बढ़ा देते हैं।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस अध्ययन की एक हैरान करने वाली बात यह है कि चमगादड़ों के पास कैंसर के खिलाफ कोई प्राकृतिक रुकावट नहीं होती। उनकी कोशिकाएं सिर्फ दो बार नुकसान झेलकर ही कैंसर सेल्स में बदल सकती हैं। फिर भी, वे मजबूत ट्यूमर-रोधी तंत्र जैसे पी53 जीन और मजबूत इम्यून सिस्टम की मदद से कैंसर से बचे रहते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पी53 जीन की बढ़ी हुई सक्रियता कैंसर से लड़ने का एक असरदार तरीका है, क्योंकि यह या तो कैंसर कोशिकाओं को खत्म कर देती है या उनकी बढ़ने की रफ्तार को धीमा कर देती है। कई एंटी-कैंसर दवाएं पहले ही पी53 को निशाना बनाकर काम कर रही हैं, और इस दिशा में रिसर्च चल रही है।

शोध दर्शाता है कि यदि इंसानों में पी53 जीन की सक्रियता को सुरक्षित तरीके से बढ़ाया जाए, तो यह कैंसर के खिलाफ कारगर साबित हो सकता है।

टेलोमेरेज एंजाइम को संतुलित रूप से बढ़ाना भी भविष्य में इलाज का एक तरीका हो सकता है, हालांकि यह अभी अध्ययन का हिस्सा नहीं था। ऐसे में यह अध्ययन न केवल कैंसर के इलाज में नई उम्मीदें जगाता है, बल्कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने में भी अहम भूमिका निभा सकता है।

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